विकसित भारत 2047 : अन्नदाता की अनदेखी नहीं कर सकते

Edited By Updated: 19 Nov, 2025 05:33 AM

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2047 तक ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य एक बुनियादी सवाल खड़ा करता है कि जब देश आजादी का शताब्दी वर्ष मना रहा होगा, तब हमारे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी होगी? बीते तीन दशकों से हर वेतन आयोग के साथ सरकारी कर्मचारियों के वेतन-पैंशन में इजाफा देश की...

2047 तक ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य एक बुनियादी सवाल खड़ा करता है कि जब देश आजादी का शताब्दी वर्ष मना रहा होगा, तब हमारे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी होगी? बीते तीन दशकों से हर वेतन आयोग के साथ सरकारी कर्मचारियों के वेतन-पैंशन में इजाफा देश की बढ़ती आर्थिक ताकत एवं बेहतर जीवनस्तर को दर्शाता है। लेकिन इसके ठीक उलट एक साधारण किसान की आमदनी बढ़ती महंगाई व खेती पर बढ़ती लागत के कारण पिछड़ रही है। नैशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन (एन.एस.एस.ओ.) के मुताबिक, खेती से जुड़े एक परिवार की मासिक औसत आमदनी मात्र 10,218 रुपए है, जो एक सरकारी कर्मचारी की शुरुआती तनख्वाह के एक चौथाई से भी कम है। आमदनी में गहराती यह खाई केवल किसानों की आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि यह एक गंभीर चेतावनी है। इसे अभी नहीं सुलझाया गया, तो हमें दो अलग भारत देखने को मिलेंगे। एक शहरों में चमकता ‘विकसित भारत’ व दूसरा गांवों में संघर्ष करता ‘वंचित भारत’। 

खेती से आमदनी गुजारे लायक भी नहीं : भारत की 42 प्रतिशत से अधिक आबादी खेती पर निर्भर है, लेकिन देश की जी.डी.पी. में योगदान 15 प्रतिशत पर अटका है। यह बड़ा अंतर दर्शाता है कि खेती में प्रोडक्टिविटी एवं वैल्यू एडिशन जरूरत मुताबिक नहीं हो रहा। खेती सैक्टर में आधुनिक टैक्नोलॉजी के लिए जी.डी.पी. का मात्र 0.4 प्रतिशत ही आर. एंड डी. पर खर्च हो रहा है, जबकि विकसित देश 1 से 3 प्रतिशत तक निवेश करते हैं। जमीन व जल जैसे प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं, औसत खेत के आकार घटकर 1.08 हैक्टेयर रह गए हैं। ऐसे में इन्नोवेशन आधारित उत्पादकता बढ़ाए बगैर किसान मुश्किल से गुजारे भर की आमदनी पर अटके रहेंगे, जबकि बाकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती जाएगी।

सबसिडी से प्रोडक्टिविटी की ओर : भारत की मौजूदा कृषि नीति का जोर इनपुट सबसिडियों पर है। फर्टिलाइजर, बिजली, सिंचाई, पी.एम. किसान सम्मान निधि, पी.एम. फसल बीमा योजना व अनाज की सरकारी खरीद पर सालाना 4 लाख करोड़ से ज्यादा खर्च के बावजूद ये योजनाएं प्रोडक्टिविटी व टिकाऊ विकास सुनिश्चित नहीं कर पाईं। 4 लाख करोड़ का एक-तिहाई भी आर. एंड डी., कृषि विस्तार सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर पर लगाया जाए तो परिणाम बेहतर होंगे।

टैक्नोलॉजी की क्रांति अभी अधूरी : दुनिया के प्रमुख कृषि देश सबसिडी के दम पर नहीं, बल्कि सांइस-टैक्नोलॉजी व संस्थागत सुधारों के कारण समृद्ध हुए हैं। इसराईल ने मरुस्थल में भी सटीक सिंचाई व जल दक्षता के मॉडल से दुनिया की अगुवाई की। हरियाणा से भी छोटा नीदरलैंड्स दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पाद निर्यातक देश बना। इसका श्रेय बड़े पैमाने पर कृषि अनुसंधान, डाटा आधारित खेती व उन्नत ग्रीनहाऊस टैक्नोलॉजी को जाता है। चीन ने भी अनुसंधान एवं डिजिटल विस्तार सेवाओं के जरिए ग्रामीण व शहरी आबादी की आमदनी के बीच की खाई कम की है। भारत की एग्री-टैक व्यवस्था अब ड्रोन स्प्रेइंग, मिट्टी मानचित्रण, फार्म-गेट लॉजिस्टिक्स व डिजिटल मंडियों वाले स्टार्टअप्स की दिशा में बढ़ रही है। एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर एग्रीकल्चर और पी.एम. किसान ड्रोन योजना का बड़े पैमाने पर विस्तार हो रहा है। 

