Yatra: आइए करें छोटी काशी के देव स्थानों की यात्रा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Aug, 2021 02:40 PM

come visit the deities of choti kashi

हिमाचल प्रदेश का मंडी शहर मंदिरों की नगरी है, इसलिए इसे देश की छोटी काशी कहा जाता है। यहां स्थान-स्थान पर मंदिर और  देव स्थान हैं। यहां तक कि नगर के हर गली और मोहल्ले में मंदिर स्थापित हैं तथा हर मंदिर का अपना इतिहास है,

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Yatra: हिमाचल प्रदेश का मंडी शहर मंदिरों की नगरी है, इसलिए इसे देश की छोटी काशी कहा जाता है। यहां स्थान-स्थान पर मंदिर और  देव स्थान हैं। यहां तक कि नगर के हर गली और मोहल्ले में मंदिर स्थापित हैं तथा हर मंदिर का अपना इतिहास है, अपनी परम्परा और निर्माण शैली है। इतिहासकार बताते हैं कि राजा अजबर सेन द्वारा 1527 में ब्यास के बाएं किनारे राजधानी बनाने से ही राजा की श्रद्धा के अनुसार यहां मंदिर बने और बाद में भी राजाओं के समय मंदिरों का विस्तार होता गया। मंडी नगर में भूतनाथ, त्रिलोकीनाथ, अर्धनारीश्वर, पंचवक्त्र के अद्भुत शिवमंदिर हैं। इसके साथ श्यामाकाली, सिद्धभद्रा और माधोराय के देवस्थान भी स्थापित हैं।

PunjabKesari  Chhoti Kashi

भूतनाथ मंदिर 
मंडी नगर के मध्य में स्थित भूतनाथ मंदिर का निर्माण राजा अजबर सेन द्वारा सन 1521 में मंडी नगर की स्थापना के साथ ही करवाया गया था। सभा मंडप के प्रवेश द्वार में उत्कीर्ण हुआ है। सभा मंडप के बीच एक हवनकुंड है। यहां पहाड़ी शैली के देव मंदिरों की भांति यह बड़ा ढोल लटका हुआ है। मंडप से आगे गर्भगृह है। गर्भगृह का तोरणद्वार हस्ति मस्तक, वीणाधारी गंधर्व किन्नरों से अलंकृत है। सभामंडप का मध्य आमलक से सुसज्जित है। शिखर के मध्य ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रयंबक प्रतिमा है। आमलक के ऊपर कलश है। सभामंडप के बाहर शिखराकार स्थान बने हैं जिनमें से कुछ में मूर्तियां हैं, कुछ खाली हैं।

मंदिर के भीतर एक अनघढ़ पत्थर के रूप में शिव विराजमान हैं जो मूल तथा प्राकृतिक प्रतीत होता है। जैसा कि प्राय: सभी शिव मंदिरों के बारे में कथा प्रचलित है, यहां भी वैसी ही कथा सुनाई जाती है। मंदिर के स्थान पर पहले जंगल था और लोग पशु चराते थे। एक गाय एक शिला पर रोज दूध गिराती थी। गाय घर में दूध देने पर कभीकम और कभी बिल्कुल भी दूध नहीं देती थी। इस आश्चर्यजनक घटना के फैलने के बाद शिव ने अपने भक्त राजा को स्वप्न में बताया कि मैं अमुक स्थान में हूं। वहीं कपिला गऊ प्रतिदिन मेरे स्वयंभू लिंग को दूध से स्नान करवाती है। राजा ने उस स्थान पर श्रद्धावश मंदिर का निर्माण करवाया जो कालांतर में भूतनाथ मंदिर के रूप में विख्यात हुआ।

PunjabKesari  Chhoti Kashi

त्रिलोकीनाथ मंदिर 
त्रिलोकीनाथ मंदिर राजा अजबर सेन (1500-1534) की रानी सुल्तान देवी ने बनवाया। यह मंदिर ब्यास नदी के दाएं किनारे पुल के पार स्थित है। पंचवक्त्र और त्रिलोकीनाथ मंदिर आमने-सामने हैं, बीच में ब्यास बहती है।

मंदिर शिखर शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। गर्भगृह में त्रिमुखी शिव की पार्वती सहित पाषाण प्रतिमा है। द्वार मंडप दो स्तम्भों पर है। इन स्तम्भों पर द्वारपाल की मूर्तियों के अतिरिक्त पशु, पुष्प पत्र उकेरे गए हैं। गर्भगृह के साथ सभामंडप है। गर्भगृह के बाहर चार स्तम्भों पर मंडप है। इन स्तम्भों पर भी आकर्षक उत्कीर्ण कार्य है। गर्भगृह में त्रिलोकीनाथ के सम्मुख नंदी की एक सुंदर और सुडौल मूर्ति है।

सभा मंडप में विष्णु, काली, शिव परिवार, गणेश आदि की आकर्षक मूर्तियां हैं। एक मूर्ति शिव की भी है जो त्रिमुखी है। इन मूर्तियों को देखकर लगता है, यहां कभी और मंदिर भी रहा होगा। त्रिलोकीनाथ परिसर में एक छोटा मंदिर भी है जो प्राचीन प्रतीत होता है। ऐसा लघु मंदिर कुल्लू के जगत सुख के पास भी है। ऐसे मंदिर या तो कोई बड़ा मंदिर बनाने से पूर्व मॉडल के तौर पर बनाए जाते थे या इन छोटे मंदिरों के साथ ही बड़े मंदिर स्थापित किए जाते थे। सभा मंडप के बाहर प्रकोष्ठ बने हैं जैसे कि सभी शिखर शैली के मंदिरों में होते हैं। ऊपर के प्रकोष्ठों में मूर्तियां अभी सलामत हैं।

PunjabKesari  Chhoti Kashi

पंचवक्त्र मंदिर 
ब्यास और सुकेती नदी के संगम पर त्रिलोकीनाथ के सामने पंचवक्त्र का मंदिर स्थित है। ब्यास के किनारे यह मंदिर पंचवक्त्र शिव की भव्य प्रतिमा के कारण अद्भुत है। मंदिर में सीधा सभामंडप बनाया गया है जिसके चार स्तंभ हैं। चारों स्तम्भों पर उत्कृष्ट नक्काशी की गई है।

गर्भगृह में मुख्य प्रतिमा के सामने नंदी प्रतिमा है जिस पर सुंदर नक्काशी हुई है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सांप बनाए गए हैं। सभामंडप में पंचवक्त्र की एक अन्य प्रतिमा है जो मुख्य प्रतिमा से मिलती है। संभवत: पहले यही प्रतिमा मुख्य प्रतिमा रही होगी। गर्भगृह के द्वार पर गंधर्व, किन्नर, अप्सराओं की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं।

इस मंदिर की मुख्य मूर्ति ही मंदिर की प्रमुख विशेषता है। चारों दिशाओं में चार मुखों के अतिरिक्त ऊपर की ओर पांचवां मुख दिखाया गया है। चारों दिशाओं में दो भुजाओं वाली आकृतियां हैं।

यह मंदिर राजा सिद्धसेन (1684-1727) ने बनवाया था। सिद्धसेन का तंत्र में अधिक विश्वास था। कहा जाता है कि यह मूर्ति तंत्र शास्त्र के अनुसार बनी है। इसे तंत्र में स्वच्छंद भैरव कहा जाता है। चारों दिशाओं में चार मुख, पूर्व-पश्चिम, उत्तर दक्षिण तथा पांचवां आकाश की ओर इंगित करता है।  ये पांच मुख जल, पृथ्वी, तेज, वायु और आकाश के प्रतीक भी हैं। शिव के पांच नामों या अवतारों-ईशान (आकाश), पुरुष (वायु), अघोर (अग्नि), काम संज्ञक (जल), ब्रह्मा संज्ञक (पृथ्वी) के प्रतीक रूप में पंचवक्त्र स्थापित है।

पंचवक्त्र शिव की बाईं जंघा पर पार्वती विराजमान है। शिव आभूषणों से अलंकृत हैं सिर पर जटाएं सुशोभित हैं। माथे पर तिलक है। पांच मस्तकों वाली यह मूर्ति बहुत भव्य है।

PunjabKesari  Chhoti Kashi

माधोराय
माधोराय का मंदिर राजमहल में है। अब यह उपायुक्त कार्यालय के प्रांगण के सामने वाले हिस्से में स्थित है। यह राज परिवार का एक निजी मंदिर है जैसा रघुनाथ मंदिर सुल्तानपुर कुल्लू में है। माधोराय की चांदी की प्रतिमा को राजा सूरज सेन (1637) ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में माना। कहा जाता है कि राजा सूरज सेन के अठारह पुत्र हुए किन्तु सभी राजा के जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। अब उत्तराधिकारी के रूप में राजा ने चांदी की एक प्रतिमा बनाई जिसे माधोराय नाम दिया गया।

‘हिस्ट्री आफ पंजाब हिल स्टेट्स’ में उल्लेख है कि राजा ने अपना राज्य माधोराय को दिया। इस प्रतिमा में संस्कृत में लेख है : ‘सूर्यसेन, भूपति तथा शत्रुनाशक ने इस पवित्र प्रतिमा, देवों के गुरु माधोराय को, भीमा स्वर्गकार द्वारा विक्रमी 1765 गुरुवार, 15 फाल्गुन को बनवाया।’  मंडी शिवरात्रि में माधोराय की सवारी पालकी में निकलती है। आसपास के सभी देवता यहां आकर हाजिरी देते हैं।

