Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 May, 2024 09:14 AM
मां वह अलौकिक शब्द है जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है। हृदय में दिव्य भावनाओं का ज्वार उमड़ आता है। हमारा मन उन सुखद स्मृतियों के प्रवाह में डूब जाता है। मां की
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Happy Mother Day: मां वह अलौकिक शब्द है जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है। हृदय में दिव्य भावनाओं का ज्वार उमड़ आता है। हमारा मन उन सुखद स्मृतियों के प्रवाह में डूब जाता है। मां की ममता, स्नेह, प्रेम, त्याग और वात्सल्य की छाया को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना संभव नहीं है। संतान के निर्माण एवं पालन-पोषण में मां का पुरुषार्थ, धैर्य तथा संघर्ष शब्दों की सीमा में बांधा नहीं जा सकता।
मां ही वह व्यक्तित्व है जिससे बच्चा प्रतिफल मानसिक रूप से जुड़ा हुआ होता है। माताएं ही किसी भी राष्ट्र का वास्तविक आधार स्तंभ होती हैं। वे देश को उन्नति के शिखर पर भी ले जा सकती हैं और पतन के गर्त में भी गिरा सकती हैं। महापुरुष सदा ही श्रेष्ठ माता के पुत्र हुआ करते हैं। हमारे वेद, पुराण, स्मृतियां, महाकाव्य, उपनिषद् मां की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं। वेद में मां को संतान की निर्माणकर्ता माना गया है।

मां के माध्यम से ही संतान में तप, ज्ञान, शक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मां की स्नेहमयी गोद में रहकर ही बच्चा अमूल्य संस्कारों को ग्रहण करता है। महाभारत में वेदव्यास जी ने मां की विशिष्टता को वर्णित करते हुए कहा है-
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मैत्री समं गति।
नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मैत्री समं प्रिया।।
अर्थात - जीवन में माता के समान कोई छाया नहीं है, उसके समान कोई सहारा और रक्षक नहीं है तथा मां के समान कोई प्रिय अथवा जीवनदाता नहीं है। माता के सानिध्य में ही मनुष्य ज्ञानवान और संस्कारवान बनता है। मां संस्कारों की पाठशाला है। ‘मनसा, वाचा, कर्मणा’ प्रतिपल मां अपनी संतान को समर्पित रहती है।
अपने वात्सल्यमयी स्नेह से हाड और मांस के छोटे से पुतले में विराट व्यक्तित्व का आधान करती है। अथर्ववेद में मां की महिमा का गुणगान करते हुए कहा गया है -
तीर्थ: तरन्ति प्रवतो महि:।

अर्थात - मां पृथ्वी के समान सब तीर्थों से युक्त है। मां के चरणों में ही सभी तीर्थों का निवास है। मनुस्मृति में मनु महाराज जी कहते हैं-
‘दस उपाध्याओं से एक आचार्य, सौ आचार्यों के समान एक पिता, हजार पिताओं से अधिक एक माता गौरवपूर्ण होती है।’
वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री राम जननी का महत्व बताते हुए भ्राता लक्ष्मण को कहते हैं-
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थात - जन्म देने वाली मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती हैं।
नौ महीने तक बालक को अपने गर्भ में रखकर तथा उसके जन्म के उपरांत जितने भी कष्ट, दुख और वेदना मां सहन करती है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। अपनी संतान के निर्माण में स्वयं के सुख को भी भुला देती है मां। अपनी संतान के ऊपर उसके अनंत ऋण हैं। उनसे कोई भी मनुष्य उऋण नहीं हो सकता।
जब बच्चे का जन्म होता है तो उस समय मानो मां का भी दूसरा जन्म होता है। मां दुनिया की एकमात्र ऐसा व्यक्तित्व है जो अपनी संतान को पूरी दुनिया से नौ महीने अधिक जानती है। मां हर एक रिश्ते की प्रतिपूर्ति कर देती है परंतु मां की प्रतिपूर्ति कोई नहीं कर सकता। हमारी सनातन संस्कृति में हर पल मां के प्रति कृतज्ञ रहने का संदेश दिया गया है। हमारे आध्यात्मिक ग्रन्थों में मां को देव की संज्ञा दी गई है। मातृ दिवस जीवन भर अपनी माता के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने का संदेश देता है।
