इस खास दिन त्यागी थी पितामह भीष्म ने अपनी देह

Edited By Updated: 07 Jan, 2020 05:45 PM

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मकर संक्रांति से जुड़ी विभिन्न प्रकार की मान्यताएं प्रचिलत है। स्नान करने से लेकर दान आदि करने के लिए ये दिन अधिक खास माना जाता है।

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मकर संक्रांति से जुड़ी विभिन्न प्रकार की मान्यताएं प्रचिलत है। स्नान करने से लेकर दान आदि करने के लिए ये दिन अधिक खास माना जाता है। तो वहीं इस दिन सूर्य के राशि परिवर्तन को भी खास माना जाता है। इतना खास की इस दिन के बाद शुभ कामों पर लगा रोक हट जाती है और हर तरह का धार्मिक कार्य आरंभ हो जाता है। मगर क्या आप लोग जाते हैं इस दिन हिंदू धर्म के महाकाव्य कहे जाने वाले ग्रंथ महाभारत के सबसे प्रमुख पात्र भीष्म पितामह ने अपनी देह को त्यागा था।
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पौराणिक कथाओं कें अनुसार अठारह दिनों के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्म ने पाण्डव पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में शिखण्डी के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। उनके शरशैया पर लेटने के बाद युद्ध 8 दिन और चला। लेकिन भीष्म पितामह ने शरीर नहीं त्यागा था, क्योंकि वे चाहते थे कि जब सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे शरीर का त्याग करेंगे। भीष्म पितामह शरशय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था।

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यहां विस्तारपूर्वक जानें इससे जुड़ी कथा-
वचनबद्ध होने के कारण पितामह भीष्म ने कौरव पक्ष की ओर से युद्ध किया था किंतु सत्य एवं न्याय की रक्षा के लिए उन्होंने स्वयं ही अपनी मृत्यु का रहस्य अर्जुन को बता दिया था। अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में भीष्म पर इस कदर बाणों की वर्षा कर दी कि उनका शरीर बाणों से बिंध गया और वह बाण शय्या पर लेट गए किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति व प्रभु कृपा के चलते मृत्यु का वरण नहीं किया क्योंकि उस समय सूर्य दक्षिणायन था। जैसे ही सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया और सूर्य उत्तरायण हो गया, भीष्म ने अर्जुन के बाण से निकली गंगा की धार का पान कर प्राण त्याग दिए और मोक्ष प्राप्त किया। 
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मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर विशेष रूप से उत्तरी भारत में गंगा स्नान करना विशेष पुण्य का निमित्त माना जाता है और इस दिन लाखों लोग गंगा स्नान करते हैं। क्योंकी मकर संक्रांति का ही वह दिन था जब गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मकर संक्रांति को सूर्य एवं अग्रि की पूजा से भी जोड़ा जाता है। इस दिन तिल का दान करना विशेष महत्व रखता है।
 

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