PunjabKesari  Chhoti Kashi

सिद्ध भद्रा मंदिर 
ब्यास-सुकेती संगम के ऊपर सिद्ध भद्रा मंदिर है। इसे राजा सिद्ध सेन (1684-1727) ने बनवाया। यह मंदिर शिकारी देवी की भांति बिना छत के था। संभवत: राजा सिद्धसेन मंदिर निर्माण पूरा होने से पहले ही स्वर्ग सिधार गए। यह भी माना जाता है कि सिद्ध भद्रा अपने मंदिर के ऊपर छत स्वीकार नहीं करती। अब इस मंदिर के ऊपर एक छोटा और एक बड़ा गुंबद बनवा दिया गया है। मंदिर में उत्कीर्ण कला सराहनीय है। प्रवेश द्वारों के स्तम्भों पर उत्कीर्ण कार्य हुआ है। तोरणद्वार में भी फूल पत्ते तथा गायन व नृत्य करते गंधर्व किन्नर बनाए गए हैं। मंडी में अठारहवीं शताब्दी में भुवनेश्वरी मंदिर का निर्माण किया गया। राजा बलबीर सेन (1839-1851) की माता अनूप नयनी ने ब्यास के बाएं किनारे साहिबनी मंदिर का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त महामृत्युंजय मंदिर, एकादश रुद्र, सिद्धकाली, रूपेश्वरी देवी, भीमाकाली, जालपा देवी, शीतला देवी, रामचंद्र, जगन्नाथ, बाबा कोट आदि के मंदिर भी मंडी में स्थित हैं। मंडी शहर के बीच घंटाघर, मांडव्य शिला तथा राजाओं के बरसेले भी विद्यमान हैं।

PunjabKesari  Chhoti Kashi

अर्धनारीश्वर मंदिर 
मंडी में अर्धनारीश्वर को समर्पित एक पूरा पाषाण मंदिर है। यूं तो शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में जाना जाता है किन्तु अर्धनारीश्वर के मंदिर बहुत कम हैं। मंडी के समखेतर में कन्या उच्च माध्यमिक पाठशाला के साथ अर्धनारीश्वर मंदिर स्थित है।

यह मंदिर मंडी के मंदिरों में प्राचीन माना जाता है। मंडी स्टेट गजेटियर में इस मंदिर को भूतनाथ, त्रिलोकीनाथ, पंचवक्त्र की तुलना में नया बताया गया है। इस मंदिर को पहले ‘कलेसर मंदिर’ कहते थे। कलेसर मंदिर की प्रसिद्ध मंदिर जिला कांगड़ा के ब्यास के किनारे भी है जो कालेश्वर का अपभ्रंश है। दूसरा इसे मियां कलेसर ने बनवाया, इसलिए इसे कलेसर मंदिर कहा गया। मियां कलेसर धुड़चाटिया के तीन पुत्रों में से था। इसका समय अठाहरवीं शताब्दी के अंत में माना जाता है। यह संभव है कि मियां कलेसर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया हो।

मंदिर के गर्भगृह में अर्धनारीश्वर की आकर्षक प्रतिमा है। दाएं भाग में शिव हैं, बाएं में पार्वती। शिव जटा, मुंडमाला धारण किए हुए हैं तो पार्वती मुकुट तथा गहने धारण किए हैं। शिव के एक हाथ में डमरू है, दूसरा वरद हस्त है। पार्वती के एक हाथ में माला, दूसरे में गेंद है। शिव पार्वती के वाहन भी अपने-अपने हैं। एक ओर नंदी तो दूसरी ओर सिंह। कला की दृष्टि से यह एक अद्भुत प्रतिमा है । 

गर्भगृह में शिवलिंग के साथ भैरव, शिव पार्वती, गणेश की मूर्तियां उत्कीर्ण की हुई हैं। मंदिर का अर्धमंडप सहित विमान पुराना है। सभा मंडप तथा विमान में बहुत उत्कृष्ट नक्काशी हुई है। प्रवेश द्वार पर मूर्तियों के प्रकोष्ठ अब खाली हैं। सभा मंडप के प्रवेश द्वार के साथ भी उत्कीर्ण किए हुए हैं। सभा मंडप के भीतर बटुक और चतुर्भुज ब्रह्मा की मूर्तियां हैं शिव के गण तथा हनुमान की प्रतिमा भी है। तोरणद्वार में गंधर्व कन्याएं चित्रित की गई हैं। निचले भाग में हस्ति मस्तक पर दो महिला आकृतियां हैं। गंगा यमुना की आकृतियां भी चित्रित हैं। 

PunjabKesari  Chhoti Kashi

 

 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!