पाकिस्तानी सेना अब फिल्म निर्माण में भी भारत को टक्कर देने लगी

Edited By ,Updated: 27 Jun, 2016 01:07 AM

the army is now engaged in film production to rival india

देश के बंटवारे के समय अनेक प्रतिभाशाली फिल्मकार,अभिनेता-अभिनेत्रियां आदि पाकिस्तान चले गए लेकिन भारत में सफलता के झंडे गाडऩे वाले वे फिल्मकार...

देश के बंटवारे के समय अनेक प्रतिभाशाली फिल्मकार,अभिनेता-अभिनेत्रियां आदि पाकिस्तान चले गए लेकिन भारत में सफलता के झंडे गाडऩे वाले वे फिल्मकार वहां अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सके और पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की तुलना में पिछड़ती चली गई।

 
इस समय भी पाकिस्तान में आतंकवाद के विषय पर आधारित ‘खुदा के लिए’  और विशुद्ध पारिवारिक समस्या पर आधारित ‘बोल’  जैसी बहुचर्चित फिल्मों का निर्माण करने वाले निर्देशक जोहेब मन्सूर  जैसे चोटी के फिल्मकार मौजूद हैं परन्तु पाकिस्तान की यह विडम्बना ही रही कि फिल्म निर्माण के प्रत्येक क्षेत्र  में बेशुमार प्रतिभाएं होने के बावजूद वह तरक्की नहीं कर पाया और वहां वर्ष में मुश्किल से 50 फिल्में ही बनती हैं जबकि इसके विपरीत भारत में इससे कई गुणा अधिक फिल्मों का निर्माण प्रति वर्ष होता है।
 
अलबत्ता धारावाहिकों में उसने भारत से बाजी मार ली है और पाकिस्तान निर्मित धारावाहिक भारत में इतने लोकप्रिय हैं कि आज भी भारत में एक टैलीविजन चैनल पूरी तरह से पाकिस्तानी धारावाहिक ही दिखाता है। 
 
पाकिस्तान का फिल्म उद्योग बॉलीवुड से बहुत छोटा है। इस वर्ष पाकिस्तान में लगभग 48 स्थानीय फिल्मों के प्रदर्शन की सम्भावना है। यह एक नया रिकॉर्ड है परंतु अप्रैल 2014 से मार्च 2015 के बीच भारत में इससे 38 गुणा ज्यादा फिल्में रिलीज हुई थीं। अब पाक सेना अपने सबसे बड़े ‘प्रतिद्वंद्वी’ भारत की लोकप्रिय फिल्म इंडस्ट्री को भी टक्कर देने की कोशिश कर रही है। पाक व भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के बीच व्याप्त भारी ‘असंतुलन’ को सुधारने के लिए पाक सेना कदम उठा रही है। 
 
पाकिस्तानी सेना की मदद से फिल्में बनाने वाले एक प्रमुख फिल्म निर्देशक हसन वकास राणा के अनुसार, ‘‘सेना पटकथा देखती है और यदि उन्हें यह थोड़ी भी अच्छी लगे तो वे आपको हर चीज उपलब्ध करवा सकते हैं।’’
 
पाक सेना फिल्मों में पैसा नहीं लगा रही बल्कि यह कम बजट वाली फिल्मों को बड़े बजट की फिल्में  बनाने में हर सम्भव मदद करती है। इसके लिए वह हर तरह का सैन्य सामान-बंदूकें, विस्फोटक, हैलीकॉप्टर से लेकर सेना की जमीन पर शूटिंग करने की स्वीकृति भी देती है। 
 
यहां तक कि पाक सेना अपने सैनिकों को फिल्मों की शूटिंग के लिए भी उपलब्ध करवाती है। हसन बताते हैं, ‘‘जब हम लड़ाई का दृश्य शूट कर लेते हैं तो हमारे एक्स्ट्रा कलाकार (पाकिस्तानी सैनिक) सीधे असल मुठभेड़ का सामना करने के लिए अपनी बैरकों में लौट जाते हैं।’’  
 
कुछ लोग सेना को श्रेय दे रहे हैं कि वह दशकों से अत्यधिक टैक्सों के बोझ से दबी रही पाक फिल्म इंडस्ट्री को पुनर्जीवित कर रही है जबकि दूसरी ओर उदार आलोचक सेना पर कट्टर राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं है कि सेना उन पटकथाओं को ही पसंद करती है जिनमें उसकी अच्छी छवि पेश की गई हो। वहीं पाक सेना द्वारा प्रायोजित ये फिल्में भारत तथा इसके नेताओं की बेहद बुरी छवि प्रतिङ्क्षबबित करती हैं जिन्हें पाक सेना के जनरल बुरी तरह भ्रष्ट मानते हैं।
 
हसन की पहली फिल्म में एक कामोत्तेजक महिला भारतीय जासूस को दिखाया गया है जो पाकिस्तानी तालिबान के साथ मिल कर आतंकवादी हमलों की साजिश रचती है। वैसे भी पाकिस्तान के अधिकतर सुरक्षा प्रतिष्ठान पाकिस्तान में जिहाद भड़काने का दोष भारत के सिर मढऩे को हमेशा तैयार रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इस तरह की शर्तों से बंधी सहायता वास्तव में फिल्मों जैसी एक रचनात्मक इंडस्ट्री के फलने-फूलने में किस हद तक मददगार हो सकती है? 
 
सिनेमाओं के मालिक और फिल्म फाइनांसर नदीम मांडवीवाला का कहना है कि पाकिस्तानी दर्शक बेमतलब भारत की आलोचना को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। पाकिस्तान में आधिकारिक प्रतिबंध के बावजूद बॉलीवुड फिल्में लोकप्रिय हैं क्योंकि तीसरे देशों के माध्यम से फिल्में खरीदने वाले वितरकों के प्रति सरकार ने आंखें मूंद रखी हैं। 
 
हसन भी इससे सहमत हैं। गत वर्ष उन्होंने भारतीय फिल्म ‘फैंटम’ के जवाब में फिल्म बनाने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था। ‘फैंटम’ में भारतीय जासूसों को पाकिस्तान में घुस कर आतंकवादियों को मारते दिखाया गया था। हसन कहते हैं, ‘‘पाकिस्तान को भारत विरोधी मानसिकता से बाहर निकलने की जरूरत है।’’
 
अब देखने की बात सिर्फ इतनी है कि पाकिस्तान में सेना के साये में वहां के फिल्म उद्योग की सृजनात्मकता किस हद तक कायम रहती है या किस हद तक पनपती है क्योंकि पाकिस्तान की सत्ता पर हावी सेना अपनी फिल्मों में भारत विरोधी प्रचार तत्व को अवश्य ही शामिल करना चाहेगी जिससे वहां की फिल्मों के कथानक और गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पडऩा तय है। 
 

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