Edited By Jyoti,Updated: 03 Apr, 2022 02:17 PM
पेशवा माधवराव अपने कार्यकाल में दानप्रियता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। वह अपने जन्मदिन पर निर्धनों को धन, अन्न, वस्त्र और भूमि दान किया करते थे। उनकी दानप्रियता के किस्से दूर-दूर तक लोकप्रिय
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पेशवा माधवराव अपने कार्यकाल में दानप्रियता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। वह अपने जन्मदिन पर निर्धनों को धन, अन्न, वस्त्र और भूमि दान किया करते थे। उनकी दानप्रियता के किस्से दूर-दूर तक लोकप्रिय थे इसलिए उनसे दान लेने बहुत दूर-दूर से लोग आया करते थे।
उनके दरवाजे से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। हर किसी को उसकी मनचाही वस्तु अवश्य प्राप्त होती थी। एक बार वह अपने जन्मदिन पर दूर-दूर से आए लोगों को दिल खोल कर दान दे रहे थे। भीड़ में एक बालक भी मौजूद था। वह देखने से ही बड़ा प्रतिभाशाली लगता था। उसकी चाल-ढाल में आत्मविश्वास झलक रहा था।
जब दान लेने की उसकी बारी आई तो उसने पेशवा को प्रणाम करके कहा, ‘‘मैं यहां एक विशेष प्रयोजन से आया हूं। मुझे कुछ और नहीं, सिर्फ ज्ञान का दान चाहिए।’’
यह सुन कर वहां उपस्थित लोग चौंक गए। उन्हें समझ में नहीं आया कि इसका मतलब क्या है? आखिर यह बालक चाहता क्या है?
पेशवा ने मुस्कुरा कर उससे पूछा, ‘‘तुम्हें केवल ज्ञान का दान ही क्यों चाहिए?
तुम कोई और वस्तु क्यों नहीं चाहते?’’
इस पर वह बालक बोला, ‘‘मैंने देखा कि जिन्हें दान में धन मिला है, उनका धन एक दिन समाप्त हो गया। कपड़े भी पुराने हो गए, फट गए। जिन्हें भूमि मिली है वह भी निरर्थक हो गए। ज्ञान ही वह वस्तु है जो कभी समाप्त नहीं होता। ज्ञान हमेशा स्थिर रहता है। यही कारण है कि मैं चाहता हूं कि मुझे ज्ञान का दान दिया जाए।’’
‘‘क्योंकि इसके सहारे व्यक्ति जीवन में आगे कुछ और भी प्राप्त कर सकता है। मैं अनाथ और निर्धन होने के कारण, शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाया। यदि आप मेरी शिक्षा की व्यवस्था करा दें तो मैं आपका आजीवन ऋणी रहूंगा।’’
उसकी बात सुनकर पेशवा बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने उसके अध्ययन की व्यवस्था करा दी। उस बालक का नाम राम शास्त्री था जो आगे चल कर प्रसिद्ध न्यायाधीश राम शास्त्री बने, जिन्होंने न्याय के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया।