Maa Mundeshwari Bhawani Temple: मां मुंडेश्वरी मंदिर का अद्भुत रहस्य, बलि देने के बाद जीवित हो जाता है बकरा !

Edited By Updated: 08 Oct, 2025 06:00 AM

maa mundeshwari bhawani temple

Maa Mundeshwari Bhawani Temple: भारत में कई मंदिर हैं जो अपने चमत्कारों और रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। उन्हीं में से एक है बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ, जिसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

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Maa Mundeshwari Bhawani Temple: भारत में कई मंदिर हैं जो अपने चमत्कारों और रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। उन्हीं में से एक है बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ, जिसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की अनोखी बलि प्रथा इसे और भी खास बनाती है।

अहिंसक बलि की अनूठी परंपरा
जहां देश के कुछ हिस्सों में देवी काली या उनके रौद्र रूपों को प्रसन्न करने के लिए पशु बलि की जाती है, वहीं मुंडेश्वरी मंदिर में सात्विक बलि की परंपरा निभाई जाती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि बलि में खून नहीं बहाया जाता।

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यहां बकरे को देवी के सामने लाया जाता है। मंदिर के पंडित अक्षत और रोली के साथ मंत्र पढ़कर बकरे पर पानी के छींटे मारते हैं। इस प्रक्रिया से बकरा अचेत होकर गिर जाता है, जिसे ही बलि माना जाता है। कुछ देर बाद, जब बकरा होश में आ जाता है, तो उसे छोड़ दिया जाता है। इस मंदिर में किसी भी पशु के साथ कोई हिंसा नहीं की जाती। भक्तों का मानना है कि इस समर्पण से देवी प्रसन्न होती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

मंदिर का इतिहास और नामकरण
यह मंदिर पंवरा पहाड़ी के शिखर पर बना हुआ है, जहां भक्तों को सीढ़ियों से चढ़कर मां के दर्शन के लिए जाना पड़ता है। इसे भारत के सबसे प्राचीन जीवित मंदिरों में गिना जाता है, जिसका निर्माण 5वीं शताब्दी में होने का अनुमान है। मान्यता है कि देवी ने राक्षस मुंड का वध करने के लिए अवतार लिया था, जिसके कारण वे मां मुंडेश्वरी के नाम से भक्तों के बीच प्रसिद्ध हुईं। यहां नारियल और लाल चुनरी चढ़ाने की प्रथा है, और मनोकामना पूरी होने पर पशु को बिना पीड़ा दिए, इसी अनोखे तरीके से माता के चरणों में समर्पित किया जाता है।

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शिव-शक्ति का अद्भुत संगम
यह मंदिर शिव-शक्ति के संगम का प्रतीक है। मुंडेश्वरी भवानी यहां अकेली नहीं हैं; मंदिर के गर्भ गृह में पंचमुखी शिव भी विराजमान हैं। मंदिर की संरचना भी बेहद खास है। यह अष्टकोणीय आकार में बना है, जिसे भारत में अद्वितीय माना जाता है। इसमें नागर शैली की वास्तुकला की झलक मिलती है और यहां के शिलालेख और मूर्तियां गुप्तकालीन कला की समृद्धि को दर्शाते हैं। कुछ इतिहासकार इसे मुगल इतिहास से भी जोड़ते हैं, यह मानते हुए कि मुगलों के आक्रमण के कारण मंदिर के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो गए थे।

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