Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 May, 2023 12:17 PM
महाभारत के समय में गांडीवधारी अर्जुन कौरवों का संहार कर रहे थे। जिधर श्रीकृष्ण रथ को घुमाते थे, उधर अर्जुन के बाणों से बड़े-बड़े महारथी तथा विशाल सेना मारी जाती थी। द्रोणाचार्य की मृत्यु के
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Mahabharat: महाभारत के समय में गांडीवधारी अर्जुन कौरवों का संहार कर रहे थे। जिधर श्रीकृष्ण रथ को घुमाते थे, उधर अर्जुन के बाणों से बड़े-बड़े महारथी तथा विशाल सेना मारी जाती थी। द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात कौरव-सेना भाग खड़़ी हुई। इसी बीच अचानक महर्षि वेदव्यास जी स्वैच्छा से घूमते हुए अर्जुन के पास आ गए। उन्हें देखकर जिज्ञासावश अर्जुन ने उनसे पूछा, ‘‘महर्षे! शत्रु सेना का संहार जब मैं अपने बाणों से कर रहा था, उस समय मैंने देखा कि एक तेजस्वी महापुरुष हाथ में त्रिशूल लिए हमारे रथ के आगे-आगे चल रहे थे। सूर्य से तेजस्वी महापुरुष का पैर जमीन पर नहीं पड़ता था। त्रिशूल का प्रहार करते हुए भी वे उसे हाथ से कभी नहीं छोड़ते थे।’’
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‘‘उनके तेज से उस एक ही त्रिशूल से हजारों नए-नए त्रिशूल प्रकट होकर शत्रुओं पर गिरते थे। उन्होंने ही समस्त शत्रुओं को मार भगाया है। किंतु लोग समझते हैं कि मैंने ही उन्हें मारा और भगाया है। भगवन्! मुझे बताइए, वे महापुरुष कौन थे?’’
उत्तर व्यास जी का कमंडलु और माला धारण किए हुए महर्षि वेदव्यास ने शांतभाव से उत्तर दिया, ‘‘वीरवर! प्रजापति में प्रथम, तेज स्वरूप, अंतर्यामी तथा सर्वसमर्थ भगवान शंकर के अतिरिक्त उस रोमांचकारी घोर संग्राम में अश्वत्थामा, कर्ण और कृपाचार्य आदि के रहते हुए कौरव सेना का विनाश दूसरा कौन कर सकता था।’’
‘‘तुमने उन्हीं भुवनेश्वर का दर्शन किया है। उनके मस्तक पर जटाजूट तथा शरीर पर वस्त्र शोभा देता है। भगवान भव भयानक होकर भी चंद्रमा को मुकुट रूप से धारण करते हैं।‘‘
‘‘साक्षात भगवान शंकर ही वे तेजस्वी महापुरुष हैं, जो कृपा करके तुम्हारे आगे-आगे चला करते हैं, जिनके हाथों में त्रिशूल, ढाल, तलवार और पिनाक आदि शस्त्र शोभा पाते हैं, उन शरणागतवत्सल भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।’’