Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jan, 2018 06:25 PM
जैसे कि हम सब जानते है कि भारत के एेसे कई मंदिर है जो अपनी विभिन्न प्रथाओं और रिवाजों को लेकर काफी प्रसिद्ध है। उन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणासी का जंगमवाड़ी मठ है।
जैसे कि हम सब जानते है कि भारत के एेसे कई मंदिर है जो अपनी विभिन्न प्रथाओं और रिवाजों को लेकर काफी प्रसिद्ध है। उन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणासी का जंगमवाड़ी मठ है। जो कि वाराणासी के सारे मठो में सबसे पुराना है। इसे जनाना सिमहास और जनाना पीठ के नाम से भी जाना जाता है। जंगम का अर्थ होता है शिव को जानने वाला और वादी का अर्थ होता है रहने का स्थान। यह मठ 50000 वर्ग फुट में फैला हुआ है।
जंगमवाड़ी मठ में शिवलिंगों की स्थापना को लेकर एक विचित्र परंपरा चली आ रही है। यहां आत्मा की शांति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग दान होता है। इस मठ में एक दो नहीं बल्कि कई लाख शिवलिंग एक साथ विराजते हैं। यहां मृत लोगों की मुक्ति और अकाल मौत की आत्मा की शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किए जाते हैं। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के चलते एक ही छत के नीचे दस लाख से भी ज्यादा शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं।
हिंदू धर्म में जिस विधि-विधान से पिंडदान किया जाता है। ठीक वैसे ही मंत्रोचारण के साथ यहा शिवलिंग स्थापित किया जाता है। यहां एक वर्ष में कई हजार शिवलिंगों की स्थापना श्रद्धालुओं द्वारा की जाती है। जो शिवलिंग ख़राब होने लगते है, उसकों मठ में ही सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है। ये मठ दक्षिण भारतीयों का है। जैसे हिंदू धर्म में लोग अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान करते है वैसे ही वीरशैव संप्रदाय के लोग पूर्वजों के मुक्ति के लिए यहां शिवलिंग दान करते है। यहां पर सबसे ज्यादा सावन के महीने में शिवलिंगों की स्थापना की जाती है। इस मठ में ये परंपरा पिछले 250 सालों से अनवरत यूं ही चली आ रही है।