शास्त्रों से जानें क्यों रखे जाते हैं व्रत

Edited By Updated: 04 May, 2018 03:26 PM

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व्रत एवं त्यौहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। प्राय: सभी पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है कि हमारे ऋषि-मुनि व्रत उपवास के द्वारा ही शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि करते हुए अलौकिक शक्ति प्राप्त करते थे।

व्रत एवं त्यौहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। प्राय: सभी पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है कि हमारे ऋषि-मुनि व्रत उपवास के द्वारा ही शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि करते हुए अलौकिक शक्ति प्राप्त करते थे। वैदिक काल में ऋषियों ने व्रतों को आत्मिक उन्नति, आत्म कल्याण और लोक मंगल का साधन समझ कर किया। हमारे देश का सर्वाधिक प्रभावशाली आध्यात्मिक व्रत नचिकेता के द्वारा पिता की आज्ञा से यमलोक में जाकर आत्मा का अमर ज्ञान प्राप्त करना माना गया।


त्रेतायुग में भगवान राम के अवतरण पर राम नवमी, राम द्वारा लंका विजय पर विजयदशमी तथा वनवास के पश्चात अयोध्या आगमन पर दीपावली जैसे त्यौहार प्रचलन में आए। श्रीकृष्ण, लक्ष्मी, पार्वती आदि से जुड़े व्रत द्वापरयुग में प्रारंभ हुए। इसके अलावा सप्ताह के वारों के व्रत, उत्सव भी जन-जीवन में स्थान पाने लगे। इस प्रकार व्रतों का प्रचलन बढ़ता गया।


कलयुग में जब पाप कर्मों की वृद्धि होने लगी और पुण्य क्षीण हुए तो पुण्यार्जन के लिए अनेक प्रकार के व्रतों का प्रचलन तेजी से बढ़ा। व्रतों की धारा गंगा की धारा के समान भारत वासियों को पावन करने लगी। भारत के व्रत, पर्व एवं त्यौहार देश की सभ्यता और संस्कृति के दर्पण कहे जाते हैं। व्रत व्यक्तिगत जीवन को अधिक पवित्र बनाने के लिए हैं। इस दिन उपवास, ब्रह्मचर्य, एकांत सेवन, मौन, आत्मनिरीक्षण आदि की विधा सम्पन्न की जाती है।


दुर्गुण छोड़ने और सद्गुण अपनाने के लिए देव पूजन के संकल्प लिए जाते हैं। प्रेम और समर्पण की श्रेष्ठ भावना के साथ जो परमात्मा के पावन चरणों में उपस्थित होता है, उसका नियत प्रतिफल प्राप्त होने में देर नहीं लगती। परमात्मा के ध्यान, व्रत, जप से वासना का शमन होता है जिससे आंतरिक शांति प्राप्त होती है। चिंता, भय, दुष्टता तथा द्वेष के दोष मिटते हैं और आत्मा में प्रकाश तथा आनंद की प्राप्ति होती है।


वर्तमान में शिक्षित परिवारों में विभिन्न तीज-त्यौहारों के अवसर पर किए जाने वाले व्रतों को अंधविश्वास या दकियानूसी माना जाता है। हमारे पूर्वज इन्हीं व्रतों के द्वारा शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि करते हुए अलौकिक शक्ति प्राप्त करते थे। यह आत्मशोधन, शक्ति का उत्तम स्रोत है। व्रत से श्रेष्ठ कार्य करने की योग्यता, आत्मविश्वास, अनुशासन की भावना आती है। इसके नियम पालन से शरीर को तपाना तप कहलाता है।


इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनुष्य का भगवान की शरण में जाना, मनौती मांग कर पूजा, व्रत करना, उसका गुणगान करना, इन सबके पीछे यह भावना निहित होती है कि भगवान की उपासना में ही उसका सुख-दुख छिपा है। जब भी वह श्रद्धा भक्ति के साथ विधि-विधान से व्रत करता है तो उसका फल उसे अवश्य मिलता है। भारतीय व्रतों में अनगिनत रोचक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाएं छिपी हुई हैं जो देश की एकता और अखंडता की प्रतीक हैं, सभ्यता और संस्कृति की दर्पण हैं।


व्रत का आध्यात्मिक एवं शास्त्रोक्त महत्व
उपवास से बढ़कर दूसरा कोई तप नहीं है। उप का अर्थ थोड़ा-सा खाना और वास का अर्थ भगवान की उपासना में अधिक वास करना।


व्रत से चित्त की शुद्धि, देह हल्की हो जाती है।


मन की शक्ति और दृढ़ता प्राप्त होती है।


उपवास विषय वासना आदि विकारों से निवृत्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है।


व्रत से आत्मा की शुद्धि होती है और आत्मबल दृढ़ होता है।
 

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