सैलरी आते ही हो जाती है खत्म? नहीं हो पा रही सेविंग, जानें इसके पीछे की असली वजह

Edited By Updated: 20 Dec, 2025 07:44 PM

why saving money is harder today compared to our parents generation

आज की पीढ़ी पहले से अधिक कमाती है, लेकिन फिर भी महीने के अंत में बचत नहीं कर पाती। बढ़ता किराया, शिक्षा और इलाज का खर्च, EMI, छोटे-छोटे सब्सक्रिप्शन, सोशल मीडिया का दबाव और नौकरी की अनिश्चितता बचत को मुश्किल बना रहे हैं। पहले लोग पहले बचत करते थे,...

नेशनल डेस्क : हममें से अधिकतर लोगों ने बचपन में देखा है कि हमारे माता-पिता सीमित आमदनी के बावजूद घर का पूरा खर्च संभाल लेते थे। बच्चों की पढ़ाई, राशन, किराया और अन्य ज़रूरतें पूरी करने के बाद भी हर महीने कुछ न कुछ बचा लेते थे। उस दौर में न तो बजट बनाने वाली ऐप्स थीं, न ऑनलाइन पेमेंट का जाल और न ही कमाई के कई साधन। इसके बावजूद बचत करना उनके लिए एक सामान्य आदत थी।

आज हालात इसके उलट नजर आते हैं। सैलरी पहले से कहीं ज्यादा है, पैसों को मैनेज करने की जानकारी भी हर जगह उपलब्ध है, फिर भी महीने के अंत में हाथ खाली रह जाते हैं। सैलरी खाते में आती है और कुछ ही दिनों में खर्च हो जाती है। ऐसा लगता है कि खर्च बहुत ज्यादा नहीं किए, लेकिन फिर भी बचत नहीं हो पाती। यही वजह है कि मन में एक डर बैठ जाता है कि अगर आज पैसा नहीं बच रहा, तो भविष्य कैसे सुरक्षित होगा। दरअसल, पैसों को लेकर दुनिया बदल चुकी है। हमारी खर्च करने की आदतें, जरूरतें, सामाजिक दबाव और उम्मीदें पिछली पीढ़ी से बिल्कुल अलग हो गई हैं।

ज्यादा कमाई, फिर भी खाली जेब
आज की पीढ़ी अपने माता-पिता की तुलना में ज्यादा कमाती है, लेकिन इसके बावजूद बचत करना मुश्किल हो गया है। पहले एक ही कमाई से पूरा परिवार चलता था और पैसे भी बच जाते थे। आज कई घरों में दो लोग कमाते हैं, फिर भी महीने के आखिर में सेविंग नहीं हो पाती। इसका बड़ा कारण बढ़ती महंगाई है। किराया अब इनकम का करीब 30 फीसदी तक पहुंच गया है। बच्चों की पढ़ाई और इलाज जैसे जरूरी खर्च भी कई गुना बढ़ चुके हैं। ऐसे में बचत के लिए रकम निकालना चुनौती बन गया है।

छोटे-छोटे खर्च, बड़ा नुकसान
पहले मोबाइल फोन, इंटरनेट, ओटीटी प्लेटफॉर्म, फूड डिलीवरी या फिटनेस ऐप्स जैसे खर्च नहीं होते थे। आज ₹199, ₹299 या ₹499 जैसे छोटे-छोटे सब्सक्रिप्शन मिलकर महीने में हजारों रुपये का बोझ बना देते हैं। ये खर्च इतने छोटे लगते हैं कि ध्यान ही नहीं जाता, लेकिन धीरे-धीरे यही रकम बचत को खा जाती है।

भविष्य की कमाई आज खर्च
पहले लोग पहले पैसा बचाते थे और फिर कोई बड़ी चीज खरीदते थे। आज इसका उलटा हो गया है। पहले EMI ली जाती है और बचत बाद में सोचते हैं। महंगे फोन, कार और यहां तक कि रोजमर्रा की चीजें भी EMI पर लेने की आदत बन गई है। कई EMI मिलकर इनकम का बड़ा हिस्सा बांध लेती हैं और बचत के लिए जगह ही नहीं बचती।

सोशल मीडिया का बढ़ता दबाव
पहले तुलना अपने पड़ोस या रिश्तेदारों तक सीमित थी। अब सोशल मीडिया ने तुलना का दायरा हजारों लोगों तक बढ़ा दिया है। बेहतर घर, महंगी कारें, विदेशी ट्रिप और लग्जरी लाइफस्टाइल देखकर बिना जरूरत भी खर्च करने का मन बनने लगता है, सिर्फ इसलिए कि हम पीछे न रह जाएं।

नौकरी की अनिश्चितता
पहले लोग 20-30 साल तक एक ही नौकरी में रहते थे। आज नौकरी की स्थिरता कम हो गई है। कॉन्ट्रैक्ट जॉब, फ्रीलांस काम और बार-बार नौकरी बदलने का डर बना रहता है। इसी वजह से लोग लंबी अवधि की बचत और निवेश से कतराते हैं और भविष्य को लेकर असमंजस में रहते हैं।

टालमटोल की आदत
अक्सर लोग सोचते हैं कि अगले साल से बचत शुरू करेंगे। लेकिन यही देरी कंपाउंडिंग का बड़ा नुकसान कर देती है। सेविंग और निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं, लेकिन कन्फ्यूजन और फैसले टालने की आदत की वजह से साल निकल जाते हैं।

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