Inspirational Story: कर्मों से भी बढ़ता है बैंक बैलेंस पढ़ें, दिल से अमीर महिला की कहानी

Edited By Updated: 18 May, 2025 10:18 AM

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एक बार एक गरीब महिला लोकल बस में चढ़ी। उसके कपड़े मैले कुचैले और फटे हुए थे, बाल बिखरे हुए थे और शरीर से भी कमजोर लग रही थी। जैसे ही उसे बस में सीट मिली वह चुपचाप जाकर उस सीट पर बैठ  गई। कुछ ही देर में अगले स्टाप पर एक वृद्ध महिला बस में चढ़ी।

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Inspirational Story: एक बार एक गरीब महिला लोकल बस में चढ़ी। उसके कपड़े मैले कुचैले और फटे हुए थे, बाल बिखरे हुए थे और शरीर से भी कमजोर लग रही थी। जैसे ही उसे बस में सीट मिली वह चुपचाप जाकर उस सीट पर बैठ  गई। कुछ ही देर में अगले स्टाप पर एक वृद्ध महिला बस में चढ़ी। उस गरीब दिखने वाली महिला ने बिना देर किए अपनी सीट पर उस वृद्ध महिला को बिठा दिया और स्वयं खड़ी हो गई।

जब वह वृद्ध महिला अपने स्टाप आने पर उतरी वह गरीब महिला उसी सीट पर वापस बैठ गई। थोड़ी देर बाद एक बच्ची बस में चढ़ी। बच्ची को खड़ा देख उस महिला ने फिर से अपनी सीट पर उस बच्ची को बिठा दिया और आप खड़ी हो गई। बच्ची का स्टाप आने पर वह बच्ची उतरी तो उस महिला ने वापस सीट संभाल ली।

इसके बाद एक गर्भवती महिला बस में आई और सीट ढूंढने लगी। इस बार भी इस दयालु प्रवृति की महिला ने उस गर्भवती महिला को सहारा देते हुए अपनी सीट पर बिठा दिया और स्वयं खड़ी हो गई। जब गर्भवती महिला का स्टॉप आया तो उसे सहारा देकर उठने में मदद भी की और दरवाजे तक छोड़ा भी और उतरते समय उसका हाथ पकड़कर उसे नीचे उतरने में सहायक बनी। वापस फिर अपनी सीट पर बैठ गई।

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थोड़ी देर में एक सामान्य महिला बस में चढ़ी। वह न वृद्ध थी न बच्ची और न ही गर्भवती। पूरी तरह स्वस्थ लग रही थी फिर भी उस गरीब पर दिल से अमीर महिला ने अपन सीट छोड़ते हुए उस महिला को बिठा दिया।

यह सब दृश्य एक महिला, जो अध्यापिका थी, देख रही थी और बहुत आश्चर्यचकित हुई। उसने सोचा वृद्ध महिला, बच्ची और गर्भवती महिला के लिए सीट छोड़ना समझ में आता है लेकिन एक सामान्य महिला के लिए सीट छोड़ने का और बार-बार सीट छोड़ने का कारण क्या हो सकता है ?

जब बस अपने आखिरी स्टाप पर पहुंची तो अध्यापिका ने उस महिला से पूछ ही लिया। अध्यापिका बोली- ‘‘बहन मैंने देखा कि आप बार-बार अपनी सीट दूसरों को दे देती थीं, जबकि उस सीट पर आपका भी उतना ही हक था। बैठे रहने का फिर आप क्यों खड़ी हो जाती थीं ?’’

गरीब दिखने वाली महिला मुस्कुराई और बोली, ‘‘मैडम जी, मैं दूसरों के घरों में काम करती हूं। बर्तन साफ करना, खाना बनाना  और झाड़ू पोंछा करने का काम करती हूं।’’

‘‘मेरे पास अधिक धन नहीं है कि किसी को दान दे सकूं, भंडारा कर सकूं या किसी को भोजन करवा सकूं लेकिन मेरे पास कर्म हैं। दान देने के लिए धन नहीं है, कोई बात नहीं। हवन यज्ञ करने के लिए धन नहीं है कोई बात नहीं। भंडारा करने के लिए धन नहीं है, कोई बात नहीं और किसी भूखे को खाना खिलाने के लिए धन नहीं है, कोई बात नहीं, बस अपने कर्मों से दान करने की कोशिश करती हूं।’’

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उसने आगे कहा, ‘‘मेरे अच्छे कर्म ही मेरे ईश्वर के बैंक में मेरे खाते में बैंक बैलेंस बढ़ा रहे हैं। इन्हीं कर्मों के कारण मेरा परिवार सुखी है। मेरे बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, मेरा पति मेहनती है और समझदार है।’’

‘‘हमारे पास बहुत अधिक धन नहीं है, पर जो है, उसमें खुश हैं। जब मैं अपने आसपास देखती हूं तो पाती हूं कि लोग कितने दुखी हैं लेकिन मेरे अच्छे कर्मों की वजह से मेरे जीवन में दुख नहीं आता।’’

उस महिला की बातों से अध्यापिका की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, ‘‘मैं स्कूल में बच्चों को शिक्षा देती हूं, पर आज असली शिक्षा तो आपने मुझे दी है। आज से आप मेरी शिक्षिका हो। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।’’

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सेवा के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। हम अपने छोटे-छोटे कर्मों से भी दूसरों की मदद कर सकते हैं।
किसी बुजुर्ग को सड़क पार करवा देना, किसी जरूरतमंद की सहायता कर देना और किसी को प्रेम से मुस्कुरा देना, ये सब कर्म दान हैं। जब हम दूसरों के जीवन में खुशी लाते हैं तो वह खुशी हमारे जीवन में बूमरैंग की तरह वापस लौटकर आती है। अपने अच्छे वक्त में बुरे वक्त की तैयारी करो और बुरे वक्त में अच्छे वक्त की। जब अच्छा समय हो तो लोगों को इतनी मदद करो कि बुरा समय कभी आए ही न।  

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