Lingam: शिव जी की पूजा ही क्यों होती है लिंग रूप में, जानें अद्भुत रहस्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Feb, 2024 11:24 AM

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महार्षि भृगु जी द्वारा रचित ग्रंथ भृगु संहिता जो कि ताम्र पत्रों पर लिखित सुल्तानपुर लोधी में स्थित है। इस प्राचीन ग्रंथ में भगवान शिव जी की शिवलिंग के रूप में ही क्यों पूजा होती है सवाल का ऑथेंटिकेट जवाब

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Shiva Lingam story: महार्षि भृगु जी द्वारा रचित ग्रंथ भृगु संहिता जो कि ताम्र पत्रों पर लिखित सुल्तानपुर लोधी में स्थित है। इस प्राचीन ग्रंथ में भगवान शिव जी की शिवलिंग के रूप में ही क्यों पूजा होती है सवाल का ऑथेंटिकेट जवाब लिखा हुआ है। ग्रंथ को पढ़ने वाले महायश वाचक श्री मुकेश पाठक जी ने बताया की भगवान शिव की पूजा भी लिंगाकृति में होती है इसका भी कारण है भृगु जी द्वारा दिया गया श्राप। 

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True story behind shiva linga: त्रिदेवों में से सर्वश्रेष्ठ कौन हैं ? इसकी परीक्षा लेने के लिये भृगु जी महाराज पहले सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी के पास गये परन्तु सर्वश्रेष्ठ होने का गुण न पाकर फिर भगवान शंकर के पास कैलाश गये। शिव जी समाधी में लीन थे, उनके गणों ने भृगु जी को मिलने से मना कर दिया। महर्षि होने के कारण किसी भी स्थान पर जाने के लिय कोई रोक टोक नहीं थी। फिर भी महर्षि ने कहा कि, कृपा आप उन्हें मेरे आने का संदेशा अवश्य दें परन्तु शिव जी के गण हरगिज मानने को तैयार ना थे और ऐसा वाद-विवाद हो गया कि गणों ने भृगु जी का अपमान करना आरम्भ कर दिया। उनको मारने के लिये त्रिशूल इत्यादि शस्त्रों को साथ लेकर भृगु जी के पीछे-पीछे भागने लगे। अब भृगु जी ठहरे महर्षि उनके पास कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं था। अगर था तो केवल एक कमंडल। भागते-भागते भृगु जी एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां आकर वह ठहर गये और उनको क्रोध आ गया और मन ही मन सोचने लगे कि हे शंकर जी आज मैं आपके पास आया तो किसी और काम से था। आज तो मैंने आपको एक बहुत बड़ी उपाधी से सुशोभित करना था परन्तु आपके गणों ने मेरी यह हालत कर दी। 

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Shivling story: इस हालात पर क्रोधित होकर महार्षि भृगु जी ने भगवान शंकर जी को श्राप दे दिया कि जाओ आपकी भी कलयुग में पूजा न हो। श्राप मिलते ही भगवान शंकर का तीसरा नेत्र खुल गया और महर्षि के सामने उपस्थित हो गये। कहने लगे, "हे भृगु ! अपना दिया श्राप वापिस लो क्योंकि इस सृष्ठि के निर्माण करने में मेरा भी नाम आता है। अगर मुझे ही इस सृष्टि से बाहर निकाल दोगे तो इस सृष्टि में कुछ नहीं बचेगा। अगर हम सृष्टि बना सकते हैं तो इसका विनाश भी कर सकते हैं। जब भृगु जी ने इस पर गंभीरता से विचार किया तो सोचने लगे कि यह कहते तो ठीक हैं - अगर बना सकते हैं तो बिगाड़ भी सकते हैं। 

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Why is Shiva represented as a lingam: भृगु जी का भी क्रोध शांत हुआ और शंकर जी को कहा, हे शंकर जी दिया गया श्राप तो वापिस नहीं हो सकता परन्तु इसमें कुछ परिवर्तन किया जा सकता है। शंकर जी श्राप के परिवर्तन के लिये सहमत हो गये। तब महार्षि ने पूछा प्रभु क्या आप अब प्रसन्न हैं, तो शंकर जी ने सहमती जतायी। तब महर्षि भृगु जी बोले कि आपकी कलयुग में पूजा अवश्य होगी परन्तु जो यह शरीरिक आकार लिये हुए हो, इस रूप में पूजा न होकर ब्रह्मांड रूपी लिंग आकृति में होगी। यही भृगु जी का श्राप ही सबसे बडा कारण है कि - भगवान शंकर की पूजा एक लिंग की आकृति में होती है। तब भगवान शंकर जी ने महार्षि भृगु को आर्शीवाद दिया। हे महर्षि! आप जिस कार्य में लगे हुए हैं, आपका वह कार्य पूर्ण हो। धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया है कि - संत वचन पलटे नहीं पलट जाये ब्रह्मांड। 

Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientist
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM)

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