कतर की आर्थिक नाकाबंदी और गैस कीमत बढऩे का खतरा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Jun, 2017 12:04 AM

qatar  s economic blockade and threat of gas price rise

सोमवार 5 जून को सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) तथा बहरीन ने कतर को कूटनीतिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के लिए एक .....

सोमवार 5 जून को सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) तथा बहरीन ने कतर को कूटनीतिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के लिए एक अप्रत्याशित पग उठाया। इसका कारण मिस्र, तुर्की और सीरिया में आतंकवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार मुस्लिम ब्रदरहुड नामक आतंकवादी संगठन के अलावा हमास और ईरान के साथ कतर के संबंध होना बताया गया। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि हमास को फिलीस्तीन और यहां तक कि सीरिया में भी आतंकवादी गतिविधियों के लिए ईरान द्वारा आॢथक सहायता प्रदान की जाती है।

इन चारों देशों ने इस आशय की घोषणा करने के साथ ही तत्काल प्रभाव से कतर से अपने राजदूत वापस बुला लिए और उसकी आर्थिक नाकाबंदी कर दी जिसमें कतर को उनके द्वारा अपने हवाई क्षेत्रों का इस्तेमाल करने की अनुमति पर रोक लगाना भी शामिल है। इतना ही नहीं यू.ए.ई. ने तो अपने नागरिकों को कतर के प्रति सहानुभूतिपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने तक से रोक दिया है और इसी बीच ट्यूनीशिया भी इस प्रतिबंध में इन देशों के साथ जा मिला है।

आश्चर्यजनक रूप से सऊदी अरब के नेतृत्व में उक्त पग उठाने वाले ये सभी देश सुन्नी विचारधारा के हैं और अलकायदा तथा आई.एस.आई.एस.आई. का समर्थन करते हैं। तो फिर कतर द्वारा हमास एवं मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन किए जाने के दृष्टिïगत वे उसके विरुद्ध क्यों उठ खड़े हुए?

इसका एक कारण तो कतर का बहिष्कार करने वाले उक्त देश यह बताते हैं कि कतर सरकार ने ईराकी आतंकवादी गिरोहों और ईरानी सेना को एक बिलियन अमरीकी डालर कतर के शाही परिवार के 26 सदस्यों के बदले में दिए थे जिन्हें उस समय बंधक बना लिया गया था जब वे ईराक में शिकार खेलने के लिए गए

आरोप लगाया जाता है कि इसमें से दो-तिहाई रकम दे भी दी गई है। बेशक इस सौदे का  प्रभाव अत्यंत गंभीर होगा क्योंकि ईराक में आतंकवादियों के हाथों में इतनी भारी रकम का जाना आतंकवादियों को अलग-थलग करने के सारे प्रयासों को ही नाकाम कर देगा परंतु जहां तक सऊदी अरब और कतर के संबंधों का प्रश्र है यह तो विवाद का एक अंश मात्र है।

कतर जो किसी समय खाड़ी का सबसे गरीब देश था आज इस क्षेत्र के सबसे अमीर देशों में से है। कतर द्वारा ईरान को समर्थन प्रदान करना अन्य  अरब देशों के साथ इसके विवादों का बड़ा कारण है क्योंकि अरब देश यह महसूस करते हैं कि कतर द्वारा ईरान को समर्थन से इस क्षेत्र में सत्ता का संतुलन बदल कर शिया मान्यता वाले ईरान के पक्ष में चला जाता है।

अपने गैस भंडारों से प्राप्त धन का इस्तेमाल कतर अपनी अंतर्राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कर रहा है और लंदन में रियल एस्टेट और मीडिया में भी भारी निवेश किया है। अफगान शांति समझौता कराने की कोशिश कर रहा है एवं 2022 के फुटबाल विश्व कप के आयोजन की दावेदारी प्राप्त कर ली है।

ब्रिटेन में शिक्षा प्राप्त कतर के वर्तमान अमीर शेख तामिन बिन हमाद अल थानी ने 2013 में अपने पिता से देश की सत्ता संभाली थी और उनके द्वारा कतर सरकार के स्वामित्व वाले इसके अंतर्राष्ट्रीय टी.वी. चैनल अल-जजीरा के आधुनिकीकरण की कोशिश के चलते भी अन्य अरब देश उससे 
नाराज हुए हैं।

हालांकि कतर और सऊदी अरब के बीच मतभेद और विवाद पहले से ही मौजूद थे परंतु अमरीका के राष्टï्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सऊदी अरब दौरे तथा उनके द्वारा ईरान की आलोचना के बाद ये और बढ़ गए तथा अरब देशों ने कतर पर बैन लगा दिया।

बेशक अधिकांश अमरीकी मीडिया ने ट्रम्प का समर्थन नहीं किया है लेकिन यह बहुत अधिक आश्चर्यजनक नहीं है कि यूरोपीय देश मोटे तौर पर इस मुद्दे पर खामोश ही हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश कतर से ही तेल और गैस खरीदते हैं। मिसाल के तौर पर इंगलैंड की तेल संबंधी 29 प्रतिशत जरूरतें कतर ही पूरी करता है। अब देखना यह है कि इस विवाद से विश्व में गैस के दाम कितने बढ़ते हैं और किस गुट के आतंकी ’यादा आतंक फैलाते हैं। 

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