देवी कालिका का ही रूप हैं गुह्य काली, कहां है इनका शक्तिपीठ?

Edited By Updated: 28 May, 2021 03:41 PM

guhya kali mata mantra and temple

शास्त्रों में कालिका देवी के स्वरूप को अधिक भयंकर माना जाती है। तो वहीं इन्हीं शास्त्रों में माता कालिका के कई अनेक स्वरूपों का भी वर्णन किया गया है। जिनमें से प्रमुख रूप से लोग जानते हैं वो हैं

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शास्त्रों में कालिका देवी के स्वरूप को अधिक भयंकर माना जाती है। तो वहीं इन्हीं शास्त्रों में माता कालिका के कई अनेक स्वरूपों का भी वर्णन किया गया है। जिनमें से प्रमुख रूप से लोग जानते हैं वो हैं, दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली तथा महाकाली। परंतु आपको बता दें इसके अलावा देवी कालिका के और भी अवतार हैं, जैसे श्यामा काली, गुह्य काली, अष्ट काली और भद्रकाली आदि अनेक रूप भी है। शास्त्रों के अनुसार इनके सभी रूपों की अलग-अलग पूजा और उपासना पद्धतियां हैं। जिनमें से आज हम आपको बताने जा रहे हैं गुह्य काली के बारे में। 

धार्मिक मान्यताएं हैं कि नव दुर्गा की शक्ति मां सिद्धिकाली को ही गुह्य काली के नाम से भी जाना जाता है। जिनकी उपासना से प्राचीन काल के कई देवी-देवताओं ने जैसे इंद्र, वरुण, कुबेर, यम,, चंद्र, रावण, यम, राजा बलि, बालि, वासव, विवस्वान आदि ने अनेक प्रकार की सिद्धियां व शक्तियां प्राप्त की थी। अर्थात इनकी पूजन मुख्य तौर पर सिद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। 

यहां जानें इनकी उपासना के कुछ खास मंत्र- 

गुह्यकाली के कुछ मंत्र :
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं गुह्ये कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

यह मंत्र सर्वफलदायक, धर्मार्थकाममोक्षदायक, महापातकनाशक, सर्वसिद्धिदायक, सनातनी एवं भोग तथा मोक्ष देने वाला कहलाता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये मंत्र सवा लाख जप करने पर सिद्ध हो जाता है।

नवाक्षर मंत्र : क्रीं गुह्ये कालिका क्रीं स्वाहा।
चतुर्दशाक्षर मंत्र : क्रौं हूं ह्रीं गुह्ये कालिके हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
पंचदशाक्षर मंत्र : हूं ह्रीं गुह्ये कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
अन्य मंत्र: ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

ध्यान
द्यायेन्नीलोत्पल श्यामामिन्द्र नील समुद्युतिम्। धनाधनतनु द्योतां स्निग्ध दूर्वादलद्युतिम्।।
ज्ञानरश्मिच्छटा- टोप ज्योति मंडल मध्यगाम्। दशवक्त्रां गुह्य कालीं सप्त विंशति लोचनाम्।।

बता दें इन देवी को नेपाल के काठमांडू में एक मंदिर भी समर्पित हैं, जिसे गुजयेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यताएं हैं इस प्राचीन स्थल पर देवी सती के दोनों घुटने गिरे थे जिस कारण इस मंदिर को देवी के शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। यहां की शक्ति महाशिरा एवं भैरव कपाली के नाम से प्रसिद्ध है। कुछ अन्य किंवदंतियो के अनुसार इस मंदिर को गुह्येश्वरी के नाम भी प्रधान है।

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