Edited By jyoti choudhary,Updated: 28 Dec, 2022 06:06 PM
सरकार को आगामी बजट में ‘राजकोषीय मजबूती के लिए आक्रामक' कदम उठाने से बचना चाहिए, क्योंकि वैश्विक जोखिम कम नहीं हुए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने बुधवार को यह बात कही। गोयल ने आगे कहा कि खाद्य...
नई दिल्लीः सरकार को आगामी बजट में ‘राजकोषीय मजबूती के लिए आक्रामक' कदम उठाने से बचना चाहिए, क्योंकि वैश्विक जोखिम कम नहीं हुए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने बुधवार को यह बात कही। गोयल ने आगे कहा कि खाद्य और ऊर्जा मुद्रास्फीति में कमी आने से सब्सिडी कम होने की उम्मीद है।
थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति नवंबर में 1.07 प्रतिशत थी, जो इससे पिछले महीने में 8.33 प्रतिशत थी। उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक मंदी की आशंकाओं को देखते हुए, यह आक्रामक तरीके से राजकोषीय मजबूती के लिए कदम उठाने का समय नहीं है। पहले से घोषित कदमों पर टिके रहने से वृद्धि को नुकसान कम होगा, जबकि मांग और चालू खाते के घाटे (कैड) में भी कमी होगी।''
भारत का राजकोषीय घाटा मार्च, 2023 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में 6.4 प्रतिशत रह सकता है, जो 2021-22 में 6.71 प्रतिशत था। सरकार ने इसको मजबूत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसके तहत वित्त वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे के स्तर को 4.5 प्रतिशत से नीचे लाने का इरादा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को संसद में 2023-24 का आम बजट पेश करेंगी।