Muni Shri Tarun Sagar: कड़वे प्रवचन...लेकिन सच्चे बोल

Edited By Updated: 18 Mar, 2022 12:35 PM

muni shri tarun sagar

जवानी पर मत इतराना जवानी पर ज्यादा मत इतराना क्योंकि जवानी सिर्फ चार दिनों की है। अत: कानों में बहरापन आए, इससे पहले ही

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जवानी पर मत इतराना
जवानी पर ज्यादा मत इतराना क्योंकि जवानी सिर्फ चार दिनों की है। अत: कानों में बहरापन आए, इससे पहले ही जो सुनने जैसा है, उसे सुन लेना। पैरों में लंगड़ापन आए, इससे पहले ही दौड़-दौड़ कर तीर्थ यात्रा कर लेना। आंखों में अंधापन आए, इससे पहले ही अपने स्वरूप को निहार लेना। 

वाणी में गूंगापन आए, इससे पहले ही कुछ मीठे-बोल बोल लेना। हाथों में लूलापन आए, इससे पहले ही दान-पुण्य कर डालना। दिमाग में पागलपन आए, इससे पहले ही प्रभु के हो जाना।

दान करने के लिए कलेजा चाहिए
पैसा कमाने के लिए कलेजा चाहिए मगर दान करने के लिए उससे भी बड़ा कलेजा चाहिए। दुनिया कहती है कि पैसा तो हाथ की मैल है। मैं पैसे को ऐसी गाली कभी नहीं दूंगा। जीवन और जगत में पैसे का अपना मूल्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह भी सही है कि जीवन में पैसा कुछ हो सकता है। कुछ-कुछ भी हो सकता है और बहुत कुछ भी हो सकता है मगर ‘सब कुछ’ कभी नहीं हो सकता और जो लोग पैसे को ही ‘सब कुछ’ मान लेते हैं वे पैसे की खातिर अपनी आत्मा को बेचने के लिए भी तैयार हो जाते हैं।

जीवन की व्यथा 
मैं कथा नहीं, जीवन की व्यथा सुनाने आया हूं। एक युवक से जब मैंने पूछा,‘‘तुम क्यों जी रहे हो?’’ 

उसने कहा,‘‘ चूंकि मैं आत्महत्या नहीं कर सकता। मुझमें आत्महत्या करने का साहस नहीं है, इसलिए मैं जी रहा हूं।’’

मैं पूछता हूं ,‘‘ क्या यह जीवन की व्यथा नहीं है? यह भी कोई जीवन है। यह तो मजबूरी हुई और आपको पता ही है कि जीवन मजबूरी नहीं, महोत्सव है। जीवन व्यथा नहीं, कथा है।’’

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