ऋण माफी से नहीं होगा किसानों को लाभ

Edited By Yaspal,Updated: 21 Dec, 2018 05:24 PM

debt waiver will not benefit farmers

महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा के किसानों द्वारा मुम्बई, दिल्ली या अन्य स्थानों में विरोध प्रदर्शन शुरू करने से पहले ही यह बात किसी से छुपी नहीं थी कि देश में...

महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा के किसानों द्वारा मुम्बई, दिल्ली या अन्य स्थानों में विरोध प्रदर्शन शुरू करने से पहले ही यह बात किसी से छुपी नहीं थी कि देश में एक बड़ा कृषि संकट है परंतु पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के आने तथा कुछ महीनों में होने वाले आम चुनावों को देखते हुए राज्यों तथा केन्द्र में हर दल ऋण माफी की बात करने लगा है।

हालांकि, गत वर्ष किसानों की आत्महत्याएं जारी रहने के बावजूद वित्त मंत्री अरुण जेतली ने स्पष्ट कर दिया था कि केन्द्र सरकार ऐसी किसी योजना का हिस्सा नहीं बनेगी और राज्यों को ऋण माफी की योजना का भार स्वयं वहन करना होगा। कहा गया कि सरकार वित्तीय घाटे को जी.डी.पी. के 3.3 प्रतिशत तक सीमित करने को समर्पित है। 2014 से अब तक सात राज्य लगभग 182.80 करोड़ रुपए की ऋण माफी योजनाओं की घोषणा कर चुके हैं। कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी कहते हैं कि 2019 के आम चुनावों को देखते हुए कुल कृषि ऋण माफी 4 लाख करोड़ रुपयों तक पहुंच सकती है।

हाल ही में तीन राज्यों में जीतने वाली कांग्रेस ने घोषणा की है कि वह सत्ता में आते ही (या 10 दिनों के भीतर) कृषि ऋण माफ कर देगी और अब केन्द्र सरकार भी कुछ ऐसी ही बातें कर रही है। ऐसा नहीं है कि ऋण माफी की जरूरत नहीं है या ऐसा पहली बार हो रहा है, वास्तव में देश की पहली ऋण माफी योजना 1990 में वी.पी.सिंह की सरकार के दौरान लागू की गई थी जिसकी कुल लागत 10 हजार करोड़ रुपए थी। 2008-09 के बजट में यू.पी.ए. सरकार ने अनुमानित 4 करोड़ किसानों के लगभग 71 हजार करोड़ रुपए के ऋण एकमुश्त माफ करने की योजना की घोषणा की थी।

ऐसे में अर्थशास्त्रियों ने एकजुट हो एक रिपोर्ट ‘एन इकॉनोमिक स्ट्रैटेजी फॉर इंडिया’ तैयार की। पूर्व आर.बी.आई. गवर्नर रघुराम राजन, अभिजीत बनर्जी, प्रांजुल भंडारी, साजिद चिनोय जैसे अर्थशास्त्रियों ने इस रिपोर्ट में कई वित्तीय सुधारों की वकालत की है। सबसे पहले उन्होंने कृषि ऋण माफी खत्म करने की जरूरत के तथ्य पर जोर दिया है क्योंकि देश के वित्त तथा निवेश के सामने विशाल समस्या मुंह फैलाए खड़ी है, वह भी ऐसे समय  में जबकि देश में व्याप्त असमानता के परिणामस्वरूप कृषि संकट पैदा हो चुका है।

रघुराम राजन कहते हैं, ‘‘सवाल है कि क्या ऋण माफी का लाभ उन किसानों को मिल रहा है जो सबसे अधिक प्रभावित हैं? अक्सर इनका लाभ पहुंच वालों को मिलता है न कि सबसे निर्धन किसानों को।’’ पंचवर्षीय आॢथक योजना बनाते हुए उन्होंने बताया कि ऋण माफी  जैसे मुद्दे खत्म कर देने के लिए उन्होंने चुनाव आयोग को लिखा है। कमेटी ने अधिक रोजगार पैदा करके किसानों को सहारा देने के लिए कई सुझाव दिए हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘स्पष्ट है कि विकास से पर्याप्त रोजगार पैदा नहीं हो रहे हैं। इसका पता आंकड़ों से चल रहा है... रेलवे के 90 हजार पदों के लिए अढ़ाई करोड़ युवा आवेदन कर रहे हैं जबकि ये नौकरियां अधिक वेतन वाली भी नहीं हैं।’’ परंतु अर्थशास्त्री तथा राजनेता जिन बातों को नजरअंदाज कर रहे हैं वे ये हैं कि आखिर हमारे सामने यह समस्या क्यों है? भारतीय किसान अन्य प्रदर्शनकारियों की तरह बसों को जलाने अथवा सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुक्सान पहुंचाने की बजाय आत्महत्या क्यों कर रहा है? क्यों ऐसे हालात सभी राज्यों में फैले हैं, केवल आंकड़ों का फर्क है? देश को रोटी देने वाला क्यों गरीबी के रसातल में समा गया है?

उत्तर सरल है-विभिन्न सरकारों की गलत नीतियां। ऋण माफी की जरूरत है परंतु यह हल केवल 6 महीने के लिए है जब अगली फसल का समय नहीं आता। यह भी महत्वपूर्ण है कि पहले तो ऋण बड़े किसानों को ही दिए जाते हैं। छोटे किसानों की न तो बैंकों तक पहुंच है और न ही उन्हें पता है कि बैंकों से कैसे ऋण प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए वे स्थानीय सूदखोरों तक ही सीमित रह जाते हैं जो 20 प्रतिशत महीने तक के भारी ब्याज पर उन्हें ऋण देते हैं। इन ऋणों का माफ होना नामुमकिन है और उनके लिए आत्महत्या का एकमात्र रास्ता ही खुला होता है।

छोटे किसानों को सीधे ऋण देने या उनके वर्तमान ऋणों  में बदलाव और उनकी आय सृजन की योजना बनाना भी एक हल हो सकता है। अपनी उपज का पूरा दाम नहीं मिलने पर किसान कृषि से ही किनारा करने लगे हैं। यहां पूछने वाला सवाल है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारें किसानों से उनकी उपज खरीदने के लिए अधिक कीमतों की घोषणा क्यों नहीं करती हैं? एक बार किसान अच्छी कमाई करने लगें तो उनके ऋण माफ करने की जरूरत नहीं रहेगी।

दूसरी ओर जो किसान ऋण देने में समर्थ भी हैं, वे भी पीछे हट जाते हैं कि आखिर में सरकार ऋण माफ कर देगी। किसानों के लिए चलाई गई विभिन्न योजनाओं जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में फूड इंडस्ट्रीज अथवा कोल्ड स्टोर्स की स्थापना आदि वर्षों से कागजों तक ही सीमित हैं। इन्हें सीधे लागू करने की जरूरत है। एक अन्य सवाल है कि भारतीय किसानों को विदेशों में अपनी उपज बेचने की इजाजत क्यों नहीं है? यह सुविज्ञात है कि भारत की 70 प्रतिशत अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है, फिर भी इसे लेकर कोई दूरदॢशता अथवा गांवों में रोजगार के अन्य साधन पैदा करने की इच्छाशक्ति क्यों नहीं है? -विजय कुमार

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!