‘पारिवारिक जीवन के बारे में’ तीन महत्वपूर्ण अदालती फैसले!

Edited By ,Updated: 26 Jan, 2024 07:05 AM

three important court decisions regarding family life

परिवार में स्नेह तथा तालमेल न हो तो जीवन नरक बन जाता है। इसी को रेखांकित करते हुए हाल ही में तीन न्यायाधीशों जस्टिस सुभाष चंद, जस्टिस सुरेश कुमार कैत तथा जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों के हवाले से तीन महत्वपूर्ण फैसले सुनाए...

परिवार में स्नेह तथा तालमेल न हो तो जीवन नरक बन जाता है। इसी को रेखांकित करते हुए हाल ही में तीन न्यायाधीशों जस्टिस सुभाष चंद, जस्टिस सुरेश कुमार कैत तथा जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों के हवाले से तीन महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं : 

* 12 जनवरी को झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष चंद ने मनोज नामक व्यक्ति को आदेश दिया कि उसे हर हाल में अपने बुजुर्ग पिता को गुजारे के लिए 3000 रुपए मासिक देने होंगे क्योंकि पिता से जमीन का हिस्सा ले लेने के बावजूद उसने 15 वर्षों से उनका भरण-पोषण नहीं किया। जस्टिस सुभाष चंद ने अपने फैसले में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का उल्लेख करते हुए लिखा : 

यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा-पृथ्वी से अधिक भारी क्या है? स्वर्ग से भी ऊंचा क्या है? हवा से भी क्षणभंगुर क्या है और घास से अधिक असंख्य क्या है?’ युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, ‘‘मां पृथ्वी से भी अधिक भारी है, पिता स्वर्ग से भी ऊंचा है। मन हवा से भी क्षणभंगुर है और हमारे विचार घास से भी अधिक हैं।’’ इसकी व्याख्या करते हुए जस्टिस सुभाष चंद ने मनोज को अपने पिता के प्रति अपना पवित्र कत्र्तव्य निभाने का आदेश दिया और कहा,‘‘भले ही पिता कुछ कमाते हों, उनका भरण-पोषण करना पुत्र का पवित्र कत्र्तव्य है।’’ 

* 23 जनवरी, 2024 को जस्टिस सुभाष चंद ने एक अन्य फैसले में यजुर्वेद के श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘हे नारी, तुम चुनौतियों से हारने वाली नहीं हो। तुम सबसे शक्तिशाली चुनौती को पराजित कर सकती हो।’’ फिर उन्होंने मनुस्मृति के हवाले से कहा, ‘‘जिस परिवार की महिलाएं दुखी होती हैं, वह परिवार शीघ्र ही नष्टï हो जाता है और जहां महिलाएं संतुष्टï रहती हैं, वह परिवार सदा ही फलता-फूलता है।’’ एक केस, जिसमें एक महिला अपनी सास की सेवा करने से बचने के लिए ससुराल छोड़ मायके चली गई थी, उसके पति द्वारा अपनी नाराज पत्नी को जरूरी निर्देश देने के लिए दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस सुभाष चंद ने कहा : 

‘‘वृद्ध सास-ससुर और दादी-सास की सेवा करना बहू का कत्र्तव्य और भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। वह अपने पति पर अपनी मां से अलग होने का दबाव नहीं बना सकती। पत्नी के लिए अपने पति की मां और नानी की सेवा करना अनिवार्य है। उसे इनसे अलग रहने की जिद नहीं करनी चाहिए।’’ 

* 23 जनवरी को ही दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस नीना बंसल कृष्णा भी शामिल थीं, ने एक महिला के अपने पति के साथ तालमेल नहीं बैठाने के रवैए को मानसिक क्रूरता करार देते हुए उसके पति के पक्ष में तलाक का आदेश दे दिया और कहा : 

‘‘अपने पति के साथ कोई भी मतभेद बातचीत से सुलझाने की बजाय वह अपने जीवनसाथी को सार्वजनिक रूप से अपमानित करती थी। जीवन साथी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला अनुचित और निंदनीय आचरण मानसिक क्रूरता है।’’ उल्लेखनीय है कि 16 वर्ष के विवाहित जीवन के बाद यह दम्पति अलग हो गया था। इस केस में जहां पति ने अपनी पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाया, तो पत्नी ने दहेज मांगने का आरोप लगाया था। 

पीठ ने कहा, ‘‘दोनों पक्षों में मन-मुटाव एक वैवाहिक रिश्ते में होने वाला आम मन-मुटाव नहीं है। यह पति के प्रति पत्नी का क्रूरता पूर्ण कृत्य है।’’ झारखंड तथा दिल्ली हाईकोर्टों के उक्त फैसले माता-पिता और सास-ससुर की सेवा से भागने वाले बेटों और बहुओं के लिए एक सबक के समान हैं, जिसके लिए जस्टिस सुभाष चंद, जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा साधुवाद के पात्र हैं। हम आशा करते हैं कि यदि सभी जज इस तरह के शिक्षाप्रद फैसले सुनाने लगें तो अनेक पारिवारिक क्लेश सुलझ सकते हैं।—विजय कुमार                  

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