Edited By Sarita Thapa,Updated: 24 Dec, 2025 02:20 PM

एक राजा अपार धन-सम्पदा होते हुए भी बड़े अशांत व उदास रहते थे। एक दिन वेश बदल कर घूमते हुए वह एक खेत से गुजरे, तभी उनकी नजर फटे-पुराने वस्त्र पहने एक किसान पर पड़ी। किसान पेड़ की छांव में बैठकर भोजन कर रहा था।
Inspirational Context : एक राजा अपार धन-सम्पदा होते हुए भी बड़े अशांत व उदास रहते थे। एक दिन वेश बदल कर घूमते हुए वह एक खेत से गुजरे, तभी उनकी नजर फटे-पुराने वस्त्र पहने एक किसान पर पड़ी। किसान पेड़ की छांव में बैठकर भोजन कर रहा था। राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे, ताकि वह खुश हो जाए। वह किसान से बोले, ‘‘मैं एक राहगीर हूं। तुम्हारे खेत पर मुझे ये चार स्वर्ण मुद्राएं गिरी मिलीं। यह खेत तुम्हारा है, इसलिए इन्हें तुम रखो।’’
किसान बोला, ‘‘ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं। मुझे ये नहीं चाहिएं। इन्हें चाहे तो आप रख लें या फिर किसी जरूरतमंद को दान कर दें।’’
यह प्रतिक्रिया राजा को अजीब लगी। वह बोले, ‘‘आप धन लेने से क्यों मना कर रहे हैं?’’
किसान ने कहा कि वह रोज चार रुपए कमाकर उसी में प्रसन्न रहता है। ‘‘यह कैसे संभव है?’’

राजा ने अचरज से पूछा। किसान बोला, ‘‘प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कितना कमाते हैं। प्रसन्नता उस धन के प्रयोग पर निर्भर है।’’ राजा बोले, ‘‘तो बताओ तुम इन चार रुपयों का क्या करते हो?’’
किसान ने कहा, इनमें से एक रुपया मैं कुएं में डाल देता हूं, दूसरे से कर्ज चुका देता हूं, तीसरा उधार में दे देता हूं और चौथा मिट्टी में गाड़ देता हूं। राजा को यह उत्तर समझ नहीं आया। उसने किसान से इसका मतलब पूछा। किसान बोला, ‘‘ मैं एक रुपया अपने परिवार के भरण-पोषण में लगाता हूं। दूसरे एक रुपए से मैं अपने वृद्ध मां-बाप की सेवा करता हूं। तीसरा रुपया मैं बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में लगा देता हूं और अन्य चौथा रुपया मैं बचा लेता हूं ताकि समय आने पर मुझे किसी से मांगना न पड़े।’’
राजा को अपनी अशांति का इलाज मिल चुका था। वह समझ गए थे कि प्रसन्न और संतुष्ट रहना है तो ज्यादा कमाने की लालसा छोड़ उपलब्ध धन के सही इस्तेमाल पर ध्यान देना होगा।

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