Edited By Sarita Thapa,Updated: 26 Dec, 2025 02:57 PM

पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब कालेज की शिक्षा पूरी की, तब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। शिक्षक की नौकरी में वेतन बहुत कम था, फिर भी उन्हें वह नौकरी करनी पड़ी।
Inspirational Context : पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब कालेज की शिक्षा पूरी की, तब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। शिक्षक की नौकरी में वेतन बहुत कम था, फिर भी उन्हें वह नौकरी करनी पड़ी। बाद में उनकी योग्यता की चारों तरफ चर्चा होने लगी। ‘कालाकांकर’ के राजा रामपाल सिंह ने भी उनके विषय में बहुत कुछ सुन रखा था। उन्हें अपने समाचारपत्र के लिए योग्य संपादक चाहिए था।
उन्होंने मालवीय जी को बुलवाया और पूछा कि क्या वह उनके समाचारपत्र का संपादक बनना पसंद करेंगे। मालवीय जी ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। परन्तु एक समस्या थी कि राजा साहब शराब के आदी थे और मालवीय जी को शराब से चिढ़ थी। उन्होंने कहा, ‘मैं संपादक का कार्य जरूर करूंगा, परन्तु मेरी शर्त यह है कि जब आप नशे में हों तो कृपा करके मेरे पास न आएं। राजा ने हामी भर दी। इसके बाद मालवीय जी ने संपादन का कार्य लगन से शुरू कर दिया।

एक दिन राजा साहब नशे में अपनी शर्त भूल गए और मालवीय जी के कार्यालय में जा पहुंचे। मालवीय जी ने तुरंत अपना त्यागपत्र दे दिया। जब राजा का नशा उतरा तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने शर्त तोड़ने के लिए मालवीय जी से क्षमा याचना की, परन्तु मालवीय जी बोले, ‘‘मैं क्षमा करने से अधिक अपने आदर्श को मानता हूं। मैं अब आपके यहां कार्य नहीं कर सकता।’’
मालवीय जी के व्यक्तित्व का राजा साहब पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने उसी दिन से शराब को त्याग दिया। इतना ही नहीं, मालवीय जी को इस फैसले से किसी तरह का आर्थिक नुकसान न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए राजा साहब वेतन के बराबर राशि उन्हें वकालत पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति के रूप में देने लगे।

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