Best Motivational Story: कैसे पहचानें सोशल मीडिया की परफेक्ट तस्वीरों के पीछे का अधूरापन?

Edited By Updated: 16 Nov, 2025 01:40 PM

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मन-मस्तिष्क पैरों को जिधर चलने का निर्देश देते, हम उसी पथ पर आगे बढऩे लगते हैं। दृष्टि भी मन के अधीन रहती है लेकिन अनेक बार मनुष्य गुस्से  या परेशानियों के अधीन ऐसा निर्णय लेता है, जिसके परिणाम सदैव हानिकारक होते हैं।

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Best Motivational Story: मन-मस्तिष्क पैरों को जिधर चलने का निर्देश देते, हम उसी पथ पर आगे बढऩे लगते हैं। दृष्टि भी मन के अधीन रहती है लेकिन अनेक बार मनुष्य गुस्से  या परेशानियों के अधीन ऐसा निर्णय लेता है, जिसके परिणाम सदैव हानिकारक होते हैं। सीमा से बाहर जाकर किसी का अनुकरण करना मनुष्य को दिशाहीन करता है। भीतर उबलता विष मनुष्य के ज्ञान, विवेक धैर्य को बिना देरी निगल लेता है। बौखलाहट में मनुष्य को इस बात का अनुमान नहीं रहता कि उस समय उठाए कदमों के परिणाम कितने घातक होंगे। यह कोई नवीन विचार नहीं, बल्कि सदियों से क्रोध को प्रचंड आग से भी घातक बताया गया है। हमारे रोज के जीवन में भी प्राय: ऐसा सुनने को मिलता रहता है। विशेषकर बुजुर्ग तो इस बात को गाहे-बगाहे कभी न कभी दोहरा ही जाते हैं, तो भी हम उनकी विशेष बातों की ओर ध्यान नहीं देते। आज हमारे जीवन में जल्दबाजी व असंतोष के करण जो गुस्सा भरा हुआ है, वह अग्नि हमें चैन से जीने नहीं दे रही। असंतोष ने हमें बेचैनी से ही नहीं भरा, भ्रष्ट मार्ग पर भी ला कर खड़ा कर दिया है।

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जीवन में धन की कितनी आवश्यकता है, इसे अंतहीन कहानी बना कर रख दिया। नए जमाने में हमारे पास इतना समय नहीं रहा कि किसी की विशेष बात पर मनन करके देखें। हम तो उस मार्ग को सही मानने लग पड़े, जिसकी रचना हमने स्वयं की। समाज को देख कर, हमें भी अब लोगों को दिखाना है कि हम भी किसी से कम नहीं। हम भी आप की दुनिया के चमचमाते सितारे हैं। हमें नजरअंदाज न करो। हमारा नाटक देखने के बाद हमारी पीठ थपथपाओ। आज भागदौड़ का जीवन, चमचमाती रंगीन रोशनियां, एक तरह से ये सब नकलीस्तान जैसा है। शाम होते ही मंच पर स्वर्ग-सा चित्रण दिखाई देता, सुबह की पहली किरण के साथ ही वहां घोर उदासी छाई प्रतीत होती है। फिर भी यह नकलीस्तान अनगिनत, कमी न पूरी होने वाली आकांक्षाओं को जन्म देता है। अनेक बार सुना कि चाहतों का मेला ही दुखों का घर है, तो भी सब कुछ अनसुना करके आगे और आगे बढ़ना होता है।

हमें समाज के रुग्ण रीति-रिवाजों का प्रदर्शन करना होता है। ऐसा लाखों में कोई एक ही होगा जो अनावश्यक आकांक्षाओं की काट-छांट निरंतर करता हो। सादगी और ईमानदारी भरे व्यक्ति को समाज आदर की दृष्टि से नहीं देखता। उसे जमाने से पिछड़ा व्यक्ति मान लिया जाता है। यह हमारे समाज का वह स्याह हिस्सा है, जिसे चमकदार बनाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
दुख तो इस बात का है कि आज मार्गदर्शक भी रंगिनियों की मंझधार में बह रहे हैं। आज समाज को वही व्यक्ति पसंद है जो चादर से बाहर पैर पसार कर दिखा दे। उसकी पीठ थपथपाई जाती है। जब वही व्यक्ति फिसल कर गिरता है तब उसे अनदेखा कर दिया जाता है। समाज का यह आधुनिक रूप किस काम का? समाज के ऐसे रूप पर मनुष्य का चैन और इज्जत दाव पर लगी रहती है। बुद्धिमान लोग ऐसे मार्ग पर चलने को जीवन नष्ट करना समझते हैं।

