राजस्व अधिकारी की पदोन्नति रोकी तो हरियाणा सरकार पर लगा लाखों का जुर्माना

Edited By ashwani,Updated: 17 Jun, 2025 10:48 PM

promotion is stopped fine imposed on the haryana government

यह रवैया अहंकारी और सत्य को दबाने वाला, राज्य चालाक मुकद्दमेबाज की तरह बर्ताव नहीं कर सकता: हाईकोर्ट

चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक राजस्व अधिकारी को बार-बार बी क्लास तहसीलदार पद पर पदोन्नति से वंचित करने के मामले में हरियाणा सरकार को आड़े हाथों लेते हुए तीखी टिप्पणी की है। अदालत ने न केवल राज्य के रवैये को अहंकार से भरा और सत्य को दबाने वाला करार दिया, बल्कि राज्य सरकार पर 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज ने सोनीपत निवासी देवेंद्र कुमार कानूनगो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार का आचरण न केवल कानून-विरोधी और दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि उसने जानबूझकर याचिकाकर्ता की सेवा-पुस्तिका को दबाया और फिर उसी के अभाव का बहाना बनाकर उसे प्रोमोशन प्रक्रिया से बाहर रखा। कोर्ट ने जुर्माना की 5 लाख राशि में से आधी याचिकाकर्ता व आधी पी.जी.आई. चंडीगढ़ को देने का आदेश दिया। सरकार को यह भी छूट दी कि वह संबंधित राशि मामले में जिम्मेदार अधिकारी से वसूल कर सकती है। अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य अपनी भूमिका भूल गया है, जो समानता और संवेदनशीलता के साथ प्रत्येक नागरिक को न्याय देने की है। वह अपने गैर-कानूनी आचरण को गर्व का बिल्ला मानने लगा है। न्यायालय ने सरकार के इस तर्क को भी सिरे से खारिज कर दिया कि अप्रैल 2022 की पदोन्नति प्रक्रिया में केवल 2 पद रिक्त थे और उन्हें भर दिया गया। 

सतर्कता जांच लंबित होने का आधार पहले ही हो चुका था अमान्य
जस्टिस भारद्वाज ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता अधिकारी वरिष्ठता सूची में तीसरे स्थान पर था, फिर भी उसे केवल इसलिए पदोन्नति से बाहर रखा गया क्योंकि उस पर एक सतर्कता जांच लंबित थी जबकि इस आधार को पूर्व में ही अदालत द्वारा अमान्य घोषित किया जा चुका था। इसके बावजूद, सरकार ने अक्तूबर 2024 में पदोन्नति की और नवम्बर में 9 पदों के लिए नई भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी, लेकिन याचिकाकर्ता को जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया गया। अदालत ने राज्य की स्थिति को न केवल भ्रामक बल्कि कपटपूर्ण और शरारतपूर्ण बताया और कहा कि सरकार ने खाली पदों की असल संख्या को लेकर जानबूझकर चुप्पी साधी, जबकि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज स्पष्ट रूप से राज्य के दावे का खंडन करते हैं। अदालत ने कहा कि राज्य एक निष्पक्ष नियोक्ता की बजाय एक पूर्वाग्रह ग्रस्त अभिनेता की भांति व्यवहार कर रहा है, जिसकी नीयत योग्यता और वैधानिकता के बजाय अन्य बाहरी कारणों से संचालित हो रही है। 

राज्य ने कुटिल तरीके से याची को न्याय से वंचित किया 
कोर्ट ने दो टूक कहा कि राज्य एक चालाक मुकद्दमेबाज की तरह बर्ताव नहीं कर सकता और उसे सदैव निष्पक्ष, तथ्यात्मक और ईमानदार रहना होगा। जस्टिस भारद्वाज ने यह भी चेतावनी दी कि अब अदालतें उस प्रवृत्ति को सहन नहीं करेंगी, जिसमें सर्वश्रेष्ठ जानकारी को दबाना और अदालती कार्रवाई को जानबूझकर लंबा खींचना एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया जाए। उन्होंने इसे पूर्वनियोजित और योजनाबद्ध बहिष्कार करार देते हुए कहा कि सरकार ने नवीन और कुटिल तरीकों से याचिकाकर्ता को न्याय से वंचित करने का प्रयास किया, जो शासन की मर्यादा और संवैधानिक दायित्वों के सर्वथा विपरीत है। 

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