प्रभु जगन्नाथ को समुद्र की आवाज ने किया पेरशान तो हनुमान जी ने किया ये चमत्कार

Edited By Jyoti,Updated: 15 Jun, 2021 04:51 PM

lord jagannath and hanuman ji story in hindi

प्रभु जगन्नाथ का सबसे प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर ओड़िसा की पुरी नगरी जिसे सप्तपुरियों में से एक माना जाता स्थित है। तो वहीं इस सनातन धर्म के चार धामों में एक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पुरी में

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प्रभु जगन्नाथ का सबसे प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर ओड़िसा की पुरी नगरी जिसे सप्तपुरियों में से एक माना जाता स्थित है। तो वहीं इस सनातन धर्म के चार धामों में एक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण राजा इंद्रद्युम्न ने हनुमान जी की प्रेरण से बनवाया था। कई धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर की रक्षा का दायित्व का भार प्रभु जगन्नाथ ने श्री हनुमान जी को सौंप था। इसलिए माना जाता है कि इस मंदिर के कण-कण में हनुमान जी निवास करते हैं। ऐसा लोक मत है कि यहां हनुमान जी ने कई चमत्कार किए हैं। इन्हीं में से एक चमत्कार है यहां के समुद्र के पास स्थित मंदिर के समीप आने वाली समुद्र की आवाज़ को रोकना। जी हां, ऐसा कहा जाता है जगन्नाथ मंदिर में समुद्र की आवाज़ नहीं। हांलाकि मंदिर समुद्र के करीब स्थित है। मगर कैसे? अगर आप भी इस बारे में जानना चाहते हैं तो आगे दी गई कथा को ध्यान से पढ़िए- 

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार नारद जी  भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पहुंचे, जहां उनका सामना पवनपुत्र हनुमान जी से हुआ था। जब नारद जी प्रभु से मिलने के जा रहे थे, तो हनुमान जी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि प्रभु विश्राम कर रहे हैं, आपको अभीइ इंतज़ार करना होगा। जिसके बाद नारद जी द्वार के बाहर खड़े हो गए, और उनसे मिलने का इंतज़ार करने लगे। कुछ समय उन्होंने मंदिर के द्वार से भीतर झांका तो उन्होंने देखा कि प्रभु श्री लक्ष्मी जी के साथ उदास बैठे थे। जब नारद जी उनसे मिलने गए तो उन्होंने प्रभु से इसका कारण पूछा, तब प्रभु ने कहा,  यह समुद्र की आवाज हमें विश्राम कहां करने देती है।

प्रभु से यब जवाब सुन नारद जी ने हनुमान जी को बताया। जिस पर हनुमान जी ने क्रोधित होकर समुद्र से कहा कि तुम यहां से दूर हटकर अपनी आवाज रोक लो क्योंकि मेरे स्वामी तुम्हारे शोर के कारण विश्राम नहीं कर पाते हैं। समुद्रदेव ने प्रकट होकर हनुमान जी को बताया कि हे महावीर हनुमान! यह आवाज रोकना मेरे बस में नहीं। जहां तक पवनवेग चलेगा यह आवाज वहां तक जाएगी। अगर आप चाहते हैं कि यह आवाज़ कम हो तो इसके लिए आपको अपने पिता पवनदेव से विनति करनी होगी।

जिसके उपरांत हनुमान जी ने अपने पिता पवनदेव का आह्‍वान किया और उनसे कहा कि आप मंदिर की दिशा में न बहें। मगर पवनदेव ने कहा कि पुत्र यह संभव नहीं है। परंतु इसका एक उपाय है, तुम मंदिर के आसपास ध्वनिरहित वायुकोशीय वृत या विवर्तन बनाओ। 

लोक तब हनुमान जी ने अपनी शक्ति से खुद को दो भागों में विभाजित किया और फिर वे वायु से भी तेज गति से मंदिर के आसपास चक्कर लगाने लगे। इससे वायु का ऐसा चक्र बना की समुद्र की ध्वनि मंदिर के भीतर न जाकर मंदिर के आसपास ही घूमने लगी। कहा जाता है इसके बाद प्रभु को कभी समुद्र की आवाज़ ने परेशान नहीं किया और मंदिर में श्री जगन्नाथजी आराम से सोते रहते हैं।

कहा जाता है कि तभी से मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से)  सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुना जा सकता। मंदिर के बाहर से एक ही कदम को पार करने पर इसे सुना जा सकता है। तो वहीं शाम के समय इसे स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। 

बता दें जगन्नाथ मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।

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