Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Apr, 2019 10:26 AM
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप विचारी।।
दीनों पर दया करने वाले, कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रगट हुए। मुनियों के मनों को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गईं। जब प्रभु...
ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप विचारी।।
दीनों पर दया करने वाले, कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रगट हुए। मुनियों के मनों को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गईं। जब प्रभु प्रकट हुए, तो नेत्रों को आनंद प्रदान करने वाला मेघ के समान उनका श्याम शरीर तथा अपनी चारों भुजाओं में आयुध धारण किए तथा दिव्य आभूषणों से युक्त प्रभु को हाथ जोड़ कर माता बोलीं कि हे अनन्त! मैं किस प्रकार आपकी स्तुति करूं। वेद और पुराण आपको माया, गुण और ज्ञान से परे बताते हैं।
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।
हे प्रभु! आप चतुर्भुज छोड़ कर अत्यंत प्रिय बाललीला करो।
मेरे लिए यह सुख परम अनुपम होगा।
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहि। तीरथ सकल जहां चलि आवहिं।।
जिस दिन श्री राम जी का जन्म होता है, वेद कहते हैं कि उस दिन सभी तीर्थ श्री अयोध्या जी में चले आते हैं। भगवान श्री राम वेद की मर्यादा के रक्षक जगदीश्वर हैं। उनका स्वरूप वाणी के अगोचर, बुद्धि से परे, अव्यक्त और अपार है, वेद निरंतर प्रभु श्री राम की महिमा का नेति-नेति कहकर वर्णन करते हैं, लेकिन बुद्धिहीन मनुष्य उन अविनाशी परमेश्वर के परम भाव को न जानते हुए उन सच्चिदानंदन परमात्मा को मनुष्य की भांति जन्मकर व्यक्तिभाव को प्राप्त हुआ मानते हैं।
‘‘राम ब्रह्म व्यापक जग जाना। परमानंद परेस पुराणा।।’’
प्रभु श्री राम तो व्यापक ब्रह्म, परमानंदस्वरूप, परात्पर प्रभु और पुराण पुरुष हैं। इस तथ्य से सम्पूर्ण जगत अवगत है। जो प्रभु श्रीराम साकार रूप में सीतापति हैं, हनुमान जी तथा शबरी के आराध्य हैं, वे ही निराकर रूप में सर्वव्यापक हैं। वे माया के स्वामी और ज्ञान तथा गुणों के धाम हैं। भगवान शंकर कहते हैं कि हे पार्वती! जिनके नाम के बल से काशी में अपने प्राणों का त्याग करते हुए जीवों को देखकर मैं उन्हें श्रीराम का मंत्र देकर शोक-रहित कर देता हूं और मुक्ति प्रदान करता हूं वही मेरे प्रभु रघुश्रेष्ठ श्रीरामचंद्र जी सम्पूर्ण चराचर जगत के स्वामी और सबके हृदय में निवास करने वाले अंतर्यामी प्रभु हैं- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने।।
नवरात्र में तोरण लगाने का ये है सही तरीका