Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 May, 2025 08:02 AM

हिमाचल प्रदेश के चम्बा में स्थित एक शिवालय चम्बा के राजा राज सिंह के बलिदान की माया को बयां करता है। 248 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक लड़ाई में शहीद हुए
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Himachal pradesh chamba naresh shivalaya: हिमाचल प्रदेश के चम्बा में स्थित एक शिवालय चम्बा के राजा राज सिंह के बलिदान की माया को बयां करता है। 248 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक लड़ाई में शहीद हुए चम्बा नरेश के बलिदान की कहानी को शिखर शैली में बना यह मंदिर दोहराता है। बलिदान की यह घटना सात आषाढ़ 1794 अर्थात 21 जून, 1794 को हुई थी, जिसमें चम्बा के राजा राज सिंह (राजस्व रिकार्ड में राय सिंह) कांगड़ा की कटोच सेना से लड़ते पूर्विया नामक सैनिक द्वारा पीठ पीछे से तलवार का वार करने पर खोपड़ी उड़ जाने पर भी अढ़ाई घड़ी लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे।

कांगड़ा जिला गजटीयर में यह घटना दर्ज है। उसमें लिखा है कि राज सिंह के शरीर पर तलवार के 48 घाव थे। उनकी अंत्येष्टि रेहलू में खौहली खड्ड के तट पर हुई, जहां उनकी रानियां भी सती हुईं, जिसका प्रमाण वहां बनी सती देहरियां हैं। चम्बा नरेश राज सिंह शक्ति के उपासक थे। उनके यहां गुलेर से गए चित्रकारों को भी आश्रय मिला, जिसके फलस्वरूप कांगड़ा चित्रकला की प्रतिछाया चम्बा चित्रकला में भी मिलती है। राज सिंह के शासनकाल में चम्बा रुमाल को भी प्रश्रय मिला।
युद्ध में कटोच सैनिक राज सिंह की खोपड़ी को लेकर अपनी सीमा की ओर भागे थे, जिसे गज नदी के पार की चढ़ाई पर घाटी में उनका सामना करके चम्बा सैनिकों ने छीना था। राजा राज सिंह की अंतिम इच्छा पर ही उनके पुत्र जीत सिंह (1794-1808) ने राजा बनने पर नेरटी में हुए युद्ध स्थल पर 1795-179 के मध्य उनकी स्मृति शिला देहरी और शिवालय का निर्माण करवाया था। तभी से शुरू हुआ था देहरे दा या राज्जे दा मेला। गांव नेरटी, तहसील शाहपुर, निकट रैत कस्बा में होने के कारण यह मेला नेरटी की संज्ञा से भी लोकप्रिय है। रियासतीकाल तक यह मेला चम्बा-कांगड़ा रियासतों के भाईचारे और व्यापार का मेला था, जो अपने मूल स्थान मंदिर परिवेश में सप्ताह भर चलता रहता था।

ऊनी वस्त्रों और भरमौरी फलों का व्यापार होता। यहीं से यह मेला द्रम्मण की छिंज के रूप में 8-9 आषाढ़ को वहां हुआ करता।
बताते हैं इस मेले में उस समयानुरूप पठानकोट, अमृतसर तक के व्यापारी आया करते। तब श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर चम्बा की ओर से 110 रुपए वार्षिक भोग के लिए आया करते।
राजा राज सिंह रियासत के लोगों में जनकल्याण कार्य करने के कारण भी बड़े लोकप्रिय थे। इनका जन्म राजनगर में हुआ था। चूंकि उस समय चम्बा के राजमहल में गद्दी प्राप्त करने हेतु षड्यंत्र चल रहा था, इसलिए इनकी माता को राजनगर में महल बनवाकर रखा गया था।
आजादी के बाद रियासतों का विलय हो गया और धीरे-धीरे इस मेले को आने वाली वार्षिक भोग राशि भी बंद हो गई। मंदिर के साथ लगी मारूसी भूमि भी 1953-54 में मारूसी अधिनियम के अंतर्गत किसानों को चली गई। अन्य किसी भी स्रोत से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिलता। इस मंदिर का दुर्भाग्य कहें या लोक दृष्टि, यह आज तक इतिहास ही रहा, शिव मंदिर भी नहीं बन सका।