History And Chhath Puja Vrat Katha: इन कथाओं से जानें, छठ पूजा का इतिहास

Edited By Updated: 23 Oct, 2025 04:37 PM

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History And Significance of Chhath Puja 2025: छठ पर्व या छठ व्रत सूर्य की उपासना का प्रतीक है। जिसमें व्रतधारी, व्रत के साथ ही विशेष स्वच्छता का ध्यान रखता है। नहाय खाय के साथ छठ पर्व की शुरूआत होती है। मालूम हो कि हर साल छठ व्रत कार्तिक मास के...

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History And Significance of Chhath Puja 2025: छठ पर्व या छठ व्रत सूर्य की उपासना का प्रतीक है। जिसमें व्रतधारी, व्रत के साथ ही विशेष स्वच्छता का ध्यान रखता है। नहाय खाय के साथ छठ पर्व की शुरूआत होती है। मालूम हो कि हर साल छठ व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है। यह त्योहार विशेष रूप से बिहार, पूर्वांचल, झारखंड आदि क्षेत्रों में विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है। छठ महापर्व के पीछे भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।

History And Significance of Chhath Puja

Chhath Puja Vrat Katha 2025 राजा प्रियंवद व मालिनी की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई और उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

History And Significance of Chhath Puja

भगवान राम ने की थी सूर्यदेव की आराधना
एक दूसरी कथा के अनुसार, लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।

History And Significance of Chhath Puja
कर्ण ने शुरू की सूर्य देव की पूजा
एक अन्य कथा यह भी है कि  छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

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छठ पर्व से पांडवों को मिला राजपाट
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इसके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।

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