Dattopant Thengadi Birth Anniversary:  कुछ इस तरह बीता मजदूरों के लिए आवाज उठाने वाले दत्तोपंत ठेंगड़ी का जीवन

Edited By Prachi Sharma,Updated: 10 Nov, 2023 08:01 AM

dattopant thengadi birth anniversary

भारतीय मजदूर संघ नामक गैर-राजनीतिक संगठन बना कर मजदूरों को एक नई दिशा देने और उनमें देश हित में काम करने

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Dattopant Thengadi Birth Anniversary: भारतीय मजदूर संघ नामक गैर-राजनीतिक संगठन बना कर मजदूरों को एक नई दिशा देने और उनमें देश हित में काम करने की प्रेरणा जगाने वाले दत्तोपन्त ठेंगड़ी बाल्यकाल से ही देश की आजादी और उन्नति के बारे सोचने लगे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। जब उनका संपर्क डॉ. हेडगेवार से हुआ तो संघ का देश प्रेम का विचार उनके मन में गहराई से बैठ गया। इनका जन्म 10 नवंबर, 1920 को दीपावली के दिन महाराष्ट्र के वर्धा जिला के आर्वी नामक ग्राम में हुआ। 15 वर्ष की अल्पायु में ही आप आर्वी तालुका की ‘वानर सेना’ के अध्यक्ष बने। अगले वर्ष, म्युनिसिपल हाई स्कूल आर्वी के छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए।

1936 में नागपुर के ‘मॉरिस कॉलेज’ में दाखिला लेकर अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर नागपुर के लॉ कॉलेज से एल.एल. बी. की उपाधि प्राप्त की। मॉरिस कॉलेज में अध्ययन के दौरान, आप 1936-38 तक क्रांतिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ से जुड़े रहे। एम.ए. तथा कानून की शिक्षा पूर्ण कर 1941 में संघ के प्रचारक बन गए। शुरू में उन्हें केरल भेजा गया। वहां उन्होंने ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ का काम भी किया। फिर उन्हें बंगाल और असम भी भेजा गया।

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श्री ठेंगड़ी ने मजदूर क्षेत्र में कार्य प्रारंभ किया। इसके लिए उन्होंने इंटक, शेतकरी कामगार फेडरेशन जैसे संगठनों में जाकर काम सीखा और उसके बाद उन्होंने ‘भारतीय मजदूर संघ’ नामक गैर-राजनीतिक संगठन आरम्भ किया, जो आज देश का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है। श्री ठेंगड़ी के प्रयास से श्रमिक और उद्योग जगत के नए रिश्ते आरंभ हुए।

 मजदूर संघ ने कहा, ‘‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम; मजदूरों दुनिया को एक करो; कमाने वाला खिलाएगा।’’
 
इस सोच से मजदूर क्षेत्र का दृश्य बदल गया। अब 17 सितंबर को, श्रमिक-दिवस के रूप  में ‘विश्वकर्मा जयन्ती’ पूरे देश में मनाई जाती है। इससे पूर्व भारत में ‘मई दिवस’ भी मनाया जाता था। श्री ठेंगड़ी 1951 से 1953 तक मध्य प्रदेश में भारतीय जनसंघ के संगठन मंत्री रहे पर मजदूर क्षेत्र में आने के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी। वह 1964 से 1976 तक दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। अखिल भारतीय  विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी  जागरण  मंच, भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच आदि की स्थापना में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही।

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26 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगने पर, ठेंगड़ी जी ने भूमिगत रहकर ‘लोक संघर्ष समिति’ के सचिव के नाते तानाशाही विरोधी आंदोलन को संचालित किया। 2002 में दिए जा रहे ‘पद्म भूषण’ अलंकरण को, उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया था कि जब तक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार और श्री गुरुजी को ‘भारत रत्न’ नहीं मिलता, तब तक वह कोई  भी अलंकरण स्वीकार नहीं करेंगे। श्री ठेंगड़ी अनेक भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने हिंदी में 28, अंग्रेजी में 12 तथा मराठी में तीन पुस्तकें लिखीं। इनमें लक्ष्य और कार्य, एकात्म मानव दर्शन, ध्येय-पथ, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर, सप्तक्रम, हमारा अधिष्ठान, राष्ट्रीय श्रम दिवस, कम्युनिज्म अपनी ही कसौटी पर, संकेत रेखा, राष्ट्र, थर्ड वे आदि प्रमुख हैं। 14 अक्तूबर, 2004 को इनका देहान्त हो गया।

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