Chaitra Navratri 2021: 13 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं मां के नवरात्रि, ऐसे करें मां को प्रसन्न

Edited By Jyoti,Updated: 08 Apr, 2021 02:41 PM

chaitra navratri 2021

13 अप्रैल, से इस वर्ष के चैत्र नवरात्रि का प्रांरभ होना जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सनातन धर्म में चैत्र मास में पड़ने वाले नवरात्रों के 9 दिनों का अधिक महत्व है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
13 अप्रैल, से इस वर्ष के चैत्र नवरात्रि का प्रांरभ होना जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सनातन धर्म में चैत्र मास में पड़ने वाले नवरात्रों के 9 दिनों का अधिक महत्व है। इस दौरान देवी दुर्गा के साथ-साथ इनके विभिन्न 9 रूपों की भी आराधना की जाती है। ज्योतिष शास्त्री बताते हैं कि इस दौरान माता अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होती हैं तथा समस्त इच्छाएं पूरी करती हैं। मगर अगर इस दौरान इनसे जुड़ी बातों का ध्यान न रखा जाए तो जातक इनकी कृपा से वंचित ही रह जाता है। तो अगर आप नहीं चाहते कि इस नवरात्रि आप माता की कृपा से दूर रहें तो नवरात्रों केे दौरान देवी दु्रगा की पूजा से संबंधित का खास ध्यान रखें।  
 
बता दें 13 अप्रैल यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं। सनातन धर्म में इन 9 दिनों का आदि महत्व होता है। पूरे नौ दिन देवी मां के मंदिरों से लेकर घर भी माता के आगमन के लिए खूब साज सजावत करते हैं। मगर इस दौरान इनकी पूजा से अपनाए जाने वाले नियमों को अंजाने में नजरअंदाज कर जाते हैं। जो जातक की पूजा को अधूरी व निष्फल कर देते हैं। क्या हैं वो नियम आदि- 

पूजा में ज़रूर करें इन फूलों का प्रयोग करें
सनातन धर्म के शास्त्रों में अच्छे से बताया गया है कि किन फूलों से देवी दुर्गा की पूजा की जानी चाहिए। इसके अनुसार मां दुर्गा की पूजा में मोगरा और पारजिात के फूलों का इस्तेमाल करना अच्छा व लाभदायक माना जाता है। इसके अलावा देवी लक्ष्मी को पूजा में गुलाब और स्थलकमल, मां शारदा की पूजा में रातरानी के पुष्प एवं माता वैष्णों देवी की पूजा में रजनीगंधा नामक फूल चढ़ाए जाते हैं। 

न चढ़ाएं ये फूल
ध्यान रखें फूल ताजे और शुद्ध होने चाहिए। पूजा में किसी भी स्थिति में खरा व पुराने पुष्प न चढ़ाएं, तो वहीं इस बात का भी ध्यान रखें कि फूल गंदी जगह पर न उगे हुए हों तथा फूल की सभी पंखुडियां ठीक हों।

व्रत में इन बातों का रखें ध्यान
मन में बुरे विचारों को न लाने दें, भूमि पर बिस्तर लगाकर सोएं इसके साथ ही फलाहार ग्रहण करना चाहिए। जितना हो सके स्वयं को क्रोध और वाणी से बचाएं। इसके अलावा निम्न मंत्रों का जप करें- 

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।


 

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