युवा वर्ग में बढ़ रही हिंसा की प्रवृत्ति को समाप्त करने की शुरुआत घर से हो

Edited By ,Updated: 29 May, 2023 04:57 AM

ending the trend of increasing violence in the youth should start from home

भारत में युवाओं में हिंसा की प्रवृत्ति अत्यंत बढ़ती जा रही है और यहां तक कि अब तो स्कूलों-कालेजों में पढऩे वाले किशोर-किशोरियां हत्या जैसे जघन्य अपराध करने लगे हैं। इसका नवीनतम प्रमाण 18 मई को ग्रेटर नोएडा के थाना क्षेत्र में मिला जहां प्राईवेट...

भारत में युवाओं में हिंसा की प्रवृत्ति अत्यंत बढ़ती जा रही है और यहां तक कि अब तो स्कूलों-कालेजों में पढऩे वाले किशोर-किशोरियां हत्या जैसे जघन्य अपराध करने लगे हैं। इसका नवीनतम प्रमाण 18 मई को ग्रेटर नोएडा के थाना क्षेत्र में मिला जहां प्राईवेट विश्वविद्यालय के एक छात्र ने अपनी साथी छात्रा की गोली मार कर हत्या करने के बाद स्वयं भी आत्महत्या कर ली।

उल्लेखनीय है कि 8 मार्च को मृतका ने कालेज प्रशासन के वरिष्ठ सदस्यों को पत्र लिख कर छात्र द्वारा उसके साथ दुव्र्यवहार करने की शिकायत करके प्रशासन से सुरक्षा की मांग की और कहा था कि उसने 2 महीनों में उस पर 4 बार हमले किए और एक बार उसका गला इतनी जोर से दबाया कि वह बेहोशी की हालत में पहुंच गई। उक्त घटना से लगभग 2 माह पूर्व 4 मार्च को  राजस्थान के झालावाड़ जिले के एक अध्यापक के ब्लाइंड मर्डर का पुलिस ने गत 7 अप्रैल को खुलासा कर इसमें शामिल 3 नाबालिगों को पकड़ा है। स्कूल में सबके सामने डांटने और टी.सी. काट देने से नाराज होकर एक नाबालिग ने अपने दो अन्य साथियों के साथ मिल कर अध्यापक की चाकू से ताबड़तोड़ वार कर हत्या कर दी थी। 

कई शोध अध्ययनों का मानना है कि किशोरों में हिंसक व्यवहार के पीछे घर और समुदाय में हिंसा से संपर्क में आना या होते हुए देखना, इसमें आक्रामकता या शारीरिक शोषण का शिकार होना भी है। ड्रग्स या शराब का उपयोग तो है ही, परंतु सबसे बढ़कर अस्त्र या शस्त्रों का आसानी से उपलब्ध होना है। ऐसी घटनाओं से समाज में और युवाओं में हिंसा की प्रवृत्ति बढऩे का संकेत मिलता है, जिसे कम करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। लड़के-लड़कियों को बराबरी का मतलब सिखाना और यह समझाना जरूरी है कि अगर उनको न बोला जाए तो उसका मतलब उन्हें न ही समझना चाहिए। 

हमें यह समझने और सबको समझाने की जरूरत है कि प्रतिकूल स्थिति में भी उत्तेजित या आक्रामक होने की बजाय उस स्थिति को स्वीकार करके समाधान ढूंढने की आवश्यकता है। इसके अलावा शिक्षा संस्थानों के प्रबंधकों को भी अपने यहां युवाओं और किशोरों में दिखाई देने वाली इस तरह की प्रवृत्तियों की ओर ध्यान देने और इस तरह की शिकायतें मिलने पर उन्हें दूर करने की दिशा में अविलंब कदम उठाना चाहिए, नहीं तो युवाओं में ङ्क्षहसा की यह प्रवृत्ति बढ़ती ही चली जाएगी।

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