क्या है आदि पेरुक्कु पर्व, जल से इसका क्या है संबंध?

Edited By Jyoti,Updated: 14 Aug, 2019 01:44 PM

aadi perukku festival in south india

अगर भारत की बात करें यहां के हर कोने में बसे छोटे से छोटे गांव व शहर आदि की अपनी विभिन्न परंपराएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। जिस कारण इनके त्यौहार आदि भी विचित्र व अद्भुत होते हैं।

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अगर भारत की बात करें यहां के हर कोने में बसे छोटे से छोटे गांव व शहर आदि की अपनी विभिन्न परंपराएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। जिस कारण इनके त्यौहार आदि भी विचित्र व अद्भुत होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है यहां रहने वाले अलग-अलग धर्म के लोग। आज हम आपको दक्षिण भारत के राज्यों में मनाए जाने वाले एक ऐसे ही त्यौहार के बारे में बताने वाले हैं जिसके बारे में आप में से बहुत कम लोग जानते होंगे।
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दक्षिण भारत के कई राज्यों आदि पेरुक्कु नामक एक पर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इश दौरान आदि यहां के लोग नदियों और तलाबों की पूजा करते हैं। बता दें इस पर्व को किसानों द्वारा अधिक मनाया जाता है। इसके द्वारा सभी किसान भगवान से अपनी अच्छी फसल की कामना करते हैं। कहा जाता है आदि पेरुक्कु पर्व के साथ ही दक्षिण भारत के राज्यों में सभी त्यौहारों की शुरुआत होती है। आइए अब जानते हैं क्यों मनाया जाता आदि पेरुक्कु पर्व है, साथ ही जानेंगे ये पर्व कब आता है और इस पर्व के दौरान क्या किया जाता है।

आदि पेरुक्कु क्यों मनाया जाता है
मान्यताओं के अनुसार दक्षिण भारत का ये प्रमुख आदि पेरुक्कु पर्व जल से जुड़ा हुआ है। यही कारण है इस पर्व को कावेरी नदी के किनारे मनाया जाता है। बता दें कावेरी नदी दक्षिण भारत राज्यों के लोगों के लिए जल का मुख्य स्त्रोत है। ऐसा माना जाता है कि इस पर्व को मनाकर इस राज्य के लोग नदियों के प्रति अपना आभार जताते हैं और जल देने के लिए भगवान को शुक्रिया अदा करते हैं।
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कैसे मनाया जाता है आदि पेरुक्कु पर्व
दक्षिण भारत का ये आदि पेरुक्कु पर्व हर वर्ष मनाया जाता है। जो तमिल महीने आदि के 18 वें दिन आता है। इस दिन सुबह-सुबह लोग स्नान करके नदियों या झीलों के किनारे जाते हैं और वहां जाकर पानी की पूजा करते हैं। इस दौरान नदियों के पावन जल को चावल, तिलक, खाने की चीजें और फूल अर्पित किए जाते हैं। फिर नदी के किनारे दीपक जलाया जाता है।

मां कावेरी के साथ देवी वरुणा की होती है पूजा
इस पर्व के दिन शाम के समय सभी महिलाएं मां कावेरी की पूजा करने के बाद वरुणा देवी जिन्हें बारिश की देवी माना जाता है उनकी पूजा करती हैं। ताकि मां खुश होकर खूब बारिश करे और किसानों की फसलों की पैदावार बढ़ सके। इस पर्व को तिरुचरापल्ली, इरोड, तंजावुर और सलेम में धूमधाम से मनाया जाता है।
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आयोजित होते हैं कार्यक्रम
ऐसा माना जाता है कि इस पर्व के साथ अन्य त्योहारों की शुरुआत हो जाती है। इस पर्व के दिन तमिलनाडु के कई मंदिरों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और लोग मंदिरों में जाकर भी पूजा करते हैं।

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