Ganadhipa Sankashti Chaturthi: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन इन चमत्कारी मंत्रों के जाप से प्रसन्न होंगे विघ्नहर्ता गणेश, खुलेंगे सुख-संपन्नता के द्वार

Edited By Updated: 08 Nov, 2025 07:22 AM

ganadhipa sankashti chaturthi

हर माह आने वाली संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश की आराधना के लिए बेहद शुभ मानी जाती है। इस दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

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Ganadhipa Sankashti Chaturthi mantra: हर माह आने वाली संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश की आराधना के लिए बेहद शुभ मानी जाती है। इस दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त पूरे श्रद्धा भाव से गणेश जी के मंत्रों का जप करते हैं, उनके जीवन से दुख, संकट और नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। 2025 की संकष्टी चतुर्थी विशेष फलदायी रहेगी, क्योंकि यह दिन गणेश उपासना के लिए अत्यंत शुभ योग लेकर आएगा। इस व्रत पर सही विधि से मंत्रों का उच्चारण करने से भगवान गणेश शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं।

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भगवान गणेश के मंत्र

ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।

ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥

दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

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गणेश स्तोत्र मंत्र

शृणु पुत्र महाभाग योगशान्तिप्रदायकम् ।

येन त्वं सर्वयोगज्ञो ब्रह्मभूतो भविष्यसि ॥

चित्तं पञ्चविधं प्रोक्तं क्षिप्तं मूढं महामते ।

विक्षिप्तं च तथैकाग्रं निरोधं भूमिसज्ञकम् ॥

तत्र प्रकाशकर्ताऽसौ चिन्तामणिहृदि स्थितः ।

साक्षाद्योगेश योगेज्ञैर्लभ्यते भूमिनाशनात् ॥

चित्तरूपा स्वयंबुद्धिश्चित्तभ्रान्तिकरी मता ।

सिद्धिर्माया गणेशस्य मायाखेलक उच्यते ॥

अतो गणेशमन्त्रेण गणेशं भज पुत्रक ।

तेन त्वं ब्रह्मभूतस्तं शन्तियोगमवापस्यसि ॥

इत्युक्त्वा गणराजस्य ददौ मन्त्रं तथारुणिः ।

एकाक्षरं स्वपुत्राय ध्यनादिभ्यः सुसंयुतम् ॥

तेन तं साधयति स्म गणेशं सर्वसिद्धिदम् ।

क्रमेण शान्तिमापन्नो योगिवन्द्योऽभवत्ततः ॥

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भगवान गणेश की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।

माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।

कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

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