भारत के लिए लोकतांत्रिक और स्थिर पाकिस्तान अत्यंत महत्वपूर्ण

Edited By Updated: 11 May, 2023 05:22 AM

democratic and stable pakistan is very important for india

पाक्सितान एक बार फिर संकट के घेरे में है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी, जो पिछले कुछ महीनों में निकट दिखाई दे रही थी, ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू करवा दिया है।

पाक्सितान एक बार फिर संकट के घेरे में है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी, जो पिछले कुछ महीनों में निकट दिखाई दे रही थी, ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू करवा दिया है।यह पहली बार नहीं है कि देश के किसी पूर्व प्रधानमंत्री को गिरफ्तार किया गया। कम से कम 4 अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों का भी यही हश्र हुआ था। इनमें 3 बार के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में कई बार गिरफ्तार किया गया था, दो बार की प्रधानमंत्री बेनकाीर भुट्टो जिनकी बाद में हत्या कर दी गई थी, यूसुफ रकाा गिलानी और शाहिद खाकान अब्बासी शामिल हैं।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि राजनीतिक गिरफ्तारी पाकिस्तान में एक विवादास्पद मुद्दा है और कई राजनेताओं और कार्यकत्र्ताओं ने सरकार पर असहमति और विरोध को शांत करने के लिए गिरफ्तारी और कारावास का उपयोग करने का आरोप लगाया है। हालांकि इस बार फर्क यह है कि प्रदर्शनकारियों ने पाकिस्तानी सेना के जनरल हैडक्वार्टर के साथ-साथ स्थानीय कमांडर के आवास पर भी हमला किया है।

आज तक प्रदर्शनकारियों ने कभी भी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना नहीं बनाया था लेकिन इस बार का हमला चौंकाने वाला नहीं है क्योंकि इमरान खान पाकिस्तान की राजनीति में सेना के शामिल होने के खिलाफ खुल कर बात करते रहे हैं। विडम्बना यह रही है कि उन्हें भी सेना की मदद से देश का प्रधानमंत्री बनाया गया था। उनकी पार्टी बहुमत के निशान से थोड़ी कम हो गई थी लेकिन सेना ने सुनिश्चित किया है कि उन्हें छोटे क्षेत्रीय दलों से पर्याप्त समर्थन मिले। बाद में इमरान ने सेना के नेतृत्व के साथ मतभेद विकसित किए और अपनी लोकप्रियता में विश्वास करने लगे।

इमरान ने सेना की कुछ सिफारिशों को अवरुद्ध किया जिसमें इसकी खुफिया शाखा आई.एस.आई. के प्रमुख भी शामिल थे। इसके बाद तत्कालीन सैन्य प्रतिष्ठान की सक्रिय भागीदारी से उन्हें कार्यालय से बाहर कर दिया गया था। तब से देश भर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं और देश के आंतरिक मामलों में दखल देने के लिए एक विदेशी शक्ति, जाहिर तौर पर अमरीका पर आरोप लग रहे हैं। 
1958 में अयूब खान के पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने के साथ पाकिस्तान का एक उतार-चढ़ाव भरा राजनीतिक इतिहास रहा है। पाकिस्तान ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपने 75 वर्षों के अस्तित्व में से करीब 33 वर्षों तक सेना द्वारा शासन किया है। इस अवधि में 25 से अधिक प्रधानमंत्री भी देखे गए और उनमें से कोई भी 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान सेना के समर्थन के बिना देश में कोई भी असैन्य सरकार टिक नहीं सकती है।

वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को भी उसी सेना का समर्थन प्राप्त है जिसने सक्रिय रूप से इमरान खान को सत्ता से हटाने की योजना बनाई थी। भारत के नजरिए से इसका मतलब अपने पड़ोसी देशों के साथ  संबंधों को लेकर अनियमितताओं का एक और चरण होगा। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सीमा पर स्थिति में स्पष्ट सुधार हुआ है। सीमा पर गोलाबारी की घटनाओं में भारी कमी आई है और साथ ही सीमापार से आतंकवादियों की घुसपैठ में भी कमी देखी गई है।

जाहिर तौर पर पाकिस्तानी सेना के सुझाव पर करतारपुर साहिब कॉरीडोर के खुलने से भी दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार हुआ था। हालांकि दोनों देश शांत लहरों का आदान-प्रदान कर रहे थे। अपने पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी की यात्रा के दौरान  भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के हालिया बयान को भारत द्वारा  पाकिस्तान के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत करने के रूप में देखा जा सकता है। 

भारत के लिए एक लोकतांत्रिक और स्थिर पाकिस्तान अत्यंत महत्वपूर्ण है। कश्मीर की कड़ाही को उबलता रखने में सेना का अपना निहित स्वार्थ है। एक अस्थिर पाकिस्तान भारत के लिए हमेशा बुरी खबर है क्योंकि यह विभिन्न एजैंसियों को ध्यान हटाने के लिए प्रेरित करता है और इस प्रक्रिया में यह औसत भारतीय और पाकिस्तानी नागरिक हैं जो पीड़ित हैं और भारतीय सुरक्षा  बलों को सतर्क रहना पड़ता है।

पाकिस्तान खाद्य और अन्य उत्पादों की भारी कमी के साथ अपने सबसे खराब आॢथक संकट से जूझ रहा है। गेहूं के आटे जैसी बुनियादी जरूरतों की चीजों की बिक्री और वितरण को लेकर भी दंगे हुए हैं। पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में भारी उछाल देखा गया है। पाकिस्तान में एक लीटर पैट्रोल की कीमत स्थानीय मुद्रा में 285 रुपए तक पहुंच गई है। देश 40 मिलियन अमरीकी डॉलर के कर्ज के बोझ के तले दबा हुआ है और यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भी इसे और अधिक धन उधार देने में संकोच कर रहा है। यह अपने नागरिकों का ध्यान हटाने के तरीके के बारे में सोच सकता है और भारत सबसे संभावित लक्ष्य हो सकता है। -विपिन पब्बी

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