आम लोगों की सबसिडी छुड़वाने और अपने वेतन बढ़वाने को बेचैन हमारे सांसद

Edited By ,Updated: 03 Jul, 2015 02:15 AM

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हमारे सांसद हर महीने भारी-भरकम वेतन और भत्ते घर ले जाते हैं। इन्हें 50,000 रुपए वेतन, अधिवेशन के दौरान 2000 रुपए दैनिक भत्ता, क्षेत्र में कार्य करने के लिए 45,000 रुपए और अपने कार्यालय के खर्चों के लिए 45,000 रुपए मासिक भत्ता मिलता है

हमारे सांसद हर महीने भारी-भरकम वेतन और भत्ते घर ले जाते हैं। इन्हें 50,000 रुपए वेतन, अधिवेशन के दौरान 2000 रुपए दैनिक भत्ता, क्षेत्र में कार्य करने के लिए 45,000 रुपए और अपने कार्यालय के खर्चों के लिए 45,000 रुपए मासिक भत्ता मिलता है और सहायक रखने पर वे 30,000 रुपए खर्च कर सकते हैं। इसके अलावा उन्हें 600 रुपए दैनिक लांड्री के मिलते हैं। 

उन्हें हवाई यात्रा द्वारा किए गए खर्चे का 25 प्रतिशत ही देना पड़ता है और इसके साथ एक सांसद अपनी पत्नी सहित वर्ष भर में 34 हवाई यात्राएं कर सकता है। उन्हें रेल में यात्रा के लिए सपत्नीक प्रथम श्रेणी ए.सी. का विशेष पास और 16 रुपए प्रति कि.मी. सड़क यात्रा भत्ता दिया जाता है।
 
इन्हें जो सुविधाएं प्राप्त हैं एक आम आदमी तो उनकी कल्पना भी नहीं कर सकता फिर भी इनका पेट नहीं भरता और इसी कारण भारी वेतन-भत्तों के बावजूद उन्हें संसद की कैंटीनों में लागत से भी 10 गुणा कम कीमत पर खाने-पीने की चीजें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। पिछले 5 वर्षों के दौरान संसद की कैंटीनों में हमारे माननीयों को परोसे जाने वाले पकवानों के लिए लोकसभा सचिवालय 60.7 करोड़ रुपए सबसिडी के रूप में दे चुका है।
 
जैसे कि इतना भी काफी नहीं था, भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति ने सांसदों के वेतन दुगने करने और  पूर्व सांसदों की पैंशन में लगभग 75 प्रतिशत वृद्धि करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है। समिति ने सरकार से सिफारिश की है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन में संशोधनों के  लिए वेतन आयोग जैसी प्रणाली के  आधार पर ही सांसदों के वेतन में भी स्वत: संशोधन की व्यवस्था की जाए। 
 
समिति ने सरकार को लगभग 60 सिफारिशें भेजी हैं जिनमें संसद अधिवेशन में भाग लेने के लिए मिलने वाला 2000 रुपए दैनिक भत्ता बढ़ाने की सिफारिश भी शामिल है। समिति का कहना है कि सांसदों के वेतनों में अंतिम संशोधन 2010 में किया गया था और यह वृद्धि बहुत पहले से लम्बित है। 
 
समिति ने पूर्व सांसदों को भी वर्ष में 20-25 मुफ्त घरेलू विमान यात्राओं की सुविधा देने के अलावा उनकी पैंशन 20,000 से बढ़ाकर 35,000 रुपए मासिक करने की भी सिफारिश की है। 
 
एक अन्य सिफारिश में प्रत्येक मौजूदा सांसद के सहयात्री के लिए एक अतिरिक्त मुफ्त वातानुकूलित प्रथम श्रेणी पास देने की मांग की गई है जबकि वर्तमान में केवल सांसद और उसकी पत्नी/पति को ही यह सुविधा प्राप्त है।
 
एक अन्य प्रस्ताव यह भी है कि सांसदों को जेब खर्च के रूप में प्रथम श्रेणी वातानुकूलित यात्रा के किराए की राशि के बराबर राशि दी जाए। इस समय सांसदों को द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित टिकट के किराए के बराबर राशि जेब खर्च के रूप में दी जाती है। 
 
समिति ने सांसदों के लिए हवाई अड्डों पर और बेहतर सुविधाएं देने तथा केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत सांसदों को दिए जाने वाले चिकित्सा लाभ उनके बच्चों और पोते-पोतियों को भी देने की मांग की है। 
 
प्रस्ताव में सांसदों को सरकारी कर्मचारियों की भांति भत्ता भी नहीं मिलने का उल्लेख करते हुए एक सांसद ने कहा है कि ‘‘हमारे तो अपने क्षेत्र के लोगों को चाय पिलाने पर ही 1000 रुपए खर्च हो जाते हैं, तो क्या हम उन्हें चाय पिलाने की औपचारिकता निभाना भी बंद कर दें?’’
 
जहां एक ओर सरकार आम लोगों को विभिन्न अनिवार्य जीवनोपयोगी सेवाओं जैसे कि घरेलू गैस आदि पर सबसिडी छोडऩे के लिए अपीलें कर रही है और इसके लिए बड़े-बड़े विज्ञापन दिए जा रहे हैं, वहीं ये ‘माननीय’ अपने वेतनों में बेतहाशा वृद्धि करने के लिए बेचैन हो रहे हैं। 
 
‘लडऩ-भिडऩ नूं वक्खो वक्ख, ते खान-पीन नूं इकठ्ठे’  वाली कहावत चरितार्थ करते हुए हमारे जनप्रतिनिधि जनहित के मामलों पर तो एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहते हैं लेकिन जब अपने वेतन-भत्तों को बढ़ाने तथा अन्य सुविधाओं की बात आती है तो सब मतभेद भुलाकर एक हो जाते हैं। 
 
ये सांसद संसद की कैंटीन की सबसिडी तो छोड़ नहीं रहे फिर आम लोगों को अपनी सबसिडी छोडऩे के लिए किस मुंह से कह रहे हैं।  

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