2025 में रुपया 4% टूटा, साल के अंत तक 90 के आसपास रहने का अनुमान

Edited By Updated: 22 Dec, 2025 02:52 PM

the rupee depreciated by 4 in 2025 expected to remain around 90 against

चालू कैलेंडर वर्ष 2025 में अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में 4.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। एक हालिया सर्वे में शामिल अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि साल के अंत तक रुपया 90 प्रति डॉलर के आसपास बना रह सकता है। वहीं, वित्त वर्ष 2025-26 के...

बिजनेस डेस्कः चालू कैलेंडर वर्ष 2025 में अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में 4.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। एक हालिया सर्वे में शामिल अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि साल के अंत तक रुपया 90 प्रति डॉलर के आसपास बना रह सकता है। वहीं, वित्त वर्ष 2025-26 के अंत तक इसके 88.50 प्रति डॉलर तक मजबूत होने की उम्मीद जताई गई है। चालू वित्त वर्ष 2026 में अब तक रुपए में करीब 4.3 फीसदी की कमजोरी आ चुकी है।

अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को लेकर जारी अनिश्चितता और विदेशी पूंजी के लगातार बाहर जाने से रुपए पर दबाव बढ़ा, जिसके चलते पिछले सप्ताह यह 91 प्रति डॉलर के स्तर से भी नीचे फिसल गया। उतार-चढ़ाव भरे कारोबार के दौरान रुपए ने लगातार चार सत्रों में नए निचले स्तर बनाए, हालांकि बाद में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हस्तक्षेप से इसमें तेज रिकवरी देखने को मिली।

सप्ताह के अंत में आरबीआई की आक्रामक डॉलर बिक्री के चलते रुपया करीब 1.3 फीसदी मजबूत हुआ। शुक्रवार को घरेलू मुद्रा ने तीन वर्षों की सबसे बड़ी एकदिनी बढ़त दर्ज करते हुए 1.1 फीसदी की छलांग लगाई और 89.29 प्रति डॉलर पर बंद हुई, जबकि इससे पहले यह 90.26 प्रति डॉलर पर थी। पिछले हफ्ते रुपए ने छह महीने की सबसे बड़ी साप्ताहिक बढ़त भी दर्ज की।

बाजार के जानकारों के मुताबिक, आरबीआई का यह कदम सट्टेबाजों को हतोत्साहित करने और एकतरफा गिरावट को रोकने के उद्देश्य से उठाया गया। लगातार दूसरे सत्र में डॉलर की बिक्री से यह संकेत मिला कि केंद्रीय बैंक रुपए की तेज कमजोरी को बर्दाश्त नहीं करेगा, जिससे बाजार में दोतरफा जोखिम की वापसी संभव हुई है।

आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता के अनुसार, रुपए की कमजोरी की मुख्य वजह विदेशी पूंजी प्रवाह में कमी है। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में जल्द सुधार की संभावना सीमित है, भले ही अमेरिका के साथ व्यापार समझौता हो जाए। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि वित्त वर्ष 2027 में गिरावट की रफ्तार अपेक्षाकृत नियंत्रित रह सकती है।

उनका मानना है कि निकट अवधि में रुपये को आरबीआई के हस्तक्षेप, व्यापार समझौते से जुड़ी उम्मीदों और मौसमी कारकों से सहारा मिल सकता है। चौथी तिमाही में आमतौर पर व्यापार घाटा कम होता है और भुगतान संतुलन में सुधार आता है, जिससे रुपये को समर्थन मिलता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि हाल के महीनों में व्यापार घाटा अपेक्षा से ज्यादा रहा है और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में हो रही देरी से बाजार धारणा पर दबाव बना हुआ है। साथ ही, आरबीआई की हस्तक्षेप क्षमता भी सीमित हो सकती है, क्योंकि उसने पहले से ही फॉरवर्ड और एनडीएफ बाजारों में बड़ी शॉर्ट पोजीशन ले रखी है।

ताजा आंकड़ों के मुताबिक, जून से अक्टूबर के बीच आरबीआई ने करीब 30 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया है। अक्टूबर के अंत तक उसकी शॉर्ट डॉलर फॉरवर्ड पोजीशन बढ़कर 63 अरब डॉलर हो गई थी। माना जा रहा है कि रुपये को 88.80 प्रति डॉलर से नीचे जाने से रोकने के लिए केंद्रीय बैंक को आगे भी सतर्क रहना होगा।

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी निवेशकों की आवक को लेकर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। इन सभी कारकों को देखते हुए अनुमान है कि रुपये को 88 प्रति डॉलर के आसपास मजबूत सपोर्ट मिल सकता है और आगे यह एक सीमित दायरे में कारोबार करता रह सकता है।

 

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