Govatsa Dwadashi Vrat Katha: गोवत्स द्वादशी व्रत कथा से कटेंगे पाप, मिलेगा संतान का भरपूर प्यार

Edited By Updated: 12 Oct, 2025 03:00 PM

govatsa dwadashi vrat katha

Bach Baras Katha: गोवत्स द्वादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि गौ माता के प्रति श्रद्धा और आस्था का पर्व है। कथा और पूजा से परिवार में धन, सुख और सौभाग्य का वास होता है। गोवत्स द्वादशी, जिसे बछ बारस भी कहा जाता है, दिवाली से पहले मनाई जाती है। यह पर्व...

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Bach Baras Katha: गोवत्स द्वादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि गौ माता के प्रति श्रद्धा और आस्था का पर्व है। कथा और पूजा से परिवार में धन, सुख और सौभाग्य का वास होता है। गोवत्स द्वादशी, जिसे बछ बारस भी कहा जाता है, दिवाली से पहले मनाई जाती है। यह पर्व गाय और बछड़ों की पूजा का प्रतीक है। हिंदू शास्त्रों और पंचांग के अनुसार, इस दिन की पूजा से परिवार में सुख-शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि गौ सेवा और मातृसदृश भाव अत्यंत पुण्यकारी हैं। इस दिन गाय और बछड़ों की पूजा करने से लाभ, स्वास्थ्य और घर में खुशहाली आती है।

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ऐसी मान्यता है कि इस दिन पहली बार श्री कृष्ण वन में गऊएं-बछड़े चराने गए थे। माता यशोदा ने श्री कृष्ण का श्रृंगार करके गोचारण के लिए तैयार किया था। पूजा-पाठ के बाद गोपाल ने बछड़े खोल दिए। यशोदा ने बलराम जी से कहा कि बछड़ों को चराने दूर मत जाना और कान्हा को अकेला मत छोड़ना, देखना यमुना के किनारे अकेला न जाए।

गोपालों द्वारा गोवत्स चारण की पुण्यतिथि को इसलिए पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पुत्र की मंगल-कामना के लिए किया जाता है। इसे पुत्रवती स्त्रियां करती हैं। इस पर्व पर गीली मिट्टी की गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाट पर रखी जाती हैं तब उनकी विधिवत पूजा की जाती है।

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Story of Bach Baras बछ बारस की कथा
कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक साहूकार अपने सात बेटों और पोतों के साथ रहता था। उसने गांव में तालाब बनवाया, लेकिन कई वर्षों तक पानी नहीं भरा। पंडित ने बताया कि तालाब तभी भरेगा जब बड़ा बेटा या बड़ा पोता बलिदान देंगे।

साहूकार ने गलती से अपने बड़े पोते की बलि दे दी। तभी बरसात हुई और तालाब भर गया। इसके बाद बछ बारस आई और परिवार ने तालाब की पूजा की। दासी ने बछड़े गेहुंला को पकाने की कोशिश की। इसी बीच साहूकार का पोता वापस लौटा।

सास ने बहू को समझाया कि बछ बारस माता ने उनकी लाज रखी और बच्चे को सुरक्षित किया। इस घटना के बाद गांव में यह परंपरा शुरू हुई कि हर पुत्र की मां को बछ बारस का व्रत करना चाहिए।

कथा के अन्य रूपों में कहा जाता है कि दासी ने दो बछड़े, गेहूंला और मूंगला, काटकर पकाने की कोशिश की। इसलिए इस दिन गेहूं, मूंग और चाकू का प्रयोग वर्जित है।

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Story of the fast of Govatsa Dwadashi गोवत्स द्वादशी की व्रत कथा
प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक गाय और एक भैंस थी। उनकी दो रानियां थीं, एक का नाम सीता और दूसरी का नाम गीता था। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था। वे उसे बहुत प्यार करती थी तो वहीं दूसरी रानी गीता गाय से सखी-सहेली के समान और बछड़े से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी। ये देखकर भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा कि गीता गाय और बछड़ा से बहुत प्यार करती है और मुझसे नफरत करती हैं।

तब सीता ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो मैं सब ठीक कर दूंगी और सीता ने इसके लिए एक चालाकी की और गाय के बछड़े को काटकर गेहूं के ढेर में छिपा दिया और इस बात का पता किसी को नहीं लगा लेकिन एक दिन राजा भोजन करने बैठा तो मांस और खून की बारिश होने लगी और महल के चारों ओर सिर्फ खून और मांस ही दिखाई दे रहा था। जिससे सब हैरानी में पड़ गए तभी एक आकाशवाणी हुई। जिसके बाद राजा को सब कुछ समझ आ गया। उस आकाशवाणी में कहा गया कि अगर राजा भैंस को बाहर निकाल देगा और गाय और बछड़े की पूजा करना शुरू कर देगा तो सब ठीक हो जाएगा। तभी से गोवत्स द्वादशी मनाई जाने लगी। 

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