Edited By Prachi Sharma,Updated: 27 Aug, 2025 05:00 AM

गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन उत्सव 27 अगस्त से आरंभ होगा। गणपति भक्त इस पर्व को पूरे 10 दिनों तक धूमधाम से मनाते हैं, जिसे 'गणेशोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान देशभर में...
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Ganesh Chaturthi Special: गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन उत्सव 27 अगस्त से आरंभ होगा। गणपति भक्त इस पर्व को पूरे 10 दिनों तक धूमधाम से मनाते हैं, जिसे 'गणेशोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान देशभर में गणेश जी की पूजा का विशेष आयोजन किया जाता है। लोग अपने घरों में गणपति बप्पा की मूर्ति को स्थापित करते हैं और प्रतिदिन विधिवत पूजन करते हैं। साथ ही, मंदिरों में भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में। हालाँकि देश में गणेश जी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन अष्टविनायक मंदिरों का स्थान सबसे विशिष्ट माना जाता है। ये आठ मंदिर महाराष्ट्र में स्थित हैं और हर मंदिर की अपनी एक अनोखी कथा और महत्व है। इन आठों स्थानों की यात्रा को अष्टविनायक यात्रा कहा जाता है, जो जीवन में समृद्धि, बुद्धि और बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाला मानी जाती है।
श्री मयूरेश्वर गणेश मंदिर
मयूरेश्वर मंदिर पुणे जिले के मोरगांव गांव में स्थित है। यह अष्टविनायक यात्रा का पहला और सबसे प्रमुख मंदिर माना जाता है। इसका ढांचा मोर के आकार का है इसलिए इसे मयूरेश्वर कहा जाता है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में भगवान गणेश ने मयूरेश्वर रूप में सिंधुरासुर नामक दैत्य का अंत किया था। यह मंदिर काले पत्थर से निर्मित है और चारों ओर से प्राचीर से घिरा हुआ है।
श्री सिद्धिविनायक मंदिर
यह मंदिर अहमदनगर जिले के सिद्धटेक गांव में भीमा नदी के किनारे स्थित है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने मधु और कैटभ नामक असुरों का वध करने से पहले यहाँ गणेश जी की पूजा की थी। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसकी मूर्ति दाईं ओर सूंड वाली है, जिसे सिद्धपीठ माना जाता है।
श्री बल्लालेश्वर मंदिर
पाली गांव में स्थित यह मंदिर एकमात्र ऐसा अष्टविनायक स्थल है, जहां भगवान गणेश को उनके भक्त के नाम से पुकारा जाता है बल्लालेश्वर। कहा जाता है कि भगवान गणेश ने यहां अपने परम भक्त बल्लाल को दर्शन दिए और इसी स्थान पर वास करने का वरदान दिया। यहां पुर्तगालियों की पराजय के बाद लाई गई एक बड़ी घंटी भी स्थित है।

श्री गिरिजात्मज गणेश मंदिर
पुणे जिले के लेण्याद्री की पहाड़ियों पर स्थित यह मंदिर भगवान गणेश की माता पार्वती के नाम से जुड़ा है। यहां भगवान गणेश की मूर्ति स्वयंभू रूप में एक गुफा में स्थित है। कहा जाता है कि मां पार्वती ने यहीं तप कर गणेश जी को जन्म दिया था। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 307 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।
श्री चिंतामणि विनायक मंदिर
पुणे जिले के थेऊर गांव में स्थित यह मंदिर 'चिंता हरने वाले' गणपति के रूप में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां गणेश जी ने गणासुर नामक दैत्य से चिंतामणि रत्न पुनः प्राप्त कर के ऋषि कपिल को लौटाया था। तभी से यह स्थान चिंतामणि नाम से जाना जाता है।
श्री विघ्नेश्वर मंदिर
विघ्नेश्वर मंदिर ओझर गांव में स्थित है, जो पुणे से लगभग 85 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर भगवान गणेश के विघ्नहर्ता स्वरूप को समर्पित है। यह अष्टविनायक मंदिरों में से एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां सोने का कलश स्थापित है। यहां गणेश जी ने विघ्नासुर नामक असुर का वध किया था।
श्री महागणपति मंदिर
यह मंदिर पुणे से कुछ दूरी पर रांजणगांव में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था और बाद में इसे माधवराव पेशवा ने पुनर्निर्मित करवाया। उन्होंने मंदिर के तहखाने में गणेश जी की प्राचीन मूर्ति सुरक्षित रखने के लिए एक गुप्त कक्ष भी बनवाया था। बाद में इसका विस्तार इंदौर के एक सरदार ने करवाया।
श्री वरदविनायक मंदिर
रायगढ़ जिले के महड़ गांव में स्थित यह मंदिर वरद यानी वर देने वाले गणेश जी को समर्पित है। यह मंदिर 1725 ई. में सुभेदार रामजी महादेव बिवलकर द्वारा बनवाया गया था। यहां एक झील के पास से गणेश जी की प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसे मंदिर में स्थापित किया गया। इस मंदिर की एक और खास बात यह है कि यहां 1892 से लगातार एक दीपक जल रहा है।
