अब बंद हो यह खूनी खेल ‘जल्लीकट्टू’ के जरिए चुने जाते थे कभी युवतियों के लिए दूल्हे

Edited By ,Updated: 19 Jan, 2024 04:20 AM

now stop this bloody game  jallikattu

तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में राज्य की संस्कृति का प्रतीक माना जाने वाला ‘जल्लीकट्टू’ लगभग 2000 वर्ष पुराना पारंपरिक खेल है, जिसमें सांडों की इंसानों से लड़ाई होती है।

तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में राज्य की संस्कृति का प्रतीक माना जाने वाला ‘जल्लीकट्टू’ लगभग 2000 वर्ष पुराना पारंपरिक खेल है, जिसमें सांडों की इंसानों से लड़ाई होती है। शुरू में लड़कियों के लिए सही दूल्हे का चुनाव करने के माध्यम के रूप में आयोजित होने वाले इस खेल में बे-लगाम दौड़ रहे सांडों को ‘बुल टेमर’ काबू करने की कोशिश करते हैं। 

‘बुल टेमर’ को सांड की पीठ या कूबड़़ पर लटक कर एक खास दूरी तय करनी होती है।  इस दौरान कई लोगों की मौत और कई बुरी तरह घायल भी हो जाते हैं तथा फैसला इस बात से होता है कि कोई ‘बुल टेमर’ सांड के कूबड़ पर कितने समय तक टिका रह पाता है। इसमें विजेता को बेहद साहसी व हर मुसीबत से लडऩे वाला माना जाता है। उसे ‘नायक’ की उपाधि व पुरस्कार में बड़ी राशि दी जाती है। 

यह खेल आमतौर पर तमिलनाडु में ‘मट्टू पोंगल’ कहलाने वाले 4 दिवसीय फसल उत्सव के एक हिस्से के रूप में तीसरे दिन आयोजित किया जाता है। तमिल शब्द ‘मट्टू’ का अर्थ है ‘सांड’ और पोंगल का तीसरा दिन खेतीबाड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मवेशियों को समॢपत होता है। प्राचीन तमिल संगम साहित्य ‘कलिताकम’ में एक गीत के बोल हैं- ‘कोलेटट्रू कोडु अंजुवनई मारुमैयुम...पुलले आया मैगल’ (अर्थात वह पुरुष जो सांड से लडऩे में डर रहा है, वह अगले जन्म में भी एक तमिल लड़की से विवाह नहीं कर पाएगा।) 

* 2008 से 2014 तक इस खेल में 43 लोगों व 4 सांडों ने जान गंवाई। 
* 2017 में 23 लोगों की मौत, 2500 लोग व कई सांड घायल हुए। 
* 14 जनवरी, 2018 को मदुरै में ‘जल्लीकट्टू’ देख रहे एक युवक पर गुस्साए सांड के कूद पडऩे से उसकी मौत हो गई और 29 लोग घायल हुए।  
* 2020 में ‘जल्लीकट्टïू’ के खेल में 5 लोगों ने जान गंवाई। 
* 14 जनवरी, 2021 को मदुरै में सांडों के हमले में 58 लोग घायल हुए। 
* 16 जनवरी, 2023 को तमिलनाडु में एक ‘बुल टेमर’ सहित 2 लोग मारे गए तथा कम से कम 75 लोग घायल हुए। मृत ‘बुल टेमरों’ में 9 सांडों को काबू करने में सफल रहने वाला अरविंद राज भी शामिल था, जिसे एक सांड ने सींगों में फंसा कर उछाल दिया था। 

* और अब 17 जनवरी, 2024 को शिवगंगा के ‘सिरवायल’ कस्बे में ‘जल्लीकट्टू’ के दौरान एक लड़के तथा 30 वर्षीय व्यक्ति की मृत्यु एवं 40 से अधिक लोग घायल हो गए।
इसी कारण इस खेल में आयोजकों पर पशुओं पर क्रूरता का आरोप भी लगता है तथा कई लोगों का मानना है कि इसे रोका जाना चाहिए। 

इस खेल के बारे में 2017 में सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो के अनुसार खेल शुरू होने से पहले सांडों को शराब पिलाने तथा पीटने के कारण मुकाबला शुरू होने पर वे गुस्से में बेतहाशा दौड़ते हैं। वीडियो वायरल होने के बाद ‘एनीमल वैल्फेयर बोर्ड आफ इंडिया’, ‘पीपुल फार द एथिकल ट्रीटमैंट ऑफ एनीमल्स’ (पेटा) और बेंगलुरू के एक एन.जी.ओ. ने इस दौड़ को रोकने के लिए याचिका भी दायर की थी। सुप्रीमकोर्ट ने गत वर्ष मई में तमिलनाडु के उस कानून को सही करार दिया था, जिसमें ‘जल्लीकट्टू’ को एक खेल के तौर में मान्यता दी गई है।

अदालत ने कहा , ‘‘तमिलनाडु का जानवरों के प्रति क्रूरता कानून (संशोधन)-2017 जानवरों को होने वाली पीड़ा और दर्द को काफी सीमा तक कम कर देता है।’’ तमिलनाडु के कानून मंत्री एस. रघुपति ने सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा था कि ‘‘हमारी परम्पराओं की रक्षा हुई है।’’ हमारे विचार में ‘जल्लीकट्टू’ में जहां मवेशियों क साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार हो रहा है वहीं इस खेल में ‘बुल टेमरों’ के प्राण भी जा रहे हैं। भले ही सुप्रीमकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार द्वारा जानवरों के प्रति क्रूरता कानून (संशोधन)-2017 को स्वीकार करके उसे जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया है परंतु इस खेल में तो सांड और मनुष्य दोनों ही एक-दूसरे द्वारा पीड़ित हो रहे हैं। अत: सुप्रीमकोर्ट को इस मामले में स्वत: संज्ञान लेकर इस खेल पर प्रतिबंध लगाने बारे पुनॢवचार करना चाहिए।—विजय कुमार 

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