Edited By Shubham Anand,Updated: 06 Dec, 2025 05:17 PM

देश के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है, जिससे खाने-पीने की आदतें प्रभावित हो रही हैं। प्रदूषण में मौजूद PM2.5, धुआं और केमिकल्स नाक, गले और पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं। इससे भोजन का स्वाद कम महसूस होता है, भूख घटती है और मिचली या...
नेशनल डेस्क : पिछले कुछ समय से देश के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। बढ़ता प्रदूषण लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। हवा की गुणवत्ता बिगड़ने से न केवल सांस से जुड़ी समस्याओं में वृद्धि हो रही है, बल्कि इसका असर खाने-पीने की आदतों पर भी दिखाई दे रहा है। प्रदूषण में मौजूद हानिकारक तत्व शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, जिससे भोजन से जुड़ी कई तरह की असुविधाएं पैदा हो सकती हैं।
खाने के स्वाद और भूख पर प्रदूषण का असर
प्रदूषण भरे दिनों में लोगों को भोजन पहले जैसा स्वादिष्ट नहीं लगता। इससे खाने का आनंद कम हो जाता है और खाने की रुचि में गिरावट आती है। भूख भी कम लगने लगती है, और पेट खाली होने के बावजूद भोजन करने का मन नहीं होता। इस दौरान शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होती है। कई लोगों को मिचली या नॉज़िया की समस्या भी होती है, विशेष रूप से सुबह या बाहर से लौटने पर। कुल मिलाकर, वायु प्रदूषण हमारे खाने-पीने के अनुभव को प्रभावित करता है और शरीर पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
प्रदूषण और शरीर की पाचन प्रणाली पर प्रभाव
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट और हेपेटो-बिलियरी सर्जरी विभाग के निदेशक डॉ. उषस्त धीर का कहना है कि तेज़ी से बढ़ता वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों और सांस की प्रणाली को प्रभावित करता है, बल्कि धीरे-धीरे खाने-पीने की आदतों को भी बदलने लगता है। प्रदूषण में मौजूद PM2.5, धुआं और अन्य हानिकारक तत्व शरीर में प्रवेश कर नाक, गले और पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं। नाक की सूंघने की क्षमता कम होने पर भोजन की सुगंध महसूस नहीं होती, जिससे भोजन का स्वाद हल्का और कम रोचक लगने लगता है।
प्रदूषित हवा पेट और आंतों में सूजन बढ़ाती है, जिससे पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप भूख कम लगती है और व्यक्ति को भोजन करने का मन नहीं करता। लंबे समय तक ऐसा रहने पर शरीर में पोषण और ऊर्जा की कमी हो सकती है।
प्रदूषण में मौजूद हानिकारक कण दिमाग तक उल्टी या भारीपन का संकेत भेजते हैं, जिससे मिचली और नॉज़िया जैसी शिकायतें बढ़ जाती हैं। इस तरह प्रदूषण शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है और भोजन से जुड़ी कई असहजताएं उत्पन्न करता है।
गट माइक्रोबायोम और प्रदूषण का संबंध
प्रदूषण का सीधा असर हमारे गट माइक्रोबायोम यानी पेट में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया पर पड़ता है। ये बैक्टीरिया पाचन, इम्यूनिटी और गट-ब्रेन सिस्टम को नियंत्रित करते हैं। जब हम प्रदूषित हवा में मौजूद धुआं, महीन कण और हानिकारक तत्व सांस के जरिए अंदर लेते हैं, तो ये धीरे-धीरे आंतों तक पहुंच जाते हैं। इससे अच्छे बैक्टीरिया की संख्या घटने लगती है और खराब बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं। इस असंतुलन को गट डिस्बायोसिस कहा जाता है।
गट डिस्बायोसिस के कारण पाचन कमजोर होता है, भूख कम लगती है और पेट में भारीपन या असहजता महसूस होती है। गट और दिमाग के बीच सीधे जुड़ाव के कारण मूड, ऊर्जा और मिचली जैसे लक्षण भी बढ़ जाते हैं। इस तरह प्रदूषण सीधे हमारे गट स्वास्थ्य और संपूर्ण शारीरिक तंत्र को प्रभावित करता है।
बचाव और सुरक्षा के उपाय
बाहर निकलते समय हमेशा N95 मास्क पहनें।
घर की हवा को साफ रखने के लिए नियमित सफाई और उचित वेंटिलेशन रखें।
दही, फल और फाइबर युक्त आहार को अपनी दिनचर्या में शामिल करें ताकि गट स्वस्थ रहे।
पूरे दिन पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं ताकि शरीर से टॉक्सिन बाहर निकलें।
हल्दी, अदरक और विटामिन C युक्त आहार से इम्यूनिटी मजबूत करें।