Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti- आज मनाई जा रही है नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jan, 2024 02:39 PM

netaji subhash chandra bose

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ के नारे देकर देशवासियों तथा युवाओं में नई ऊर्जा का संचार कर आजादी की लड़ाई को गति देने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र के

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Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 2024- ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ के नारे देकर देशवासियों तथा युवाओं में नई ऊर्जा का संचार कर आजादी की लड़ाई को गति देने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र के जन्मदिवस 23 जनवरी को 2021 में उनकी 125वीं जयंती से भारत सरकार ने पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 1897 में ओडिशा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता जानकीनाथ बोस मशहूर वकील थे। मां का नाम प्रभावती था। बचपन से ही नेताजी पढ़ाई में काफी तेज थे। उन्होंने 1919 में बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था।

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नेताजी ने सिविल सर्विस पास की लेकिन मन में देश के प्रति प्रेम बहुत था। वह देश की आजादी के लिए चिंतित थे, जिसके चलते 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की नौकरी ठुकरा दी और इंगलैंड से भारत लौट आए तथा स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद गए। अपने सार्वजनिक जीवन में उन्हें कुल 11 बार कारावास हुआ। 1930 में वह कारावास में ही थे कि चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया, इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गई। एक बार जेल हुई तो उनकी तबीयत खराब रहने लगी। तब चिकित्सकों की सलाह पर वह इलाज के लिए यूरोप जाने को राजी हो गए। 1933 से 1936 तक वह यूरोप में रहे। 

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1943 में नेताजी जापान पहुंचे और वहां ‘आजाद हिन्द फौज’ का पुनर्गठन किया। 21 अक्तूबर, 1943 को बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अंडेमान और निकोबार द्वीप समूह इस अस्थायी सरकार को दे दिए। 1944 में आजाद हिंद फौज ने कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया लेकिन जापान की विश्व युद्ध में हार के चलते देश को आजाद करवाने का नेताजी का सपना पूरा न हो सका। 

18 अगस्त, 1945 को नेताजी के हवाई जहाज की कथित दुर्घटना में मौत की खबर आई। हालांकि, उनकी मृत्यु की सत्यता को लेकर आज भी विवाद बना हुआ है। 

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