मील के पत्थर साबित हुए देशों से सबक : 1960 के दशक में जब जापान ने विकास की छलांग लगाई, तो उसकी बुनियाद ग्रामीण इलाकों के आधुनिकीकरण, सर्वसाक्षरता, ग्रामीण सहकारी समितियों और खेती के मशीनीकरण पर टिकी थी। दक्षिण कोरिया ने 1970 के दशक में ‘सायमुल आंदोलन’ के जरिए गांवों को मजबूत बनाकर औद्योगिक क्रांति की नींव रखी। ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए ग्रामीण भारत को केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि विकास का भागीदार बनाना होगा। 

खेती के हालात बदलने को चार अहम कदम: पहला, राष्ट्रीय फसल क्षति मुआवजा कोष। फसल बीमा क्लेम की धीमी व विवादित प्रक्रिया के बदले एक पारदर्शी जिला-स्तरीय कोष के जरिए किसानों को बाढ़, सूखे या कीट हमलों की स्थिति में तुरंत राहत दी जा सकती है। पी.एम. फसल बीमा योजना करीब 5 करोड़ किसानों को कवर करती है, पर क्लेम में देरी एवं प्रीमियम विवादों ने ऐसी योजनाओं पर किसानों का भरोसा कमजोर किया है। एक समॢपत एवं असरदार फसल मुआवजा सिस्टम भरोसे को कायम कर सकता है। 

दूसरा, कृषि अनुसंधान में निवेश। कृषि अनुसंधान का 9,000 करोड़ रुपए का बजट इन्नोवेशन के लिए जरूरी राशि का आधा भी नहीं। इस निवेश को देश की जी.डी.पी. के 1 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए, तो सूखा-रोधी फसलों की किस्में, बायो-फर्टिलाइजर, जलवायु सहनशील बीज व बेहतर भंडारण जैसे इन्नोवेशन संभव होंगे। कृषि विज्ञान केंद्रों को रियल-टाइम डिजिटल सलाह सेवाओं से जोड़कर सीधे किसानों के स्मार्टफोन तक पहुंचाया जा सकता है। तीसरा, संस्थागत एवं बाजार सुधार। किसान उत्पादक संगठनों (एफ.पी.ओ.) को मजबूत बाजार लिंक मिले, कांट्रैक्ट फार्मिंग में निवेश सुरक्षा का प्रावधान हो, वेयरहाऊस रसीद के जरिए बैंकों से किसानों को सस्ता कर्ज मिले तो किसान बढ़े दाम पर फसलें बेच सकेंगे। ‘ई-नेम’ मार्केट पोर्टल को ‘इंटरऑपरेबल’ मंच बनाया जाए, ताकि किसान अपनी उपज देशभर में कहीं भी व विदेशों में बेच सकें।  चौथा, जलवायु परिवर्तन से मुकाबला। 2047 तक कृषि को नए जलवायु जोखिमों का सामना करना होगा। विश्व बैंक के अनुसार, जलवायु बदलाव के कारण कृषि आय 15 से 18 प्रतिशत तक घट सकती है। भारत की 55 प्रतिशत से अधिक खेती वर्षा पर निर्भर है पर बिगड़ा मानसून चक्र खेती के लिए खतरे की घंटी है। जी-20 में भारत की खाद्य सुरक्षा पहल के लिए आई.सी.ए.आर. व नासा के जलवायु डाटा सहयोग से इन्नोवेटिव समाधान किए जा सकते हैं।

समृद्धि की राह : भारत के विकास का रास्ता साफ है लेकिन यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास और सबका विश्वास’ को हकीकत में लागू करने पर निर्भर करेगा। क्या विकसित भारत सबका भारत बनेगा, या दो अलग अर्थव्यवस्थाओं में बंटा भारत? 2047 के विकसित भारत की यात्रा में समृद्धि के सांझेदार अन्नदाता की अनदेखी नहीं की जा सकती।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं) डा. अमृत सागर मित्तल (वाइस चेयरमैन सोनालीका) 

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