Brief story of Uttara Kanda: ये है उत्तरकांड की संक्षिप्त कथा, पढ़ने-सुनने से प्राप्त होता है स्वर्ग लोक

Edited By Updated: 12 Sep, 2025 06:31 AM

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History of Uttara Kanda: लंका विजय के बाद श्री राम, सीता, लक्ष्मण और कुछ वानर जनों ने पुष्पक विमान से अयोध्या कि ओर प्रस्थान किया। वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा। भगवान राम चार...

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History of Uttara Kanda: लंका विजय के बाद श्री राम, सीता, लक्ष्मण और कुछ वानर जनों ने पुष्पक विमान से अयोध्या कि ओर प्रस्थान किया। वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा। भगवान राम चार भाईयों में से सबसे बड़े थे, इनके भाई लक्ष्मण (भगवान शेषनागजी के अवतार माने जाते हैं), भरत (भगवान ब्रह्माजी के अवतार माने जाते हैं) और शत्रुघ्न (भगवान शिवजी के अवतार माने जाते हैं) थे।

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राम बचपन से ही शांत स्वभाव के वीर पुरुष थे। उन्होंने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया था। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम से जाना जाता है। उनका राज्य न्यायप्रिय और खुशहाल माना जाता था। इसलिए भारत में जब भी सुराज की बात होती है, रामराज या रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। श्रीरघुनाथजी के शासनकाल में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती थी।

नारदजी कहते हैं, ‘जब रघुनाथजी अयोध्या के राजसिंहासन पर आसीन हो गए, तब अगस्त्य आदि महर्षि उनका दर्शन करने के लिए गए। वहां उनका भली-भांति स्वागत-सत्कार हुआ। तदनंतर उन ऋषियों ने कहा, ‘भगवन! आप धन्य हैं, जो लंका में विजयी हुए और इन्द्रजीत जैसे राक्षस को मार गिराया। (अब हम उनकी उत्पत्ति कथा बतलाते हैं, सुनिए) ब्रह्माजी के पुत्र मुनिवर पुलस्त्य हुए और पुलस्त्य से महर्षि विश्रवा का जन्म हुआ।

उनकी दो पत्नियां थीं, पुण्योत्कटा और कैकसी। उनमें पुण्योत्कटा ज्येष्ठ थी। उसके गर्भ से धनाध्यक्ष कुबेर का जन्म हुआ। कैकसी के गर्भ से पहले रावण का जन्म हुआ, जिसके दस मुख और बीस भुजाएं थीं। रावण ने तपस्या की और ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया, जिससे उसने समस्त देवताओं को जीत लिया।

कैकसी के दूसरे पुत्र का नाम कुंम्भकर्ण और तीसरे का विभीषण था। कुंम्भकर्ण सदा नींद में ही पड़ा रहता था, किंतु विभीषण बड़े धर्मात्मा हुए। इन तीनों की बहन शूर्पणखा हुई। रावण से मेघनाद का जन्म हुआ। उसने इन्द्र को जीत लिया था, इसलिए ‘इन्द्रजीत’ के नाम से उसकी प्रसिद्ध हुई। वह रावण से भी अधिक बलवान था, परंतु देवताओं आदि के कल्याण की इच्छा रखने वाले आपने लक्ष्मण के द्वारा उसका वध करा दिया।’

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ऐसा कहकर वे अगस्त्य आदि ब्रह्मर्षि श्रीरघुनाथजी के द्वारा अभिनंदित हो अपने-अपने आश्रम को चले गए। तदनंतर देवताओं की प्रार्थना से प्रभावित श्री रामचंद्रजी के आदेश से शत्रुघ्न ने लवणासुर को मार कर एक पुरी बसाई, जो ‘मथुरा’ नाम से प्रसिद्ध हुई। तत्पश्चात भरत ने श्रीराम की आज्ञा पाकर सिन्धु-तीर-निवासी शैलूष नामक बलोन्मत्त गंधर्व का तथा उसके तीन करोड़ वंशजों का अपने तीखे बाणों से संहार किया। फिर उस देश के (गांधार और मद्र) दो विभाग करके, उनमें अपने पुत्र तक्ष और पुष्कर को स्थापित कर दिया। इसके बाद भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में चले आए और वहां श्री रघुनाथजी की आराधना करते हुए रहने लगे।

श्री रामचंद्रजी ने दुष्ट पुरुषों का युद्ध में संहार किया और शिष्ट पुरुषों का दान आदि के द्वारा भली-भांति पालन किया। उन्होंने लोकापवाद के भय से अपनी धर्मपत्नी सीता को वन में छोड़ दिया था। वहां वाल्मीकि मुनि के आश्रम में उनके गर्भ से दो श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम कुश और लव थे। उनके उत्तम चरित्रों को सुनकर श्री रामचंद्रजी को भली-भांति निश्चय हो गया कि ये मेरे ही पुत्र हैं।
तत्पश्चात उन दोनों को कोसल के दो राज्यों पर अभिषिक्त करके, ‘मैं ब्रह्म हूं’ इसकी भावनापूर्वक प्रार्थना से भाइयों और पुरवासियों सहित अपने परमधाम में प्रवेश किया। अयोध्या में ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य करके वे अनेक यज्ञों का अनुष्ठान कर चुके थे। उनके बाद सीता के पुत्र कोसल जनपद के राजा हुए।

अग्निदेव कहते हैं, वसिष्ठजी! देवर्षि नारद से यह कथा सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने विस्तार पूर्वक रामायण नामक महाकाव्य की रचना की। जो इस प्रसंग को पढ़ता या सुनता है, वह स्वर्ग लोक को जाता है। 

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