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प्रतियोगिता के युग में केवल विद्या प्राप्ति की ही प्रतियोगिता नहीं, बल्कि झूठी शानो-शौकत दिखाने की प्रतियोगिता भी शामिल हो गई है। छोटे समारोह से लेकर शादी जैसे बड़े समारोह इतने खर्चीले बना दिए गए कि गरीब व्यक्ति की तो सांस ही निकल जाए। परिणामस्वरूप, समाज का बड़ा हिस्सा अनैतिक और भ्रष्ट मार्ग पर चल कर मन की शांति खो बैठा है। जब मन की शांति नहीं तो भौतिक विकास किस काम का। भौतिक विकास के साथ मानसिक विकास भी अति जरूरी है। रुक कर चिंतन करने पर महसूस होता है कि कहीं बहुत कुछ हाथ से फिसल गया है। रिश्तों को मूर्छित देख आगे निकल गए। दिशाहीन समाज में सभी मनमर्जी के मालिक हो गए।

उदाहरण के तौर पर, आज शादी वह बढ़िया जिस पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जाएं। इस बात पर कम ध्यान दिया जाता है कि सफल शादी के लिए पति-पत्नी का एक-दूसरे के लिए समॢपत होना जरूरी होता है। प्राय: देखा गया है कि नवीन जोड़ों में कुछ माह के भीतर ही खींचतान शुरू हो जाती है। शादी पर खर्च किया पैसा मिट्टी में मिल जाता है। इस समस्या को जड़ से तभी खत्म किया जा सकता है, जब पूरा समाज झूठी शान से बाहर निकलने का प्रयास करे। यथार्थ कि ठोस जमीन पर फिसलने की संभावनाएं नहीं होतीं। समाज को बदलना बड़ी क्रांति जैसा होता है। भ्रष्टाचार ने हमारे आंचल में बड़े छेद कर दिए हैं।

बीमारी से सभी अवगत हैं, लेकिन सही उपचार के लिए समाज आगे नहीं आ रहा। आंख मूंद यदि यूं ही आगे बढ़ते रहे तो समस्या और गंभीर होती चली जाएगी। अच्छा यही होगा कि जिस पीढ़ी ने नए रोग को जन्म दिया, वहीं पीढ़ी उसका निदान भी ढूंढे। संतोष मन में सुख व आनंद पैदा करता है। संतोष तन-मन को निरोग रखता है। संतोष से ईमानदारी और सादगी पैदा होती है, जबकि पानी की तरह व्यर्थ पैसा खर्च करने से अहंकार पैदा होता है। विद्वानों ने अहंकार मनुष्य जीवन के लिए सर्वदा हानिकारक बताया है।

अहंकार से बड़ा मनुष्य का कोई और बड़ा दुुश्मन नहीं होता। भ्रष्टाचार जैसी महामारी से बचने के लिए सादगी ही सर्वोत्तम उपचार है। यदि किसी के पास खर्च करने के लिए अपार भंडार है तो उसे मानव कल्याण हेतु दान में दे देना चाहिए। इससे बड़ी भलाई का दूसरा काम कोई और हो नहीं सकता। समाज में समानता आएगी। अब तो साफ कहा जा सकता है कि व्यर्थ का दिखावा जीवन को बर्बाद करता है। समाज में मित्रों की संख्या उतनी ही बढ़ानी चाहिए, जिनसे अच्छी मित्रता निभाई जा सके। मित्रों की संख्या कम होने पर बड़े समारोह पर होने वाले खर्चों में भी कमी आएगी। संतोष हमारा सर्वोत्तम हितैषी है।

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