Death Anniversary of Bagha Jatin: शेर भी थर्राया, फिर भी न डरा- जानिए बाघा जतिन की वो कहानी जो इतिहास ने छुपा दी

Edited By Updated: 09 Sep, 2025 03:03 PM

death anniversary of bagha jatin

Death Anniversary of Bagha Jatin: भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारियों में एक थे बलिष्ठ देह के स्वामी जतिन मुखर्जी, जिन्हें इतिहास में ‘बाघा जतिन’ यानी ‘शेर जतिन’ के नाम से जाना जाता है। वह एक ऐसा क्रांतिकारी था, जिसके साथी ने गद्दारी...

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Death Anniversary of Bagha Jatin: भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारियों में एक थे बलिष्ठ देह के स्वामी जतिन मुखर्जी, जिन्हें इतिहास में ‘बाघा जतिन’ यानी ‘शेर जतिन’ के नाम से जाना जाता है। वह एक ऐसा क्रांतिकारी था, जिसके साथी ने गद्दारी नहीं की होती तो देश 32 साल पहले ही यानी 1915 में आजाद हो गया होता। वह उस दौर का हीरो था, जब अंग्रेजों के खौफ में लोग घरों में भी सहम कर रहते थे लेकिन वह जहां अंग्रेजों को देखता, उन्हें पीट देता था।

बंगाल के कुश्तिया जिले (अब बांग्लादेश) में 7 दिसंबर, 1879 को जन्मे जतिन के पिता उमेशचंद्र का निधन होने के बाद मां शरण शशि ने अपने मायके में बड़ी कठिनाई से इनका लालन-पालन किया। बचपन से ही उनमें देशभक्ति, साहस और नेतृत्व क्षमता के गुण स्पष्ट दिखाई देते थे।

उनकी मां कवि स्वभाव की थीं और वकील मामा के क्लाइंट रबीन्द्रनाथ टैगोर के साथ उनके परिवार का अक्सर मिलना होता था। जतिन पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा। शुरू से ही उनकी रुचि फिजिकल गेम्स में रही। स्विमिंग और घुड़सवारी के चलते वह बलिष्ठ शरीर के स्वामी बन गए। 11 साल की उम्र में ही उन्होंने शहर की गलियों में लोगों को घायल करने वाले बिगड़ैल घोड़े को काबू किया। कलकत्ता सेंट्रल कॉलेज में स्वामी विवेकानंद से संपर्क हुआ, जिससे इनके अंदर देश के लिए कुछ करने की इच्छा तेज हुई।

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1899 में मुजफ्फरपुर में बैरिस्टर पिंगले के सैक्रेटरी बनकर पहुंचे, जो बैरिस्टर होने के साथ-साथ एक इतिहासकार भी था, जिसके साथ रहकर जतिन ने महसूस किया कि भारत की एक अपनी नैशनल आर्मी होनी चाहिए। जतिन ने युगांतर पार्टी से जुड़कर स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। उनका विश्वास था कि भारत की आजादी केवल अहिंसात्मक आंदोलनों से संभव नहीं, बल्कि इसके लिए सशस्त्र क्रांति आवश्यक है।

घरवालों के दवाब में जतिन ने शादी कर ली लेकिन पहले बेटे की अकाल मौत के चलते आंतरिक शांति के लिए जतिन ने भाई और बहन के साथ मिलकर हरिद्वार की यात्रा की। लौटकर आए तो पता चला कि उनके गांव में एक तेंदुए का आतंक है, तो वह उसे जंगल में ढूंढने निकल पड़े, लेकिन सामना हो गया रॉयल बंगाल टाइगर से। इतना खतरनाक बाघ देखकर ही कोई सदमे से मर जाता, लेकिन जतिन ने उसको अकेले ही अपनी खुखरी से मार डाला।

 सीक्रेट सोसाइटी ने इन्हीं दिनों भारतीयों पर अन्याय करने वाले सरकारी अधिकारियों, चाहे अंग्रेज हों या भारतीय, को मारने का ऑपरेशन शुरू किया, लेकिन एक सरकारी वकील और अंग्रेज डी.एस.पी. को खत्म किया गया, तो एक क्रांतिकारी ने जतिन का नाम उजागर कर दिया। जतिन को डी.एस.पी. के मर्डर के आरोप में गिरफ्तार किया गया, फिर जाट रैजीमैंट वाली हावड़ा कांस्पिरेसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया, राजद्रोह का आरोप लगाया गया।

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जितने दिन जतिन पर ट्रायल चला, उतने दिन जतिन ने साथी कैदियों के सहयोग से अपने संपर्क एक नए प्लान में लगाए। यह शायद उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा प्लान था, देश को आजाद करवाने का। इधर जतिन की कई सीक्रेट समितियों में अंग्रेज कोई कनेक्शन साबित नहीं कर पाए और जतिन को छोड़ना पड़ा।

जतिन दुनिया भर में फैले भारतीय क्रांतिकारियों के संपर्क में थे। सिएटल, पोर्टल, वैंकूवर, सैन फ्रांसिस्को, हर शहर में क्रांतिकारी तैयार हो रहे थे। लाला हरदयाल और श्यामजी कृष्ण वर्मा लंदन और अमेरिका में आंदोलन की आग को जिंदा किए हुए थे। सारे देश में 1857 जैसे सिपाही विद्र्रोह की योजना बनाई गई। फरवरी 1915 की अलग-अलग तारीखें तय की गईं, पंजाब में 21 फरवरी को 23वीं कैवलरी के सैनिकों ने अपने अफसरों को मार डाला लेकिन उसी रेजीमेंट में एक विद्रोही सैनिक के भाई कृपाल सिंह ने गद्दारी कर दी और विद्रोह की सारी योजना सरकार तक पहुंचा दी।

सारी मेहनत एक गद्दार के चलते मिट्टी में मिल गई। गदर पार्टी के कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 9 सितम्बर, 1915 को पुलिस ने जतिन का गुप्त अड्डा ‘काली पोक्ष’ ढूंढ निकाला। वह अपने बीमार क्रांतिकारी साथी को अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। पुलिस का जम कर सामना किया लेकिन गोलीबारी में गंभीर घायल हो गए। 10 सितम्बर को भारत की आजादी के इस महान सिपाही ने अस्पताल में सदा के लिए आंखें मूंद लीं।

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