नाम जपने में ‘डर’ या ‘सावधानी’

Edited By ,Updated: 28 Mar, 2025 05:11 AM

fear or caution in chanting the name

पंजाब विधानसभा के बजट सत्र में 14 मार्च को कांग्रेस तथा विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव सदन के फ्लोर पर पेश किया। निंदा प्रस्ताव का कारण था गृहमंत्री  अमित शाह का संसद में आतंकवाद पर...

पंजाब विधानसभा के बजट सत्र में 14 मार्च को कांग्रेस तथा विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव सदन के फ्लोर पर पेश किया। निंदा प्रस्ताव का कारण था गृहमंत्री  अमित शाह का संसद में आतंकवाद पर बोलते हुए कहना कि आज कुछ लोग आसाम की जेल में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ कर रहे हैं। बाजवा ने गृह मंत्री के इस वक्तव्य के निंदा प्रस्ताव पर, अपनी बात रखते हुए कहा कि पाठ तो गुटका साहिब का होता है, गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ तो प्रकाश किए बिना हो ही नहीं सकता। उनके तर्क में कितनी गहराई और सच्चाई है तथा इसको इस तरह उठाना कहां तक तर्कसंगत है यह तो सिख विद्वान ही बता सकते हैं। इस ङ्क्षनदा प्रस्ताव को विधानसभा ने रद्द कर दिया। इसके लिए स्पीकर कुलतार सिंह संगवा तथा समस्त सदन साधुवाद का पात्र है जिन्होंने अपनी दूरअंदेशी का परिचय दिया।

परन्तु इस प्रकरण ने कई अहम और संवेदनशील सवाल पैदा कर दिए तथा सोचने और लिखने के लिए मजबूर कर दिया। पहला, कि क्या कांग्रेस, पंजाब में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए, दोबारा अति संवेदनशील मुद्दों को हवा देकर, 80-90 के दशक का खूनी खेल खेलना चाहती है? दूसरा, जिस प्रकार राहुल गांधी संसद में, विदेशी एजैंसियों तथा विदेशी संगठनों के एजैंडे को लागू करने के प्रयास में नजर आते हैं, क्या नेता विपक्ष  प्रताप सिंह बाजवा, गांधी के आदेश पर, पंजाब विधानसभा में भी उसी दिशा में काम करने का प्रयास कर रहे हैं?

तीसरा, क्या सिख समाज इन राजनेताओं को, आतंकवाद से शान्ति की ओर बढ़ रहे पंजाब में दोबारा, ऐसी धार्मिक घटनाओं पर राजनीति करने की छूट देता है? अब मैं गृहमंत्री के वक्तव्य की तरह एक और उदाहरण पेश करता हूं। गुरु साहिब के प्रकट दिवस पर गुरु घर में नतमस्तक होना मेरे जीवन का अहम अंग भी है और दिनचर्या भी। ऐसे ही एक कार्यक्रम में गुरुद्वारा साहिब में अपना वक्तव्य समाप्त करते हुए जयकारा लगाया, ‘श्री वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह’। इस बात पर कुछ नौजवानों ने गुस्सा जाहिर किया कि आपने ‘श्री’ क्यों लगाया। मैं गलत था या ठीक यह भी सिख विद्वान ही बता सकते हैं। खैर, मुझे नहीं पता कि वे एतराज करने वाले नौजवान राजनीतिज्ञ थे या विद्वान। पर संगत में बैठे कुछ वरिष्ठ लोगों ने इस बात को समाप्त करवा दिया।

ऐसी घटनाएं पंजाब में अक्सर सुनने को मिलती हैं। परन्तु सवाल है कि पंजाब में जन्म लेने से अब तक मेरे जिन्दगी के करीब 6 दशक सिख सहपाठियों, दोस्तों, भाइयों, गुरु घर में श्रद्धा, गुरु घर में नतमस्तक तथा शबदों का श्रवण तथा गुनगुनाने का जीवन में बिना रुकावट के निरंतर प्रवाह रहा है। विद्यार्थी काल में पटियाला में माता काली जी के मंदिर के अंदर तथा श्री गुरुद्वारा दुखनिवारण साहिब जी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के प्रकाश में नमन करना नित्यकर्म था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यकत्र्ता होने के नाते शाखा में श्री गुरु तेग बहादुर जी एवम् श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के बलिदान के किस्से तथा शबद ने उस भावना को और गहरा बनाया। 

नया सवाल यह पैदा होता है कि गुरु साहिब में अटूट श्रद्धा होने के बावजूद, जिसने अमृत न छका हो, बानी हजारों बार सुनी हो पर कभी पढ़ी न हो, क्या वह इन बारीकियों और मर्यादाओं को जान पाता है या उसको मालूम होता है या गहराई से सोच पाता है। ऐसी गलतियां उससे न चाह कर भी अनजाने में हो जाती हैं। जो वह कभी करना नहीं चाहता। पर पंजाब में एक बड़े वर्ग द्वारा इन बातों को सिख समाज के सामने पहाड़ बना कर पेश करना और फिर अपने स्वार्थ के लिए उसका उपयोग करना आम बात है। यह वर्ग हमेशा इस ताक में रहता है और भाईचारे के मजबूत बंधन को दीमक की तरह खाने का काम करता है। मेरे जैसे करोड़ों लोग जिनकी सिख गुरुओं में श्रद्धा हो, उनके मन के कोने में एक डर सा बना रहता है कि कहीं गलती न हो जाए और मुद्दा न खड़ा हो जाए वह बोलने से डरने लगा है, कहीं जाने से घबराता क्यों है? 

ऐसे सब पंजाबी कहां जाएं, क्या करें, गुरु साहिब के प्रति अपनी भावनाएं बिना किसी भय के कैसे प्रकट करें? इसके निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। किसी को तो आगे आना होगा। जिससे भविष्य में समाज को तोडऩे वाला ऐसा मुद्दा न उठाया जा सके। न ही कोई अलगाववादी सोच इसका फायदा उठा सके और पंजाबी भाईचारा मजबूत हो सके।-प्रवीण बांसल(पूर्व सीनियर डिप्टी मेयर, लुधियाना)

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