खुशियों का खजाना : मां-बेटी ने फिर से पाया ज़िंदगी का मकसद

Edited By Deepender Thakur,Updated: 15 Dec, 2023 02:45 PM

treasure of happiness mother and daughter again found the purpose of life

अक्सर ऐसा होता है कि अच्छा करियर बनाने की लगातार कोशिशों के साथ निजी ज़िम्मेदारियों को संभालते-संभालते इंसान अपने अंदर के उस जुनून को भूल जाता है, जो एक वक़्त तक उसकी पहचान होते थे।

अक्सर ऐसा होता है कि अच्छा करियर बनाने की लगातार कोशिशों के साथ निजी ज़िम्मेदारियों को संभालते-संभालते इंसान अपने अंदर के उस जुनून को भूल जाता है, जो एक वक़्त तक उसकी पहचान होते थे। हालाँकि, कभी-कभी अचानक से या फिर कुछ करने के फेर में जानबूझकर इस बेहद ज़रूरी चीज, यानी जुनून को पूरा करने का मन होने लगता है। और इस बात की गवाही देने के लिए इससे अच्छी हक़ीक़त से भरी कहानी नहीं हो सकती है। तो चलिए, जांनते हैं एक 58 वर्षीय माँ नीरजा पद्मनाभन और उनकी बेटी व हाल ही में मातृत्व का सुख पाने वाली 34 वर्षीय पवित्रा की हैरान कर देने वाली कहानी।

 

दरअसल, अपनी नौकरी के लिए ज़रूरी वक़्त और कार्यों में व्यस्तता के साथ मातृत्व की ख़ुशियों को देखते हुए पवित्रा को लगने लगा कि एक वक़्त ऐसा था कि जब उसे खाना बनाने, चित्रकारी करने, सफ़र और ट्रैकिंग करने में जबर्दस्त मज़ा आता था, लेकिन अब धीरे-धीरे वह इनसे दूर होती जा रही है। अब यह आलम हो गया है कि उसका पूरा दिन तमाम तरह की ज़िम्मेदारियों में ही बीत जाता है और उसके पास ख़ुद के लिए वक़्त ही नहीं बचता।

 

अपनी बेटी पवित्रा को ज़िंदगी के भंवर में फंसा हुआ देखकर उसकी हर कदम की ताक़त और सहारा बनी रहने वाली उसकी माँ नीरजा को इस बात की चिंता सताने लगी। नीरजा, रोज़मर्रा की ज़िंदगी के चक्कर में आकर अपनी बेटी के भीतर की उस धीमी पड़ती चिंगारी को फिर से फूंककर शोला बनाने में कैसे मदद करे, इस सवाल का हल ढूँढने लगी। वो कहते हैं ना कि ‘हिम्मत-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा’ यानी जो ख़ुद की मदद करता है, भगवान उसकी मदद करते हैं और यही हक़ीक़त में तब्दील होने लगा। भाग्य ने कुछ ऐसा साथ दिया कि नीरजा को स्मार्टफ़ोन की ग्लास स्मार्ट लॉक स्क्रीन पर मोटे अनाज यानी मिलेट्स की खिचड़ी बनाने की रेसिपी मिल गई और पवित्रा काफ़ी वक़्त से अपने मासूम बच्चे को यह खिचड़ी खिलाने के बारे में सोच रही थी। तुरंत इस रेसिपी को नीरजा ने पवित्रा के साथ शेयर किया और दोनों माँ-बेटी एक साथ रसोई में जाकर इसे तैयार करने में जुट गईं। 

 

बस रसोई घर में किए जाने वाली इस आसान से काम ने उन दोनों में चिंगारी को भड़का दिया। मिल-जुलकर एक साथ खाना पकाने में उन्हें जो खुशी मिली वह ज़बरदस्त थी और पवित्रा सहित उनके परिवार व छोटे बच्चे ने भी इस स्वादिष्ट व्यंजन का जमकर आनंद उठाया। बस इस एक छोटी सी पहल के बाद मिली ख़ुशी से प्रोत्साहित होकर, उन्होंने एक साथ मिलकर खाना बनाने की दुनिया में नई-नई चीजों को खोजने का सिलसिला जारी रखने का फ़ैसला किया। इसके बाद नीरजा ने अपनी बेटी को खाना बनाने में और ज़्यादा रोमांच लाने के लिए एक बेहतरीन विचार दिया कि अब वो दोनों हर शनिवार और रविवार को ग्लास स्मार्ट लॉक स्क्रीन पर आने वाली रेसिपी में से किसी को भी चुनकर ट्राई करेंगी।

 

