बनाया जाता है राहुल की बातों का बतंगड़

Edited By Updated: 15 Mar, 2023 07:17 AM

mischief is made of rahul s words

राहुल गांधी की बातों का बतंगड़ बनाया जाता है। इसके लिए कुछ तो कांग्रेस वाले भी दोषी हैं और बाकी मीडिया के साथी हैं।

राहुल गांधी की बातों का बतंगड़ बनाया जाता है। इसके लिए कुछ तो कांग्रेस वाले भी दोषी हैं और बाकी मीडिया के साथी हैं। गांधी जी एक व्याख्यान देते थे ‘अंधे का हाथी’। उनका कहना था कि अंधे आदमी ने हाथी को छूकर पहचानने की कोशिश की तो उसने कुछ का कुछ बताया। यही हाल राहुल के संबंध में मीडिया का है। राहुल गांधी जब आर.एस.एस. पर हमला करते हैं तो प्रश्न उठाए जाते हैं। असल में संघ की विचार भूमि पर ही भाजपा है। ऐसे में अगर राहुल इस पर सवाल नहीं उठाएंगे तो क्या करेंगे।

राहुल गांधी के सवालों का मजाक उड़ाना एक तरह से फैशन बन गया है। राहुल गांधी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनकी अपनी ही पार्टी पूरी तरह से उनके साथ नहीं है। वह उस तरह के नेता नहीं हैं जैसे राजीव गांधी थे, संजय गांधी थे या सोनिया गांधी हैं, जिनके पीछे पार्टी के नेता चलते हैं। राहुल पार्टी से खुद भी दूरी बनाकर रखते हैं। लंदन में उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो भारत में वह नहीं कहते। अगर आप ट्विटर पर कुछ कहते हैं तो इसे क्या कहा जाएगा कि यह बात भारत में कही या अमरीका में, जहां उसका सरवर है?

तकनीक ने आज सारी दूरी खत्म कर दी है। राहुल गांधी स्वयं भी 2024 को राहुल बनाम मोदी करने के इच्छुक नहीं दिखाई देते। वह जानते हैं कि उनके पास फिलहाल ऐसी कोई क्षमता नहीं है। जब लोकसभा में कांग्रेस की सौ-सवा सौ सीटें आएंगी, तभी कुछ दावेदारी बनेगी। भाजपा का ईको सिस्टम यह चाहता है कि 2024 का चुनाव राहुल बनाम मोदी हो। एक बड़ा सवाल है कि क्या 1977 में जॉर्ज फर्नांडिस देशद्रोह कर रहे थे, जब उन्होंने आपातकाल में फ्रांस, सी.आई.ए. और अन्यों से मदद मांगी थी?

स्वतंत्रता संग्राम में भी नेताजी ने जर्मनी और जापान से मदद मांगी। अगर अमरीका और इंगलैंड के बारे में कहा जाता है कि वे लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं तो यह वे सरकारों के तौर पर नहीं कर रहे। लोकतंत्र के कुछ विचार और सिद्धांत हैं, जिन्हें वे मजबूत कर रहे हैं। राहुल गांधी अभी तक अपने उसूलों से समझौता करते नहीं दिखे, कांग्रेस को राहुल से सीखना चाहिए। अगर आज हम कहें कि मोदी सरकार को घेर न पाने की वजह से विपक्ष नकारा और निकम्मा है तो यह अतिशयोक्ति होगी।

1969 तक तो यह स्थिति थी कि देश में नेता प्रतिपक्ष ही नहीं था। बाद में भी जो बना, वह कांग्रेस के एक धड़े से ही बना। अभी तो सिर्फ 9 साल हुए हैं। ऐसी विषम परिस्थितियां लोकतंत्र में आती हैं मगर इससे विपक्ष का सम्मान कम नहीं होता। राहुल गांधी आलोचना से परे हैं, मगर उनकी आलोचना हमेशा जिस आधार पर की जाती है वह बेहद बेतुका और अटपटा होता है। राहुल ने कभी नहीं कहा कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, मगर मीडिया के एक हिस्से के जरिए यह पूरा नैरेटिव बनाया जा रहा है कि अगला लोकसभा चुनाव मोदी और राहुल के बीच है।

अभी पूर्वोत्तर में चुनाव हुए हैं। मेघालय में भाजपा ने 60 सीटों पर चुनाव लड़ा और 2 सीटें आईं। कांग्रेस के सारे पुराने विधायक तृणमूल में चले गए थे। नए लोगों को मौका दिया, फिर भी 5 विधायक जीत गए। मगर मीडिया भाजपा को श्रेय दे रहा है कि पूर्वोत्तर जीत लिया। नागालैंड में भी भाजपा का प्रदर्शन कोई बहुत ज्यादा अच्छा नहीं था। पूर्वोत्तर की कहानी तो यह है कि अगर 2024 में केंद्र में सत्ता बदलती है तो अगले एक-दो साल में ही पूर्वोत्तर की सरकारें बदल जाएंगी।

क्या महाराष्ट्र में भाजपा का मौजूदा गठबंधन पिछली बार की तरह 42 सीटें लाने में सक्षम है? बिहार में भी गठबंधन का स्वरूप बदल चुका है। पिछली बार के गठबंधन में भाजपा को 39 सीटें मिली थीं। अब वहां क्या होगा? कर्नाटक और पश्चिम बंगाल का गणित भी भाजपा को देखना होगा। पंजाब में स्थिति और भी खराब हो गई है। लेकिन कांग्रेस कमजोर फ्रंट पर है, यह किसी से छुपा नहीं है। राहुल कांग्रेस को दलदल से कब और कैसे निकालते हैं, यह देखना रोचक होगा। -राशिद किदवई

Related Story

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!