Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Jan, 2023 07:30 AM

प्रणाम में बड़ी ताकत होती है। पहले लोग सुबह-सुबह उठकर घर के बड़े-बुजुर्गों को झुक कर प्रणाम करते थे, उनके चरण स्पर्श पर आशीर्वाद प्राप्त करते थे, विशेषकर महिलाएं, लेकिन आजकल यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है
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Benefits of touching feet of elders: प्रणाम में बड़ी ताकत होती है। पहले लोग सुबह-सुबह उठकर घर के बड़े-बुजुर्गों को झुक कर प्रणाम करते थे, उनके चरण स्पर्श पर आशीर्वाद प्राप्त करते थे, विशेषकर महिलाएं, लेकिन आजकल यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है और हम बुजुर्गों के आशीर्वादों से वंचित। वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याएं हैं, उनका मूल कारण यही है कि हम घर के बड़े-बुजुर्गों का आदर नहीं करते और जाने-अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है। यदि घर के बच्चे और बहुएं प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो शायद किसी भी घर-परिवार में कभी कोई क्लेश ही न हो, दरअसल बड़ों के दिए हुए आशीर्वाद हमारे लिए कवच की तरह काम करते हैं और उनको दुनिया का कोई भी अस्त्र-शस्त्र नहीं भेद सकता।
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Krishna Draupadi Katha: महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर भीष्म पितामह ने घोषणा कर दी कि वह कल पांडवों का वध कर देंगे। पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई क्योंकि भीष्म पितामह की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था।
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि तुम जाकर भीष्म पितामह को प्रणाम करो। द्रौपदी ने उनके पास जाकर पितामह को प्रणाम किया तो उन्होंने ‘अखंड सौभाग्यवती भव:’ का आशीर्वाद दे दिया और पूछा, ‘‘तुम इतनी रात में अकेली यहां कैसे आई हो, क्या तुमको श्रीकृष्ण लेकर आए हैं। मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते हैं।’’
शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन, दुशासन आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होतीं तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती।
तात्पर्य है कि सभी इस प्रणाम संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर ही स्वर्ग बन जाए क्योंकि प्रणाम प्रेम है। अनुशासन ही शीतलता है, यह झुकना सिखाता है, क्रोध और अहंकार मिटाता है। ‘प्रणाम’ हमारे आंसुओं को धो देता है और ‘प्रणाम’ ही हमारी संस्कृति है।
