यूपी के इस गांव में क्यों माना जाता है करवा चौथ व्रत रखना गलत ? जानिए छुपा हुआ सच

Edited By Updated: 09 Oct, 2025 07:01 AM

karwa chauth 2025

Karwa Chauth 2025: भारत में करवा चौथ को पति की लंबी उम्र, प्रेम और सौभाग्य के लिए मनाया जाता है, जिसकी धार्मिक पृष्ठभूमि भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई है। लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में सुरीर कस्बे के पास बसे बघा गांव की...

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Karwa Chauth 2025: भारत में करवा चौथ को पति की लंबी उम्र, प्रेम और सौभाग्य के लिए मनाया जाता है, जिसकी धार्मिक पृष्ठभूमि भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई है। लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में सुरीर कस्बे के पास बसे बघा गांव की कहानी सदियों पुरानी परंपरा से बिल्कुल अलग है।

इस गांव की मान्यताएं इतनी गहरी हैं कि पिछले ढाई सौ वर्षों से यहां की किसी भी विवाहित महिला ने करवा चौथ का व्रत नहीं रखा है। पूरे देश की सुहागिनें जिस दिन चांद देखकर व्रत खोलती हैं, बघा गांव की महिलाएं उस दिन व्रत से दूर रहती हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि कोई भी महिला यह व्रत रखती है, तो उसके पति पर संकट आ जाता है और उसका सुहाग खतरे में पड़ जाता है।

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श्राप नहीं, देवी की पूजा है असल वजह
गांव में शुरुआत में यह कहानी प्रचलित थी कि ढाई सौ साल पहले इसी जगह पर एक महिला का सुहाग उजड़ गया था, जिसके बाद से यह व्रत यहां अशुभ माना जाने लगा। इस श्राप के डर से ही महिलाओं ने यह व्रत रखना बंद कर दिया था। मगर गांव के मुखिया जलयशंकर जी इस मान्यता का खंडन करते हैं और इसके पीछे की असल वजह बताते हैं। उनके अनुसार, यह प्रतिबंध किसी श्राप के साए के कारण नहीं है, बल्कि उस देवी के कारण है जिसकी वे सदियों से पूजा करते आ रहे हैं।

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माता सती के स्वरूप की पूजा
जब इस गांव की नींव रखी गई थी, तब सबसे पहले यहाँ माता पार्वती के सती स्वरूप की पूजा की गई थी। तभी से यह विधान बना हुआ है कि गांव में केवल देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। माता सती का यह मंदिर लगभग 600 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है।

यही कारण है कि बघा गांव की महिलाएं:
कोई भी तीज या करवा चौथ जैसा व्रत नहीं रखती हैं। इसके बजाय, वे तीज या करवा चौथ के दिन भी केवल माता सती की पूजा करती हैं और उन्हें छप्पन भोग अर्पित करती हैं। यह गांव इस बात का एक अनोखा उदाहरण है कि कैसे आस्था और सदियों पुरानी धार्मिक परम्पराएं समाज के नियमों को बदल देती हैं। हालांकि, बघा गांव की महिलाओं को सुहागिनों की तरह श्रृंगार करने का पूरा अधिकार है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका उद्देश्य अपने सुहाग को त्यागना नहीं बल्कि अपनी कुलदेवी के प्रति अपनी भक्ति और परंपरा को बनाए रखना है।

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