नीरजा ने कहा, “मैं चाहती थी कि इसके जरिये पवित्रा एक संपूर्ण अनुभव पाने में कामयाब हो, ना कि केवल खाना पकाने को एक रोज़मर्रा के काम के रूप में देखे। जब हम दोनों ने फ़ैसला लिया कि हम ग्लांस स्मार्ट लॉक स्क्रीन पर नज़र आने वाली तमाम रेसिपी में से कोई भी एक रैंडम ढंग से चुनेंगे, तो इससे हमारा उत्साह तो बढ़ा ही, कुछ नया सीखने का भी मौक़ा मिला और इससे रसोई के हमारे अनुभव कहीं ज़्यादा बेहतर हो गए। नई सामग्रियों के बारे में जानने से लेकर कई दुकानों तक उन्हें ख़रीदने के लिए जाना, फिर आखिर में व्यंजन बनाना और फिर अपने परिवार को इसके बारे में समझाने का फैसला निश्चित रूप से काफी अच्छा साबित हुआ।''

 

बस फिर क्या था, कुछ ही सप्ताह में उनका रसोई घर नए-नए प्रयोगों और हँसी-मजाक का केंद्र बन गया। उन्होंने तमाम नए व्यंजनों के बारे में सीखा, कई सामग्रियों के लिए एक साथ खरीदारी की और थाई ग्रीन करी, पैन-फ्राइड नूडल्स, बाजरा वड़ा, गुड़ के लड्डू और पान शॉट्स समेत कई अन्य व्यंजनों को बनाकर इनका लुत्फ़ उठाया। अपनी रसोई में कुछ नया पकाने के इस सफ़र के दौरान पवित्रा ने एक बेहद ही ज़रूरी और खूबसूरत चीज की तलाश कर ली- और यह था स्वयं के साथ समय बिताने का महत्व। बस अब खाना पकाना उसकी आत्म-अभिव्यक्ति का जरिया बन गया, यानी खुद से दोबारा जुड़ने का एक तरीका जो पहले मौजूद तो था लेकिन रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों के चलते इस पर कब का आंशिक ग्रहण लग गया, पता नहीं चल पाया।

 

इसके अलावा, यह रसोई घर पवित्रा और नीरजा के लिए एक स्वर्ग जैसा स्थान बन गया- यानी एक ऐसी जगह जहां वे दोनों न केवल खाना बनाती थीं बल्कि तमाम क़िस्से, कहानियाँ, यादें, सपने और हँसी भी साझा करती थीं। इन्हीं पलों के दौरान पवित्रा को अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने के महत्व का भी एहसास हुआ। उसने यह सीखा कि एक बेटी, पत्नी, माँ और एक पेशेवर के रूप में अपनी भूमिकाओं के बीच उसे भी अपने व्यक्तित्व और जुनून का पोषण करना चाहिए।

 

बदलाव लाने वाले इस सफर का केंद्र बनीं ग्लांस स्मार्ट लॉक स्क्रीन, जो वाक़ई प्रेरणा देने का एक अप्रत्याशित स्रोत बनी। यह केवल कोई एक आम डिजिटल फीचर नहीं था बल्कि संभावनाओं की दुनिया की ओर खुलती एक खिड़की थी। ऐसे वक़्त में जब तकनीकी अक्सर लोगों को बेवजह अपने स्मार्टफ़ोन की स्क्रीन पर स्क्रॉलिंग और सूचनाओं के  अतिरिक्त भँवर जाल में फँसे रहने के लिए धकेल सकती है, ग्लांस इनसे बिल्कुल अलग तरह का साबित हुआ। इसने निजी पसंद के मुताबिक़ कंटेंट मुहैया कराया, जिससे ज़्यादा ख़ुशी मिली और जिज्ञासा जगी। ग्लांस स्मार्ट लॉक स्क्रीन पर दिखाई देने वाले तमाम रेसिपी, पवित्रा और नीरजा के खाना बनाने के रोमांचक सफ़र के मार्गदर्शक सितारे बन गए। बेहद सावधानीपूर्वक तैयार किए जाने वाले कंटेंट ने न केवल उन्हें विविध व्यंजनों से रूबरू कराया बल्कि उन्हें खाना पकाने की प्रक्रिया का पता लगाने, नए-नए प्रयोग करने और उसका तुल्फ उठाने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

 

पवित्रा की कहानी हममें से प्रत्येक को अपने व्यस्त जीवन के बीच ख़ुद अपने लिए समय निकालने की ज़रूरत की याद दिलाती है। कभी-कभी, बस एक छोटी सी कोशिश ज़रूरी होती है, इस मामले में एक आसान सी रेसिपी थी, या एक अप्रत्याशित खोज की आवश्यकता होती है, जो हमारे जुनून को फिर से जगाने और अपने प्रियजनों के साथ रिश्तों को मजबूत करने के लिए चाहिए होती है। ऐसी दुनिया में जहां तकनीकी की अक्सर आलोचना की जाती है, पवित्रा और नीरजा की कहानी जब तकनीक को सोच-समझकर और उद्देश्य के साथ अपनाया जाए, इसके सकारात्मक प्रभाव के सबूत के रूप में सामने आती है। 

 

 

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