श्री राम व पांच पांडवों ने भी किया था यहां स्नान, जानिए कहां है कुशावर्त घाट

Edited By Updated: 16 Mar, 2021 05:52 PM

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हरिद्वार अर्थात हरि का द्वार तथा हरि यानि भगवान विष्णु। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हरिद्वार नगरी को भगवान श्रीहरि बद्रीनाथ का द्वार माना जाता है, जो गंगा के तट पर स्थित है। पुराणों में इसे गंगा द्वार व मायापुरी क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।

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हरिद्वार अर्थात हरि का द्वार तथा हरि यानि भगवान विष्णु। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हरिद्वार नगरी को भगवान श्रीहरि बद्रीनाथ का द्वार माना जाता है, जो गंगा के तट पर स्थित है। पुराणों में इसे गंगा द्वार व मायापुरी क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। हरिद्वार को भारतवर्ष के 7 पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। यहीं स्थित हरि की पौड़ी की ब्रह्मकुंड के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक दिन यहां गंगा मां की भव्य आरती गाई जाती है, जो विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस बार यानि 2021 में पूरे 1 महीने तक कुंभ का आयोजन हरिद्वार में हुआ है। महाकुंभ मेले का आयोजन शुरू होते ही देश दुनिया के लोग पावन तीर्थ स्थल हरिद्वार में उमड़ना शुरू हो चुके हैं। इसी बीच हम आपको हरिद्वार में आयोजित कुंभ से जुड़ी पर्याप्त जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं। इस कड़ी को बरकरार रखते हैं आज हम आपको बताने जा रहे हैं हरिद्वार के कुशावर्त घाट के बारे में। यूं तो कुंभ के दौरान हरिद्वार के विभिन्न घाटों पर स्नान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। परंतु बात करें कुशावर्त की तो इसकी खासियत सबसे अलग है। आइए जानते हैं इस कुंड के बारे में-

मान्यताएं प्रचलित हैं कि यूं तो हरिद्वार में हर की पौड़ी ही प्रमुख घाट है, जहां पर समुद्र मंथन के दौरान अमृत कुंभ का जल गिरा था, यहां भगवान विष्णु के पद चिन्ह मौजूद है। जिस कारण इस घाट क्षेत्र को ब्रह्मकुंड भी कहा जाता है।

परंतु इसके अलावा यहां अन्य कई घाट हैं जो अति प्रसिद्ध है। जैसे मालवीय घाट, नाईसोता घाट, जनाना घाट, सुभाष घाट, गऊ घाट, विष्णु घाट, कुशावर्त घाट, नारायणी स्रोत, राम घाट, त्रिवेणी घाट, बिरला घाट घाट हैं, जहां पर आकर श्रद्धालु दूर दूर से स्नान करने आते हैं।

कुशावर्त घाट: कुशावर्त घाट को लेकर मान्यताएं प्रचलित हैं कि जिस स्थल पर यह स्थित है वह भगवान विष्णु के ही अवतार दत्तात्रेय की समाधि स्थली माना जाता है। इसी स्थल पर प्राचीन समय के एक महान संत दत्तात्रेय यहां ध्यान किया करते थे। मिथकों के अनुसार दत्तात्रेय ने केवल एक पैर पर खड़े रह कर एक हज़ार साल तक यहाँ तपस्या की थी।

इसके अलावा ये कहा जाता है कि इसी घाट पर रामायण काल में श्री राम ने तथा महाभारत काल में पांडवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। जिस कारण इसे अति प्रसिद्ध माना जाता है और दूर से दूर से लोग यहां स्नान करने आते हैं, जिससे पितरों को शांति प्राप्ति होती है। बताया जाता है कुशावर्त घाट का निर्माण मराठा रानी, अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करवाया गया था। वर्तमान समय में लोग अपने प्रियजनों की आत्मा की शांति हेतु ‘श्राद्ध’ कराने आते हैं। 

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