श्रीरामचरित्रमानस के ये श्लोक आप भी जरूर पढ़ें

Edited By Jyoti,Updated: 07 Mar, 2022 06:15 PM

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हमारे हिंदू धर्म में कई धार्मिक ग्रंथ व शास्त्र प्रख्यात है, जिनमें से एक है श्रीरामचरित्रमानस। जिसमें श्री राम जी से जुड़ा वर्णन पढ़ने सुनने को मिलता है। आज इस आर्टिकल में हम आपको श्री राम चरित्र मानस

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हमारे हिंदू धर्म में कई धार्मिक ग्रंथ व शास्त्र प्रख्यात है, जिनमें से एक है श्रीरामचरित्रमानस। जिसमें श्री राम जी से जुड़ा वर्णन पढ़ने सुनने को मिलता है। आज इस आर्टिकल में हम आपको श्री राम चरित्र मानस में वर्णित ऐसे ही श्लोकों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें श्री राम से जुड़ी बातें बताई गई है। बता दें श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की रचना तुलसीदास जी अनन्य भगवद्‌ भक्त द्वारा की गई है। कहा जाता है कि मानस मंत्र के अर्थ को समझते हुए मानस की कृपा से भवसागर पार करने की शक्ति प्राप्त करते हैं। 
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श्रीरामचरित्रमानस के रचनाकार तुलसीदास जी वंदना के क्रम में श्रीराम की सेना उपस्थित सभी सेवकों को प्रणाम करते हैं साथ ही ऋषि, मुनियों की वंदना करते हैं। श्रीराम एवं सीता जी से निर्मल बुद्धि की मांग करते हैं। आज हम लोग उनको समझते है और मानस का अध्ययन करते हैं. 

कपिपति रीछ निसाचर राजा । 
अंगदादि जे कीस समाजा।। 
बंदउँ सब के चरन सुहाए। 
अधम सरीर राम जिन्ह पाए।। 

अर्थ- इसमें तुलसीदास जी कहते हैं वह वानरों के राजा सुग्रीव, रीछों के राजा जाम्बवान, राक्षसों के राजा विभीषण और अंगद आदि जितना वानरों का समाज है, सबके सुन्दर चरणों की मैं वन्दना करता हूं, जिन्होंने अधम यानि पशु और राक्षस आदि  शरीर में जन्म लेकर भी श्री रामचन्द्र जी की सेवा करते हुए त्रेतायुग में उन्हें  प्राप्त किया।

रघुपति चरन उपासक जेते। 
खग मृग सुर नर असुर समेते ।। 
बंदउँ पद सरोज सब केरे । 
जे बिनु काम राम के चेरे ।। 

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अर्थ- तुलसीदाल जी के अनुसार पशु, पक्षी, देवता, मनुष्य, असुर समेत जितने श्रीराम जी के चरणों के उपासक हैं, तुलसीदास जी कहते हैं मैं उन सबके चरण कमलों की वन्दना करता हूं, जो श्रीराम जी की सेवा बिना किसी कामनाओं एवं लोभ के करते हैं

सुक सनकादि भगत मुनि नारद। 
जे मुनिबर बिग्यान बिसारद ।। 
प्रनवउँ सबहि धरनि धरि सीसा। 
करहु कृपा जन जानि मुनीसा।। 

अर्थ- श्री रामचरित्रमान में तुलसीदास जी वर्णन करते हैं कि शुकदेवजी, सनकादि, नारदमुनि आदि जितने भक्त और परम ज्ञानी श्रेष्ठ मुनि हैं, मैं धरतीपर सिर टेक कर उन सबको प्रणाम करता हूं, हे मुनीश्वरों आप सब मुझको अपना दास जानकर कृपा कीजिए। 

जनकसुता जग जननि जानकी । 
अतिसय प्रिय करुनानिधान की ।। 
ताके जुग पद कमल मनावउँ । 
जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ।।

अर्थ- इस मानस मंत्रार में तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्र जी की प्रियतमा श्री जानकी जी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूं, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाउँ।
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पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। 
चरन कमल बंदउँ सब लायक।। 
राजिवनयन धरें धनु सायक । 
भगत बिपति भंजन सुखदायक ।। 

अर्थ- इस मानस में तुलसीदास जी कहते हैं मैं मन, वचन और कर्म से कमल नयन, धनुष-बाण धारी, भक्तों की विपत्ति का नाश करने और उन्हें सुख देने वाले भगवान् श्री रघुनाथ जी के सर्व समर्थ चरण कमलों की वन्दना करता हूं।

गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न। 
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न।। 

अर्थ- इसमें किए उल्लेख के अनुसार जो वाणी और उसके अर्थ तथा जल और जल की लहर के समान कहने में अलग-अलग हैं,परन्तु वास्तव में एक हैं, उन श्री सीता राम जी के चरणों की मैं वन्दना करता हूँ, जिन्हें दीन-दुखी बहुत ही प्रिय हैं। 

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