Edited By Prachi Sharma,Updated: 17 Aug, 2025 07:00 AM

बात उस समय की है जब अकबर भारत का राजा था। उसकी सभा में एक दार्शनिक थे, उनका नाम था ‘अबू अली’। लोभ-लालच उन्हें ताउम्र छू भी नहीं सका। एक बार सहारा रेगिस्तान का एक अमीर उनके पास आया और बोला, “मैं आपके चरणों में बैठकर अध्ययन करना चाहता हूं।”
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Story: बात उस समय की है जब अकबर भारत का राजा था। उसकी सभा में एक दार्शनिक थे, उनका नाम था ‘अबू अली’। लोभ-लालच उन्हें ताउम्र छू भी नहीं सका। एक बार सहारा रेगिस्तान का एक अमीर उनके पास आया और बोला, “मैं आपके चरणों में बैठकर अध्ययन करना चाहता हूं।”
अबू ने कहा, “मैं तुम्हें पढ़ाने के लिए तैयार हूं, लेकिन 100 अशर्फियां हर माह लूंगा।”

अमीर व्यक्ति उन्हें त्याग और तप की मूर्ति समझता था लेकिन अशर्फियां मांगने पर उसे अच्छा नहीं लगा। लेकिन उसने अशर्फियां देने की बात को स्वीकार कर लिया। वह ज्ञान प्राप्त करने लगा। जब एक माह में ही शिक्षा पूरी हो गई तो उसने घर जाने की आज्ञा मांगी।
तब अबू अली ने अलमारी से 100 अशर्फियां निकालीं और उसे वापस कर दीं। अमीर हैरान हो गया। उसने कहा, “जब आपको मेहनताना ही नहीं लेना था तो आपने यह शर्त क्यों रखी थी कि 100 अशर्फियां मैं आपको हर माह दूं।”

अबू अली ने कहा, “मैं यह परखना चाहता था कि तुम ज्ञान की कीमत देने की इच्छा रखते हो या नहीं। जो कीमत नहीं दे सकता है उसे किसी से कुछ पाने का हक नहीं है।”
अमीर व्यक्ति अबू की विरक्ति देख नतमस्तक हो गया।
